Udarikaran kya hai: आपने कभी ना कभी उदारीकरण का नाम जरूर सुना होगा, हालाँकि कुछ इंसान उदारीकरण के बारे जानते है लेकिन अधिकतर इंसानो को उदारीकरण के बारे जानकारी नहीं होती है| जिन इंसानो को उदारीकरण के बारे में जानकारी नहीं होती है वो इंटरनेट पर उदारीकरण के बारे में जानने के लिए उदारीकरण कया है? (udarikaran kya hai) उदारीकरण के फायदे और नुक्सान इत्यादि लिखकर सर्च करते है, अगर आपको भी उदारीकरण के बारे में जानकारी नहीं है तो परेशान ना हो आज हम अपने इस लेख में उदारीकरण के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है| उदारीकरण नीति को लागू करने के पीछे की मुख्य वजह देश का विकास करना है यह तो आप अच्छी तरह से जानते ही होंगे की किसी भी देश का विकास तभी संभव हो सकता है जब देश में व्यापार बढ़ता है, लेकिन देश की सरकार उद्योग या व्यापार पर कुछ नियम और क़ानून के साथ साथ कुछ आवश्यक प्रतिबंध भी लगाती है| सरकार के दवारा लगाए प्रतिबंध और नियम क़ानून विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन जाती है| देश के विकास में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए ही उदारीकरण की नीति का निर्माण किया गया| चलिए सबसे पहले हम आपको उदारीकरण क्या है? (udarikaran kya hota hai) इसके बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है
उदारीकरण क्या है (Udarikaran Kya Hai)? / Liberalization meaning in hindi
उदारीकरण को अंग्रेजी में Liberalization कहा जाता है, भारत में उदारीकरण नीति की शुरुआत वर्ष 1991 में हुई थी| देश में उदारीकरण (udarikaran kya hai) नीति शुरू करने की मुख्य वजह सरकार के द्वरा बनाए कठोर नियमो में ढील देकर देश में निजी और विदेशी निवेश की भूमिका का विस्तार करना था| आसान भाषा में समझे तो उदारीकरण का अर्थ है व्यापार को बढ़ावा देने के साथ साथ देश में प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाने के लिए व्यापार और उद्योगों पर लगे हुए प्रतिबंधों को कम करना या पूर्ण रूप से खत्म कर देना| जब व्यापार के ऊपर लगे कठोर नियम हट गए तो व्यापार करने वाले लोग काफी आसानी से अपने व्यापार को बढ़ाने लगे, इसके अलावा नियमो में छूट मिलने के बाद काफी सारी विदेशी कम्पनियाँ भी भारत में निवेश करने लगी| जिसे देश में काफी तेजी से विकास होना शुरू हुआ, हालाँकि उदारीकरण से फायदे काफी सारे हुए लेकिन इसके कुछ नुक्सान भी देखने को मिले जिसके बारे में हम आपको नीचे जानकारी दे रहे है| उसे पहले हम आपको बताते है की भारत में उदारीकरण की जरुरत क्यों पढ़ी
भारत में आर्थिक उदारीकरण की आवश्यकता
भारत में आर्थिक विकास के रास्ते में आने वाली सभी परेशानियो को दूर करने के उदारीकरण की शुरुआत की गई थी, उदारीकरण की जरुरत के पीछे कई सारे कारण थे जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे है, चलिए जानते है की उदारीकरण (udarikaran kya hota hai) की आवश्यकता के मूलभूत कारण कौन कौन से है
1 – राजनीतिक अस्थिरता
उदारीकरण की नीति आने से पहले देश की आर्थिक स्थिति उस समय की राजनीतिक अस्थिरता की वजह से स्थिर नहीं हो पा रही थी, राजीनीतिक अस्थिरता का असर आर्थिक स्थिति पर साफ़ दिखाई दे रहा था| ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था में सुधार करने के लिए और सही दिशा प्रदान करने के लिए आर्थिक नीति में बदलाव करने की जरुरत पड़ी थी|
