Upniveshvad Kya Hai? उपनिवेशवाद की स्थापना के कारण

उपनिवेशवाद (upniveshvad kya hai) का नाम आपने कभी ना कभी जरूर सुना होगा, हालाँकि उपनिवेशवाद शब्द के बारे में काफी कम इंसान ही जानते है क्योंकि आज के समय में इस शब्द का इस्तेमाल शायद ही देखने को मिले| दरसल उपनिवेशवाद भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ा हुआ शब्द है, जिसका इस्तेमाल 15 वीं से लेकर 20 वीं शताब्दी के मध्य तक सबसे ज्यादा हुआ था| उपनिवेशवाद एक शब्द ही नहीं बल्कि एक प्रक्रिया होती है, जिन इंसानो को उपनिवेशवाद शब्द का पता होता होता उनके मन में यह सवाल जरूर रहता है की आखिर उपनिवेशवाद क्या होता है? अक्सर ऐसे इंसान इंटरनेट पर उपनिवेशवाद क्या है? उपनिवेशवाद की स्थापना के कारण और उपनिवेशवाद का महत्व इत्यादि लिखकर सर्च करता है|

अगर आपको भी उपनिषाद के बारे में जानकारी नहीं तो हमारे इस पेज को लास्ट तक जरूर पड़ें क्योंकि आज हम अपने इस लेख उपनिवेशवाद से सम्बंधित महत्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करा रहे है| जब किसी भी भौगोलिक क्षेत्र या देश के लोग किसी दूसरे देश में जाकर अपना एक समूह स्थापित कर लेते है या किसी विशेष स्थान पर कब्जा जमा लेते है, जिसकी मदद से वो लोग उस देश में अपना जीवनयापन और व्यापार कर सकते है तो इस प्रक्रिया को उपनिवेशवाद कहा जाता है| चलिए अब हम आपको बताते है की उपनिवेशवाद क्या होता है? (upniveshvad kya hai)

Table of Contents

उपनिवेशवाद क्या होता है? | उपनिवेशवाद का अर्थ (upniveshvad kya hai)  

जब कोई भी समृद्ध और शक्तिशाली देश के द्वारा अपने विभिन्न हितों को पूरा करने के लिए किसी निर्बल और प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण देश के संसाधनों का इस्तेमाल शक्ति के बल पर करना ही उपनिवेशवाद कहलाता है| सरल भाषा में उपनिवेशवाद को समझे तो उपनिवेशवाद का सबसे ज्यादा अंग्रेजो या ब्रिटिश लोगो को ही पहुँचा है, जब कुछ ब्रिटिश इंसान अपना एक समूह बनाकर भारत में आते है| फिर वो भारत के किसी भी राज्य में जाकर बस जाते है, फिर बसने के बाद वो धीरे-धीरे वहां पर अपनी खुद की जमीन खरीद लेते है उसके बाद वो ब्रिटिश नागरिक भारत में अपना खुद का बिज़नेस शुरू कर देते हैं तो इस स्थिति उपनिवेश कहा जाता है| धीरे धीरे ब्रिटिश नागरिको का बिजनेस बढ़ता चला जाएगा, उसके बाढ़ ब्रिटिश लोग अपनी भाषा, संस्कृति और शिक्षाओं का प्रसार देश में शुरू कर देंगे इस प्रक्रिया को उपनिवेशवाद (upniveshvad kya hai) बोला जाता है| अगर उपनिवेशवाद पर रोक ना लगाई जाएं तो धीरे धीरे ब्रिटिश लोगो की संस्कृति पूरे देश में फ़ैल जाती है, इसीलिए देश में उपनिवेशवाद का विरोध होता है क्योंकि उपनिवेशवाद का असर उस देश के क्षेत्रीय लोगों की संस्कृति और रक्षा और अधिकारों के विपरीत प्रभाव डालता है| चलिए अब हम आपको भारत में उपनिवेशवाद के प्रभाव के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है

भारत में उपनिवेशवाद के प्रभाव

ऊपर आपने उपनिवेशवाद (upniveshvad kya hai) के बारे में पढ़ा, अब हम आपको भारत में उपनिवेशवाद के प्रभावों के बारे में जानकारी दे रहे है| भारत में ब्रिटिश सरकार से पहले भी बहुत आक्रमण हुआ लेकिन किसी भी आक्रमणकारी ने ब्रिटिश सरकार की तरह भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना में किसी भी तरह का बदलाव किया था| ब्रिटिश सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ज्यादा बदलाव किया, उपनिवेशवाद की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था बदल कर उपनिवेशी अर्थव्यवस्था हो गई थी| चलिए अब हम आपको बताते है की ब्रिटिश शासन की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर कौन कौन से प्रभाव पढ़े

READ ALSO  OYO Kya Hai? ओयो होटल में रूम बुक कैसे करे?

