राष्ट्रवाद के बारे में आपने कभी न कभी जरूर सुना होगा, आमतौर पर अधिकतर लोगो को राष्ट्रवाद के बारे में जानकारी होती है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है जिन्हे राष्ट्रवाद का नाम तो पता होता है लेकिन उन्हें इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है| आज हम अपने इस लेख में राष्ट्रवाद से सम्बंधित महत्पूर्ण जानकारी जैसे राष्ट्रवाद क्या होता है (Rashtravad Kya Hai) राष्ट्रवाद की भावना पैदा होने के कारण इत्यादि उपलब्ध करा रहे है| भारत में राष्ट्रवाद की भावना ब्रिटिश शासन काल में ही शुरू हो गई थी, चलिए सबसे पहले हम आपको राष्ट्रवाद के बारे में बताते है
राष्ट्रवाद क्या है (Rashtravad Kya Hota Hai)?
जिन इंसानो को राष्ट्रवाद के बारे में जानकारी नहीं होती है उनके मन में सबसे पहला सवाल आता है की राष्ट्रवाद का क्या होता है? राष्ट्र के प्रति निष्ठा और राष्ट्र की प्रगति के प्रति सभी नियम आदर्शों को बनाए रखने का सिद्धान्त ही राष्ट्रवाद कहलाता है। सरल भाषा में समझे तो भारत में रहने वाले लोगो में जब देश भक्ति की भावना होती है तो उसे राष्ट्रवाद कहा जाता है| आप ऐसे भी समझ सकते है की किसी भी भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों में एक दूसरे के लिए एकजुटता और आपसी समन्वय की भावना उत्पन्न होती है और वो भावना समय के साथ धीरे धीरे बढ़ती चली जाती है तो इस भावना को राष्ट्रवाद कहा जाता है|
भारत मे राष्ट्रवाद की शुरुआत कब हुई थी? / Bharat mein rashtravad kab suru hua?
भारत में राष्ट्रवाद की शुरुआत तब से हुई थी जब भारत में राजाओ का शासन था, प्राचीन काल में भारत को राष्ट्रवादी देशों की विचारधारा वाले देशों में से एक माना जाता था| दरसल जब भारत में राजा का शासन हुआ करता तो उस समय पर राज्य में रहने वाले लोगो में या प्रजा में अपने शासक के प्रति गहरी आस्था होती थी अर्थात प्रजा अपने राजा या राजतंत्र की बुराई सुनना बिलकुल भी पसंद नही करते थे। भारत में ब्रिटिश शासन काल में राष्ट्रवाद सबसे ज्यादा देखने को मिला था हलनि ब्रिटिश शासन काल में राष्ट्रवाद की भावना पैदा होने के बहुत सारे कारण थे| देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सभी भारतीयों ने एकजुट होकर भारतीय भूमि और भारतीय संस्कृति की रक्षा करने के लिए अपनी आवाज को बुलंद किया था भारत में राष्ट्रवाद के बहुत सारे उदाहरण अलग अलग समय पर देखने को मिले थे| चलिए अब हम आपको राष्ट्रवाद के अनिवार्य तत्वो के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है
राष्ट्रवाद के अनिवार्य तत्व
ऊपर आपने पढ़ा की राष्ट्रवाद क्या है? अब हम आपको राष्ट्रवाद के जरुरी तत्वों के बारे में बता रहे है
1 – सामान्य जाति का ब्लड रिलेशन –
आमतौर पर देखा जाता है जनरल कास्ट या सामान्य जाति के लोगो में अपना अलग रिलेशन होता है और वो सभी आपस में बहुत जल्दी और आसानी से एक साथ हो जाते है| आज के समय में भी आप देख सकते है की कहीं पर भी सामान्य जाती की बात आएगी तो सभी सामान्य जाती के लोग एक साथ आकर उस परेशानी के खिलाफ खड़े हो जाते है| हिटलर के बारे में तो हम सभी अच्छी तरह से जानते ही है तो आपको बता दें वर्ष 1930 में हिटलर ने जर्मन राष्ट्र में लोगो को एक साथ लाने के लिए ‘आर्यो का रक्त’ रखने वाले एक साथ आने चाहिए जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था| इसके अलावा सामान्य जाती से निचली जाती जैसे यहूदियों और अन्य निचली जाती के लोगो को घटिया रक्त वाले लोग या तुच्छ समझा जाता था और ऐसे लोगो की निंदा की जाती थी, जर्मन जाती के द्वारा की जी वाली निंदा, अपमान और तबाह करने की कार्यवाहियों की निंदा पूरे विश्व ने की थी|
2. सामान्य धर्म –