2 – रोज़गार का सृजन करने के लिए
काफी सारे इंसान सोचते है की उदारीकरण केवल बहुराष्ट्रीय कंपनी तक सीमित होता है जबकी यह सच नहीं है उदारीकरण स्वदेशी उद्योग तथा फर्मो का संचालन और स्पर्धा में भी उपयोगी साबित हो रहा था| बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर पाबंधी लगाने के साथ साथ स्वदेशी बिजनेस और फर्मो के लिए भी उदारीकरण की जरुरत है, उदारीकरण (udarikaran kya hota hai) की वजह से रोज़गार में भी बढ़ोतरी देखने को मिली जो किसी भी देश की सबसे बड़ी जरुरत होती है|
3 – बजट घाटे में निरन्तर बढ़ोतरी को रोकने के लिए
उदारीकरण से पहले देश का बजट लगातार घटता हुआ नजर आ रहा था, बजट का लगातार घटना देश के लिए सबसे बुरी खबर साबित हो रही थी क्योंकि किसी भी देश का बजट गिरना देश के लिए काफी नुकसानदायक साबित होता है| लगातार घटते बजट को कम करने के लिए उदारीकरण नीति (udarikaran kya hota hai) की जरुरत थी।
4 – सार्वजनिक उपक्रमों में घाटे की स्थिति
उदारीकरण से पहले उत्पादन के क्षेत्र में सार्वजनिक उपक्रमों ने उतना बेहतर कार्य नहीं किया था जितना की उम्मीद थी, कुछ क्षेत्रों को छोड़ दें तो अधिकतर सार्वजनिक क्षेत्र अपने लिए जरुरत के संसाधन जुटाने और उचित वृद्धि दर को बनाए रखने में और उत्पादकता और कार्यकुशलता की दृष्टि से असफल साबित हुए थे| सरल भाषा में समझे तो लगभग सभी सार्वजनिक क्षेत्रों में काफी सारी कमियां देखने को मिली थी इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्रों को बेहतर बनाने के लिए उन्नत टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ना होने की वजह से इस क्षेत्र में लगातार घाटा नजर आ रहा था, सार्वजनिक क्षेत्रों की स्थिति बेहतर बनाने के लिए भी उदारीकरण की जरुरत थी|
5 – मुद्रा स्फीति में वृद्धि
देश की वित्त व्यवस्था में लगातार घाटा होने का प्रमुख कारण घाटे की वित्त व्यवस्था थी, जिसकी वजह से पुरे देश में महँगाई बहुत ज्यादा हो गई जिसकी वजह से देश की जनता बहुत ज्यादा परेशान थी, वित्त व्यवस्था में सुधार लाने के लिए और महंगाई पर लगाम लगाने के लिए उदारीकरण की जरुरत पड़ी थी|
6 – रहन सहन के स्तर में कमी दिखाई देना
देश में घटती वित्त व्यवस्था की वजह से महँगाई लगातार बढ़ रही थी ऐसी स्थिति में उपभोक्ता की क्रयशक्ति में कमी दिखाई दे रही थी जिसके कारण उपभोक्ता के औसत जीवन स्तर में लगातार गिरावट देखने को मिल रही थी। जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए उदारीकरण की जरुरत पड़ी थी|
7 – प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन
देश में घरेलू कीमत स्तर में बढ़ोतरी की वजह से आयातों को प्रोत्साहन और निर्यात हतोत्साहित किया जाने लगा आसान में भाषा में समझे तो जब देश में महँगाई बहुत ज्यादा बढ़ने लगी तो देश में उत्पादित चीजों की मांग बड़ी और विदेश में उत्पादित चीजों की मांग में कमी दिखाई दी, इस परेशानी पर नियंत्रण पाने के लिए उदारीकरण की आवश्यकता पड़ी थी।
8 – विनियोग ढाँचे पर प्रतिकूल प्रभाव दिखाई देने लगा