भारतीय हस्त शिल्प कला को नुक्सान

पहले ब्रिटिश नागरिको को भारत में व्यापार करने में कई सारी पाबंधियाँ थी, लेकिन वर्ष 1818 में चार्टर एक्ट के द्वारा ब्रिटिश नागरिकों को भारत से व्यापार करने की छूट मिली| जिसके बाद काफी ब्रिटिश नागरिको ने भारत में बिजनेस शुरू किया जिसकी वजह देश में आयात काफी बड़ी मात्रा में होने लगा, दूसरी तरफ देश में बनने वाले उत्पादों के लिये यूरोपीय बाजारों में प्रवेश करना बहुत ज्यादा मुश्किल होने लगा| निर्यात में बहुत दिक्कत होने की वजह से वर्ष 1820 के बाद भारतीय उत्पादों के लिये यूरोपीय बाजार लगभग बंद ही हो गया था| देश में आने वाले यूरोपीय उत्पादों को रेलवे की मदद से भारत के अलग अलग क्षेत्रों तक पहुंचाया जाने लगा| जिसकी वजह से भारत में परंपरागत हस्तशिल्प उद्योग को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचा, क्योंकि ब्रिटिश शासन के द्वारा निर्यात किया गया माल काफी सस्ता था और भारतीय हस्तशिल्प के द्वारा निर्मित माल महंगा था| जिस वजह से बाजार में लगातार विदेशी उत्पादों की डिमांड काफी तेजी से बढ़ने लगी, जिसकी वजह से भारतीय हस्तशिल्प कला की मांग घटने लगी| भारतीय हस्तशिल्प उद्योग तेजी से खत्म हो रहा था और इस काम को करने वाले इंसानो के सामने जीविका चलाने में बहुत बड़ी परेशानी सामने आने लगी| इंग्लैण्ड में बहुत तेजी से औद्योगिक क्रांति देखने को मिल रही थी क्योंकि देश के उद्योग भारत में भी अपने पैर जमा रहे थे, लेकिन भारतीय शिल्पकार और दस्तकार पर्याप्त संरक्षण ना होने की वजह से विषम परिस्थितियों का सामना कर रहे थे| इस स्थिति में भारत के कई सारे शहर खत्म होने लगे और अधिकतर भारतीय शिल्पियों ने गांव में जाने का निर्णय लिया| ब्रिटिश शासन की शोषणकारी तथा भेदभावमूलक नीतियों की वजह से काफी सारे भारतीय शिल्पकारियो और दस्तकारों ने अपने परंपरागत व्यवसाय को छोड़कर गांव में जाकर खेती करने का फैसला किया| ब्रिटिश शासन से पहले भारत एक सम्पूर्ण निर्यातक देश हुआ करता था जो बाद में एक सम्पूर्ण आयातक देश बन गया था।