लोगो को एकबद्ध करने में समान धर्म भी अहम् रोल निभाता है, सामान धर्म के उदहारण आपको समूचे विश्व में देखने को आसानी से मिल जाएंगे जैसे दुनिया भर में मुस्लिम राष्ट्रों में समान धर्म एक प्रबल शक्ति दिखाई देती है, इसके अलावा यहूदी अपने धर्म की वजह से एकजुट नजर आते है| वैसे वर्तमान समय में कुछ मुस्लिम देशो को छोड़ दें तो अधिकांश देश धर्मनिर्पेक्षता के सिद्धांत पर काम कर रहे है, कुल मिलकर आप यह कह सकते है पहले जमाने के मुकाबले आज यह तत्व इतना महत्वपूर्ण नहीं है| इतिहास पर नजर डालें तो एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण में धर्म हमेशा नकारात्मक और विनाशकारी भूमिका में दिखाई दिया है, इसीलिए आधुनिक युग में धर्म का महत्व उतना नहीं है जितना प्राचीन समय में होता था|
3. सामान्य भाषा –
सामान भाषा के लोगो के बीच में आपसी संपर्क बहुत जल्दी हो जाता है, भाषा सामान होने की वजह से ऐसे लोगो में एकता काफी जल्दी दिखाई देती है| इसके पीछे का सबसे बड़ा कारन यह की सामान भाषा के लोग आपस में अपने विचारों, संस्कृति, साहित्य और देशभक्ति से सम्बंधित बातो का आदान प्रदान आसानी से कर सकते है| इसीलिए दुनिया के अधिकतर देशो में राष्ट्र भाषा के आधार पर लोगो को एक साथ गठित किया गया है, दुनिया के प्रत्येक देश को अपनी राष्ट्र भाषा पर गर्व होता है, राष्ट्र भाषा राष्ट्रीय एकजुटता को दर्शाता है|
4. सामान्य इतिहास तथा संस्कृति –
किसी भी जगह के रहने वाले लोगो का इतिहास और संस्कृति एक होती है तो ऐसे लोगो में एकजुटता दिखाई देती है क्योंकि ऐसे लोगो की समान मनोवैज्ञानिक चिन्तन शैली, सोचने और काम करने की सोच और देश पर आए दुःख या कष्टों को मिलकर सहन करने की शक्ति उन्हें एक करती ही नजर आती है| ऐसे इंसान अपने राष्ट्र के लिए बलिदान देने वालों के लिए स्मारक बनाने में काफी ज्यादा गर्व महसूस करते है और वो अपनी परंपराओं को जीवित रखने के लिए उत्सवों और त्यौहारों का आयोजन भी करते रहते हैं। भारत में हिन्दू धर्म के सभी लोग मिलकर दीपावली और होली के त्योहार का आनंद लेने के साथ साथ एक होने का अहसास भी करते है|
5. समान राजनैतिक आकांक्षाएं –
एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना तभी होती है जब उस राष्ट्र के लोग विदेशी नियंत्रण में होते है, ऐसे राष्ट्र के सभी लोग एकजुट होकर अपने राष्ट्र की नीतियों के विरूद्ध संघर्ष करके अपने राष्ट्र को स्वतंत्र राष्ट्र बनाते है| उदहारण के तोर पर नेपोलियन ने उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में कई सारे राष्ट्रों को अपने अधीन कर लिया था, नेपोलियन ने जितने भी राष्ट्र अपने अधीन किए थे उन सभी राष्ट्रों में नेपोलियन ने उन सभी राष्ट्रों में तीव्र जनविरोध को जन्म दिया था, नेपोलियन ने जर्मनी, इटली, आस्ट्रिया, पोलेंड, हंगरी और रूस इत्यादि राष्ट्रों के राजनेताओं और अन्य वक्ताओं से राष्ट्रवाद के बारे में बताया और उनसे राष्ट्रवाद का आव्हान करने के लिए कहा था, जिसके बाद ऐसे सभी देशो में क्रांति हुई और बाद में सभी राष्ट्रों को नेपोलियन ने अपने अधीन कर लिया था|
6. भौगोलिक निकटता –
अगर किसी भी राष्ट्र में भौगोलिक निकटता नहीं होती है तो वो राष्ट्र टुकड़ो में बनता हुआ दिखाई देता है, इसीलिए राष्ट्र कहलाने के लिए भौगोलिक निकटता होना सबसे ज्यादा जरुरी होता है| भौगोलिक दूरी ज्यादा होने पर राष्ट्रीय एकता की प्रक्रिया में दिक्कत आती है, भारत में आप इसके कई उदाहरण देख सकते है जैसे भारत से पाकिस्तान अलग होने का प्रमुख कारन यही थी, दरसल दोनों भागो के बीच भौगोलिक दूर काफी थी जिसकी वजह राष्ट्रीय एकता दिखाई देने में मुश्किल होती थी, भौगोलिक दूरी और भाषा एकता की वजह से पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया था क्योंकि इस क्षेत्र में बंगाली राष्ट्रवाद जागृत हो गया था| भारत के साथ साथ यूरोप में भी आपको ऐसे अनेकों उदाहरण देखने को मिल जाएंगे जो भौगोलिक दूरी होने की वजह से अलग राष्ट्र बन गए|
भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारण
भारत में राष्ट्रवाद की शुरुआत प्राचीन समय से हो गई थी, ऐसा माना जाता है की 19वीं शताब्दी में भारत के लोगो में राष्ट्रवाद की भावना धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी| जिसने आगे चलकर राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का रूप ले लिया था, भारत में रहने वाले लोगो में राष्ट्रवाद उत्पन्न होने के कई सारे कारण थे, चलिए अब हम आपको भारत में राष्ट्रवाद उत्पन्न होने के कुछ कारण निम्न प्रकार है
राजनीतिक कारण
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
वर्ष 1857 की क्रांति के बारे में काफी कम लोग जानते है, लेकिन भारत में अंग्रेजो के जुल्म और नीतियों के खिलाफ आम लोगो का गुस्सा पहली बार वर्ष 1857 में फूटा था| इस क्रांति के बाद लोगो के दिल और दिमाग में राष्ट्रवाद की भावना जागृत हुई थी| फिर उसके बाद भारत में अलग अलग जगह पर अलग लोगो के छोटे छोटे दल बनाए जाने लगे, धीरे धीरे छोटे छोटे दलों को मिलाकर वर्ष 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एक बड़े दल के रूप में हुई थी| भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने देश के अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों को अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष करने के लिए एकजुट करने का प्रयास किया था, जिसके लिए कांग्रेस ने देश के अलग अलग हिस्सों में अधिवेशन करके स्थानीय लोगों को एकजुट करने की कोशिश की, इसके अलावा अलग अलग क्षेत्रों और अलग अलग संप्रदाय के लोगों को अध्यक्ष भी बनाया, जिससे स्वतंत्रता संग्राम में सभी को एक अपनेपन का अहसास हो और कोई भी इस संग्राम को धर्म से जोड़कर ना देखें| भारत के लोगों में राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एकता की भावना पैदा होना देश के लोगो में राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न होने का कारण था|
अंग्रेजो की शोषक नीतियां
यह तो हम सभी बहुत अच्छी तरह से जानते है की अंग्रेजो की काफी सारी नीतियां ऐसी थी जिनसे भारत के नागरिक बहुत ज्यादा परेशान और प्रताड़ित हो रहे थे| अंग्रेजो की इन नीतियों से मुक्ति पाने की भावना भी देश के नागरिको को एक करने में सफल हुई थी, चलिए अब हम आपको कुछ ऐसी नीतियों के बारे में बारे में बताते है
लार्ड डलहौज़ी की हड़प नीति के बारे आपने जरूर सुना होगा दरसल डलहौजी की इस निति में बहुत सारे भारतीयो की रियासतों पर अंग्रेज कब्ज़ा कर रहे थे| धीरे धीरे रियासतो को हड़पा जा रहा था, फिर लोगो में डलहौजी की हड़प नीति के खिलाफ लोगो में इस नीति का विरोध उत्पन्न होने लगा था, विरोध करने वाले सभी लोगो में एकता दिखाई दे रही थी|
इसके अलावा इल्बर्ट बिल विवाद और रॉलेट एक्ट लागू होना इत्यादि कई सारी शोषक नीतियों से परेशान और प्रताड़ित होकर देश के नागरिको में एकता का उदय होने लगा, इसीलिए भारतीयो में राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न होने का एक कारण अंग्रेजों की शोषक नीतियों को माना जाता है|
आर्थिक स्थिति
वर्ष 1900 के आस पास के समय पर नजर डालें तो भारत में आय के दो स्रोत ही मौजूद थे पहला स्रोत था कृषि और दूसरा स्रोत था उद्योग क्षेत्र। ब्रिटिश शासन की कई सारी ऐसी नीतिया थी जिनकी वजह से दोनों स्रोतों के लोग प्रताड़ित होने लगे थे। ब्रिटिश शासन की बंदोबस्त नीति का असर दोनों क्षेत्रों के लोगो के परेशानी का कारण बन गई थी, कृषि के क्षेत्र में बंदोबस्त की नीतियां जैसे स्थाई बंदोबस्त, महालवाड़ी बंदोबस्त और रैयतवाड़ी बंदोबस्त इत्यादि से देश का किसान वर्ग बहुत प्रताड़ित होने लगा था| इस नीति की वजह से भारत कच्चे माल का उत्पादक देश और बाहर के तैयार माल बेचने का बाजार बन चुका था|