जैसे जैसे देश में मुद्रा स्फीति बढ़ने लगी वैसे वैसे देश में रहने वाले लोगों के पास जरुरत से ज्यादा मुद्रा की मात्रा बढ़ने लगी थी, जिसकी वजह से देश में विलासितापूर्ण वस्तुओं की माँग काफी तेजी से बढ़ने लगी और जरूरत के सामान की मांग कम होने लगी| ऐसी स्थिति में देश के अंदर विलासितापूर्ण वस्तुओं का उत्पादन ज्यादा होने लगा और आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन काफी कम होने लगा था|
9 – भारतीय उद्योगों को प्रतियोगी बनाने के लिए
भारतीय सरकार ने कई सारी संरक्षणवादी नीतियों का फायदा उठाते हुए भारतीय उद्योगों ने अपनी गुणवत्ता में किसी भी प्रकार का सुधार नहीं किया और ना ही बिजनेस की लागत को कम करने की कोशिश की, इन सब चीजों में सुधार लाने के लिए कॉम्पिटिशन बहुत ज्यादा जरुरी है, प्रतिस्पर्धा से उद्योगों में उत्पादन की गुणवत्ता बेहतर और लागत में कमी देखने को मिलेगी, जिसके लिए उद्योगों को दिए जाने वाले संरक्षण को समाप्त करना बहुत ज्यादा जरुरी था|
10 – विदेशी ॠणों का बढ़ता बोझ
देश में सार्वजनिक क्षेत्र को बेहतर और विकसित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं और विदेशी सरकार से बहुत बड़ी मात्रा में ॠण और आर्थिक सहायता ली गई थी| विदेश से धन लेने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र को बेहतर बनाने के लिए सभी परियोजनाएं को तो पूर्ण करा गया लेकिन परियोजनाओ को पूर्ण करने के लिए जितना ॠण लिया था उन ॠणों का भुगतान का दायित्व सार्वजनिक क्षेत्र पर नहीं डाला गया था जिसकी वजह से देश पर विदेशी ॠण और ॠण का ब्याज का बोझ लगातार बढ़ता चला गया। इस परिस्थिति से निपटने के लिए उदारीकरण नीति को अपनाना पड़ा था।
11 – बंधित ॠण का प्रभाव
देश को जितना भी धन विदेश से प्राप्त हुआ था उस धन का लगभग दो तिहाई भाग बन्धित ॠण के रूप में मिला था, इस प्रतिबंध की वजह से देश अपनी प्राथमिकताओं को पूर्ण नहीं कर पा रहा था जिसकी वजह से देश का विकास नहीं हो पा रहा था|
उदारीकरण के फायदे
ऊपर आपने उदारीकरण के बारे में पढ़ा, अब हम आपको उदारीकरण के फायदों के बारे में बताने जा रहे है| उदारीकरण के लाभ के बारे में नीचे जानकारी दी जा रही है
1 – उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार देखने को मिला
जैसे जैसे सार्वजनिक क्षेत्रों की प्राथमिकता को समाप्त करके निजी क्षेत्रों को बढ़ावा मिलने लगा वैसे वैसे उत्पादन कि गुणवत्ता में काफी ज्यादा सुधार देखने को मिला| इसीलिए निजी क्षेत्रों को बढ़ने पर काफी ज्यादा जोर दिया जा रहा है जिससे उत्पादन कि गुणवत्ता पहले से बेहतर हो जाएं|
2 – निजी क्षेत्रों को बढ़ावा देना
निजी क्षेत्रों को बढ़ाने के लिए उदारीकरण की नीति के अंतर्गत कई तरह की छूट प्रदान की गई| विनियोग, उत्पादन और निर्यात इत्यादि क्षेत्र में निजी क्षेत्र स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें। निजी क्षेत्र को जैसे जैसे स्वतंत्र कार्य करने की अनुमति मिल वैसे वैसे निजी क्षेत्र में तरक्की देखने को मिली|
3 – धीरे धीरे विदेशी पूँजी निवेश में बढ़ोतरी