किसानो की आर्थिक स्थिति में दिखी बड़ी गिरावट

ब्रिटिश शासन को देश के किसानो से अधिक से अधिक लगान प्राप्त करने के साथ साथ जमीन का अधिकाधिक हिस्सा प्राप्त करना था, इसीलिए देश के काफी सारे हिस्सों में ब्रिटिश शासन ने भूमि की स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को लागू किया था| हालाँकि स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में ब्रिटिश सरकार की मांग स्थिर थी लेकिन जमिदारके द्वारा लिया जाने वाला लगान निश्चित नहीं था, जमीदार कालांतर के समय पर लगान की दरों में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी कर देते थे अधिक कर ना दे पाने की स्थिति में जमींदार किसानों को उनकी भूमि से बेदखल कर देता था। अधिकतर मामलो में किसान अपनी पुश्तैनी अधिकारों वाली जमीन से हाथ धो बैठते थे, इसके अलावा ब्रिटिश सरकार जमीन की उर्वरता बढ़ाने के लिये बेहद कम धन खर्च करती थी, जिसकी वजह से फसल भी कम होती थी| आसान भाषा में समझे तो अधिकतर मामलो में किसानो को अधिक लगान देने के लिए या खेती में लगाने के लिए या घर की जरूरतों के लिए सूदखोरों से ऋण लेना पढता था, उस समय पर अधिकतर गांव के अनाज व्यापारी ही सूदखोरी का काम करते थे| सूदखोर किसानो की मजबूरी का फायदा उठाते हुए किसानो को काफी ज्यादा ब्याज पर ऋण देते थे, किसानो को ऋण चुकाने के लिए अनाज सूदखोरों को देना पड़ता था| सूदखोर किसानो का अनाज निम्न दरों पर खरीदते थे, लगभग सभी सूदखोरों की प्रशासन और न्यायालय में काफी अच्छी पकड़ होती थी| इसके अलावा अकाल और प्राकृतिक आपदाओं की वजह से भी किसानो को काफी ज्यादा परेशानियां झेलनी पढ़ती थी, कुल मिलाकर ब्रिटिश शासन की नीतियों की वजह से किसानो की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा ख़राब हो गई थी|

READ ALSO  MS Word Kya Hai: What is MS Word in Hindi

पुराने जमीदारों की जगह नयी जमींदारी व्यवस्था की शुरुआत

वर्ष 1815 में देश के बंगाल राज्य पर नजर डालें तो उस समय तक लगभग बंगाल राज्य की लगभग आधी भूमि असली मालिकों की जगह दूसरे मालिकों के पास पहुँच गई थी| सरल भाषा में समझे तो किसानो की जमीन जमीदारो के पास ना जाकर आस पास के किसानो के पास पहुँच गई थी, जिसकी वजह से नए नए जमीदारों का उदय होने लगा था, लेकिन नए जमीदारो के इस वर्ग के पास सीमित शक्तियां और अत्यल्प संसाधन मौजूद थे, नए जमीदारों और किसानों के बीच में किसी भी प्रकार का परंपरागत समझौता ना होने की वजह से नए जमीदारो ने कृषि में निवेश नहीं किया|

कृषि में अस्थिरता और पतन

उस समय के किसानो पर नजर डालें तो किसानो के पास ना तो कृषि करने के लिए पर्याप्त धन था और ना ही कृषि के साधन मौजूद थे| जमीदारो को खेती के बारे में जानकारी भी नहीं थी, जमींदार कृषि के साधन जुटाने के लिए धन खर्च नहीं करते थे, इसके अलावा सरकार भी बहुत कम धन कृषि तकनीक और कृषि से संबंधित शिक्षा पर खर्च करती थी| ऐसे ही बहुत सारे कारणों की वजह से धीरे धीरे भारतीय कृषि खत्म होने के साथ साथ देश में उत्पादकता भी काफी कम होने लगी थी|

भारतीय कृषि का वाणिज्यीकरण होने लगा

18वीं शताब्दी के बाद उन्नीसवी शताब्दी में भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन कृषि का वाणिज्यीकरण किया गया| इसके अंतर्गत देश की कुछ खास फसलों का उत्पादन ग्रामीणों की जगह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिये किया जाने लगा, बाजार के लिए कपास, मूंगफली, गन्ना, पटसन, तिलहन, तम्बाकू, फल और सब्जियों के साथ साथ मसालों इत्यादि का उत्पादन पहले से काफी ज्यादा होने लगा| इसके अलावा चाय, रबड़, कॉफी और नील इत्यादि के बागो का स्वामित्व यूरोपियों के हाथों में आने से इन सभी चीजों का उत्पादन अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने के लिए होता था| कृषि के वाणिज्यीकरण का लाभ किसानो को प्राप्त नहीं हुआ| 

आधुनिक उद्योगों का तेजी से विकास होने लगा

19वीं शताब्दी में देश में आधुनिक उद्योगों की स्थापना बहुत ज्यादा तेजी से होने लगा, इसीलिए इस युग को मशीनी युग का प्रारंभ भी कहा गया| हालाँकि देश में कुछ मिल या कारखाने की स्थापना 18 वीं शताब्दी में ही हो गया था, देश में पहली सूती कपड़े की मिल की स्थापना बंबई में कावसजी नानाभाई ने वर्ष 1853 में हुई थी| व्यापार की नजर से देखें तो भारत में मुनाफा अधिक कमाने की सम्भावना काफी ज्यादा थी क्योंकि देश श्रमिक काफी कम दाम में उपलब्ध थे और कच्चे माल की उपलब्धता और भारत के साथ साथ पडोसी देशों के बाजार इत्यादि सुविधाएं उपलब्ध थी| जिसकी वजह भारत में विदेशी पूंजी का प्रवाह काफी तेजी से देखने को मिला|

देश में अकाल और गरीबी का बढ़ना

ब्रिटिश शासन की नीतियों वजह से देश में किसानो की हालत ख़राब थी, इसके अलावा देश में आने वाली प्राकृतिक विपदाओं जैसे- बाढ़, सूखा और अनावृष्टि इत्यादि की वजह से भी किसानों के हालत बद से बदतर हो गए थे| किसानो के साथ साथ अकाल के समय पर चारा ना मिल पाने की वजह से कई बार अनेक पशु भी मर जाते थे|

उपनिवेशवाद के प्रकार (Types of colonialism in hindi)

ऊपर आपने उपनिवेशवाद के प्रभाव के बारे में पढ़ा, लेकिन कया आप जानते है की उपनिष्वाद कितने प्रकार के होते है? अगर आपको उपनिवेशवाद के प्रकारो के बारे में जानकारी नहीं है तो परेशान ना हो अब हम आपको उपनिवेशवाद के प्रकारो के बारे में बताते है| आमतौर पर चार प्रकार के उपनिवेशवाद देखने को मिलते है जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे है

1 – बसने वाले उपनिवेशवाद

2 – शोषण उपनिवेशवाद

3 – सरोगेट उपनिवेशवाद

4 – आंतरिक उपनिवेशवाद

उपनिवेश की स्थापना के कारण

ऊपर आपने उपनिवेशवाद के प्रकारो के बारे में जानकारी प्राप्त की, अब हम आपको उपनिवेशवाद की स्थापना के करने के बारे में जानकारी दे रहे है| किसी भी देश की व्यापारिक क्रांति में भौगोलिक खोजों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसकी वजह से उपनिवेशवाद की शुरुआत हुई थी| चलिए अब हम आपको उपनिवेशवाद की शुरुआत होने के करने के बारे में बताते है

READ ALSO  Gotra Kya Hota Hai? गोत्र कितने होते हैं और उनके नाम क्या हैं?

1 – ट्रिपल G (Gold,Glory and God) नीति

उपनिवेश की स्थापना का एक कारण ट्रिपल G भी था, यह तो सभी को पता होगा अमेरिका की खोज कोलंबस ने की थी| अमेरिका की खोज के बाद सभी यूरोपीय देशों में स्वर्ण जैसी बहुमूल्य धातु के संग्रह की प्रतिस्पर्द्धा की शुरुआत हो गई थी, उस समय पर पुरे यूरोप में एक नारा ‘अधिक स्वर्ण,  अधिक समृद्धि,  अधिक कीर्ति’ बहुत ज्यादा चर्चा में रहा था| सभी यूरोपीय देशो का प्रमुख ध्यान सोना,  कीर्ति और ईश्वर (Gold,  Glory and God) पर केन्द्रित हो चूका था, उपनिवेशों की स्थापना के बाद से यूरोपीय देशो को सोना मिलने के साथ साथ कीर्ति भी मिली और धर्म का प्रचार भी पहले से ज्यादा बढ़ा, सरल भाषा में समझे तो यूरोप के सभी देशो में सोने जैसी अन्य बहुमूल्य धातु को अधिक से अधिक एकत्रित करने पर जोर दिया गया क्योंकि जिस देश पर जितनी ज्यादा मात्रा में कीमती धातु होगी उस देश की कीर्ति उतनी ही ज्यादा होगी| इसीलिए ट्रिपल G नीति को उपनिवेशों की स्थापना का एक कारण माना जाता है|