उदारीकरण का फायदा विदेशी पूँजी में बढ़ोतरी में देखने को मिला, उदारीकरण की नीति लागू होने बाद लगातार भारत में विदेशी पूँजी का निवेश काफी तेजी से देखने को मिला| कई सारे विदेशी व्यापारिक देश जैसे- अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड, फ़्रांस, जापान, हॉलैंड और सिंगापुर इत्यादि ने भारत में अपनी भागीदारी को बढ़ाया, जिसकी वजह से भारत को काफी लाभ मिला| विदेशी देशो की भागीदारी देश में बढ़ने की वजह से व्यापार के क्षेत्र में भारत को भारी मात्रा में प्रत्यक्ष पूँजी प्राप्त हुई|
4 – भुगतान संतुलन में स्थिरता
उदारीकरण से पहले देश में विदेशी व्यापार और आयात-निर्यात के संबंध में भुगतान की स्थिति काफी ख़राब दिखाई दे रही थी, लेकिन जैसे उदारीकरण की नीति लागू हुई उसके बाद भुगतान की स्थिति में काफी ज्यादा सुधार देखने को मिला, जिसकी वजह से सिथिति काफी स्थिर नजर आने लगी थी|
5 – जीडीपी में बढ़ोतरी
वर्ष 1991 से पहले की जीडीपी पर नजर डालें तो जीडीपी में लगातार गिरावट देखने को मिल रही थी, उदारीकरण की नीति लागू होने के बाद जीडीपी में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिलीl
6 – भ्रष्टाचार में कमी दिखाई दी
उदारीकरण नीति लागू होने के बाद कई सारे क्षेत्रों में लायसेंस और अन्य प्रतिबंधों को खत्म कर दिया गया जिसकी वजह से इन क्षेत्रों में होने वाला भ्रष्टाचार और तानाशाही समाप्त हो गई थी| उदारीकरण की वजह से ऐसे क्षेत्रों में काम कराने में या क्षेत्र की अनेक योजनाओं को सफलतापूर्वक पूर्ण किया गया था|
7 – विदेशी मुद्राकोष में लगातार बढ़ोतरी होना
उदारीकरण के बाद काफी ज्यादा आर्थिक सुधार देखने को मिला था, देश में बेहतर निर्यात और बेहतर विदेशी निवेश भी देखने को मिला, जिसकी वजह से विदेशी मुद्रा कोष में काफी वृद्धि देखने को मिली|
8 – आधुनिकीकरण में बढ़ावा देखने को मिला
उदारीकरण की नीति लागू होने के बाद काफी ज्यादा आधुनिकीकरण देखने को मिला, दरसल उदारीकरण के बाद कई प्रकार की छूट दी गई जिसकी वजह से उत्पादन में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी देखने को मिली| उत्पादन में बढ़ोतरी होने की वजह से लोगो की इनकम भी बढ़ी जिससे देश का आर्थिक विकास काफी तेज़ी से होने लगा|
9 – आर्थिक मंदी से काफी हद तक छुटकारा मिला
उदारीकरण नीति में बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की छूट देनी शुरू की, छूट मिलने की वजह से देश में उत्पादको को अपने उत्पादन में वृद्धि करने का मौका मिला| जैसे जैसे देश में उत्पादन बढ़ने लगा वैसे वैसे उत्पादों की कीमत कम होती हुई नजर आने लगी| इसके अलावा बाजार में प्रतियोगिता भी काफी ज्यादा देखने को मिली क्योंकि सरकार के द्वारा दी जाने वाली छूट का लाभ पाने के लिए नए नए लोग भी बिजनेस करने लगे जिससे देश में उत्पादन काफी ज्यादा होने लगा|
उदारीकरण के नुक्सान
ऊपर आपने उदारीकरण के फायदों के बारे में जानकारी प्राप्त की, अब हम आपको उदारिकार के नुक्सान के बारे में जानकारी उपलब्ध रहे है| उदारीकरण के नुक्सान कई सारे क्षेत्रों में देखने को मिलते है, जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे है
1 – निर्यात में बढ़ोतरी उम्मीद से कम
उदारीकरण के बाद सरकार को उम्मीद थी की निर्यात में काफी ज्यादा बढ़ोतरी देखने को मिलेगी, निर्यात को बढ़ावा देने के लिए मुद्रा का अवमूल्यन भी करा गया लेकिन उसके बाद भी निर्यात में असफलता ही हाथ लगी, उम्मीद से कम निर्यात हुआ|