2 – कच्चे माल को प्राप्त करने के लिए 

व्यापार बढ़ाने के लिए नए नए उद्योगो की स्थापना होनी शुरू हो गई थी, लेकिन उद्योगो की शुरुआत होने के बाद उद्योगो को चलाने के लिए कच्चे माल की कमी देखने को मिली| कच्चे माल की कमी को पूरा करने के लिए अफ्रीकी और एशियायी देशों में उपनिवेशों की स्थापना की गई, जिससे कच्चे माल की कमी पूरी होने लगी।

3 – निर्मित माल की खपत

जैसे जैसे उद्योगों को कच्चा माल मिलने लगा वैसे वैसे औद्योगिक उत्पादन काफी तेजी से होने लगा| इसके साथ साथ कच्चे माल की उलब्धता होने से नए नए उद्योगों की स्थापना काफी तेजी से हो रहा था, यूरोपीय देश आर्थिक संरक्षण की नीति पर काम कर रहे थे| उद्योगों के द्वारा निर्मित माल को बेचने के लिए भी उपनिवेशों की स्थापना की गयी थी|

4 – जनसंख्या में वृद्धि

यूरोप के विभिन्न देशों में औद्योगीकरण काफी तेजी से हो रहा था ऐसे में लगभग सभी देशो की जनसंख्या भी काफी तेजी से बढ़ती हुई नजर आई, जनसंख्या को बसाने के लिए भी उपनिवेशों की स्थापना की गई थी| सरल भाषा में समझे तो जैसे जैसे उद्योग बढ़ने लगे वैसे वैसे लोगो के पास धन की बढ़ोतरी के साथ रोजगार के काफी सारे अवसर नजर आने लगे|

5 – प्रतिकूल जलवायु भी थी कारण

व्यापारिक प्रगति और नए नए देशों से संपर्क करने के बाद यूरोपवासियों को कई सारी नई नई चीजों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई, जिनके बारे में उन्होंने पहले कभी नहीं सुना था| जैसे तम्बाकू, आलू, चीनी, कॉफी, चावल, गर्म मसाले और भुट्टा इत्यादि चीजों के बारे में पूर्वी देशों के साथ संपर्क करने के बाद ही जानकारी मिली थी, जानकारी मिलने के बाद जब यूरोपवासियों ने इन चीजों का सेवन शुरू किया तो उन्हें यह सभी चीजें काफी ज्यादा पसंद आई| कुछ चीजों के यूरोप वासी आदी हो गए, लेकिन इन सभी चीजों को अपने यहां उगाना लगभग नामुमकिन था क्योंकि इसके लिए उन्हें प्रतिकूल जलवायु की जरुरत थी| प्रतिकूल जलवायु ना होने की वजह से ये सभी वस्तुएँ यूरोपीय देशों में नहीं उग सकती थी, इस परेशानी को खत्म करने के लिए अंग्रेज ऐसे प्रदेश या देश पर कब्जा करना चाहते थे जहाँ पर आसानी से इन सभी चीजों की खेती की जा सके| प्रतिकूल जलवायु वाले स्थानों पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए उपनिवेश की स्थापना की गई|

6 – समृद्धि को बढ़ाने की वजह

जैसे जैसे यूरोपीय देशो में औधोगिकरण बढ़ा वैसे वैसे देशो में समृद्धि की लालसा भी बढ़ने लगी, पुर्तगाल और स्पेन ने सबसे पहले उपनिवेश की स्थापना की थी, उपनिवेश की स्थापना के बाद दोनों देशो की समृद्धि में काफी वृद्धि देखने को मिली| पुर्तगाल और स्पेन की बढ़ती हुई समृद्धि को देखते हुए यूरोप के कई सारे देशो में इसी तरह की समृद्धि पाने की लालसा जागृत हुई जिसकी वजह से अन्य यूरोपीय देशो में भी उपनिवेश स्थापित हुआ|

निष्कर्ष –

ऊपर आपने उपनिवेशवाद के बारे में पढ़ा, अगर आपको हमारे लेख उपनिवेशवाद क्या होता है? (upniveshvad kya hai) उपनिवेशवाद की स्थापना के कारण में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो हमारे इस पेज को अधिक से अधिक शेयर करके ऐसे लोगो के पास तक पहुंचाने में मदद करें जिन्हे उपनिवेशवाद के बारे में जानकारी नहीं है|

Leave a Comment