2 – बहुराष्ट्रीय कंपनियों की हेरा फेरी
जैसे जैसे विदेशो से बिजनेस बढ़ने लगा वैसे वैसे बिजनेस का लेन देन भी अलग अलग देशों की अलग अलग मुद्राओं में होने लगा| ऐसे में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ लेन देन में हेरा फेरी करने लगी थी| आप आसान भाषा में ऐसे भी समझ सकते है की विदेशी मुद्रा की भारत में कीमत कितनी होगी, इसकी जानकारी उस समय पर काफी कम लोगो को थी|
3 – कई सारे क्षेत्रों की समस्याओं का समाधान नहीं होना
सरकार को लगा था की उदारीकरण के बाद लगभग सभी क्षेत्रों की समस्याओ का समाधान हो जाएगा, उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था और विश्व की अर्थव्यवस्था का आपस में तालमेल बेहतर बन गया था| लेकिन उदारीकरण के बाद देश में बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और आर्थिक विषमता इत्यादि समस्या देखने को मिली जिनका समाधान नहीं हो पाया था|
4 – निजीकरण के नुक्सान भी देखने को मिले
आर्थिक मंदी के समय पर सबसे ज्यादा बढ़ावा निजीकरण को दिया गया, निजीकरण करने का फैसला अधिकार मामलो में बेहद नुक़सानदायक साबित हुआ है। निजीकारण करने के बाद विकासशील देशों में बेरोज़गारी और गरीबी बहुत ज्यादा देखने को मिली, हजारो लोगो को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा, इसके अलावा आर्थिक मंडी में बहुत सारे बिजनेस बंद हो गए जिसकी वजह से भी बेरोजगारी काफी ज्यादा बढ़ गई थी|
5 – क्षेत्रीय आर्थिक विषमता बढ़ने लगी
दरसल उदारीकरण में सरकार ने व्यापार क्षेत्र में लगे हुए कई सारे प्रतिबंध हटाए गए, जिसका फायदा बड़े बिजनेसमैन को तो मिला, जिससे बिजनेसमैन ने अपने बिजनेस को पहले से ज्यादा बड़ा दिया| उदारीकरण की वजह से काफी सारे छोटे मोटे उद्योग और धंधे चौपट या खत्म हो गए जिसकी वजह से आर्थिक विषमता देखने को मिलती है|
6 – छोटे उद्योगों पर पढ़ा बुरा प्रभाव
उदारीकरण नीति की वजह से बड़े उद्योगों और बहुराष्ट्रीय उद्योगों का समुचित विकास काफी तेजी से देखने को मिला लेकिन उदारीकरण का सबसे बुरा या नकारात्मक प्रभाव लघु और कुटीर उद्योगों पर दिखाई दिया|
7 – पर्यावरण को पहुँचा नुक़सान
यह तो आप समझ ही गए की उदारीकरण (udarikaran kya hai) की वजह उद्योगों और कारखानों की संख्या मे काफी ज्यादा बढ़ोतरी देखने को मिली, जिसकी वजह से प्रदूषण भी काफी तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई दिया| दरसल जैसे जैसे नए नए कारखानों को लगाने की मांग बढ़ी वैसे वैसे जमीन की माँग बढ़ने लगी जिसकी वजह से लगातार जंगल और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई होनी लगी, पेड़ कटने के कारण प्रदूषण भी बढ़ता चला गया|
8 – कृषि क्षेत्र को भी पहुँचा काफी नुक्सान
उदारीकरण के बाद निर्माण और सेवा क्षेत्र का विकास काफी तेजी से देखने को मिला लेकिन कृषि क्षेत्र पर नजर डालें तो इस क्षेत्र के हालात पहले से ख़राब नजर आई| उद्योग और कारखानों की संख्या तेज़ी से बढ़ने लगी जिसकी वजह से कृषि क्षेत्र के काफी सारे इंसान अधिक पैसा पाने की चाहत में शहरों की तरफ आकर बस गए|
निष्कर्ष –
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