जिसकी वजह से उद्योग क्षेत्र के लोग भी ब्रिटिश शासन की नीतियों से प्रताड़ित होने लगा था, देश में चलने वाले छोटे छोटे उद्योग भी धीरे धीरे बंद होने लगे क्योंकि अंग्रेज भारत से बाहर तैयार हुए माल को भारत में लाकर बेचते थे, जिसकी वजह से घरेलू उत्पादों की लोकप्रियता और बिक्री कम होती चली गई। अंग्रेजो की नीतियों की वजह से कृषि और उद्योग क्षेत्र के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का उदय हुआ, उसके बाद धीरे धीरे भारत के लोगो को अंग्रेजो की नीतियों के बारे में जानकारी हुई की अंग्रेज भारत से पैसा लूट कर अपने देश ले जा रहे है| अंग्रेजो की इन नीतियों से सिर्फ अंग्रेजो को लाभ मिल रहा है और भारत के लोगो का शोषण हो रहा है जिसकी वजह से देश के लोगो में एकता की भावना जागृत होनी शुरू हो गई थी|
सामाजिक वजह
उस समय पर भारत में कई सारे सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन भी चलाए गए, थे। भारत में कई सारे महानायकों जैसे राजाराम मोहन रॉय, स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती और ईश्वर चंद विद्यासागर इत्यादि ने सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों का आयोजन किया था| सभी महानायको की कोशिश थी की समाज में चल रही बुराइयों को दूर करना, महानायको के द्वारा चलाए गए आंदोलन की वजह से लोगो के अंदर एकता की भावना और भारत के लिए प्रेम जागृत हुआ, जिसकी वजह से देश में रहने वाले लोगो में एकता की भावना उत्पन्न्न हुई| जिसे आप राष्ट्रवाद की शुरुआत भी कह सकते है, दयानन्द सरस्वती का नाम लगभग सभी अच्छी तरह से जानते है| सरस्वती को समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है और सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों में सबसे ज्यादा योगदान दयानन्द सरस्वती का ही रहा था।
सांस्कृतिक महोत्सव
भारत में राष्ट्रवाद उत्पान होने के कारण बहुत सारे है, देश में राष्ट्रवाद उत्पन्न होने का एक कारण सांस्कृतिक महोत्सव भी था| अंग्रेजो की अधिकतर नीतियां ऐसी थी, जिनकी वजह से देश में रहने वाले अधिकतर इंसान परेशान या पीड़ित हो रहे थे| ब्रिटिश सरकार की काफी सारी नीतियां ऐसी थी, जिनको लागू करने के पीछे की वजह सिर्फ अंग्रेजो का हित था| लेकिन ब्रिटिश सरकार की नीतियों की वजह से ही भारत के लोगों में एकता की भावना पैदा हुई थी, ब्रिटिश सरकार ने अपने कार्यक्षेत्रों में काम करने वाले भारत के लोगो को काम के योग्य बनाने के लिए और ब्रिटिश शासन के विचारों का प्रचार प्रसार करने के लिए भारत में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा देने की शुरुआत की, वर्तमान समय की तरह ही उस समय भी भारत के अलग अलग राज्यो में अलग अलग भाषा बोली जाती थी| ऐसे में ब्रिटिश शासन चाहता था की भारत में एक भाषा का इस्तेमाल किया जाए जिससे सम्पूर्ण भारत में रहने वाले अलग अलग क्षेत्रों और अलग अलग भाषाओ के लोग आपस में एक ही भाषा में बातचीत कर सकें और एक दूसरे की भावनाओं को आसानी से समझ सकें|
सरल भाषा में समझे तो यह तो हम सभी अच्छी तरह से जानते है की भारत में कई तरह की भाषाएं बोली जाती है, जिन्हें समझना हर इसी के लिए आसान काम नहीं है, ऐसे में अंग्रेज चाहते थे की भारत में केवल अँगरे भाषा का इस्तेमाल हो, जिससे देश में रहने वाले हर नागरिक की भाषा एक हो| हालाँकि ब्रिटिश शासन की इस नीति का फायदा देश में रहने वाले नागरिको को भी मिला, भरा में रहने वाले लोगो ने पहले अंग्रेजी भाषा को समझा और पड़ा उसे बाद धीरे धीरे देश में समाचार पत्र और पत्रिकाएं निकालना भी शुरू कर दी गई ही| समाचार और पत्रिकाओं के माध्यम से लोग अपने विचारों को दूसरों के समक्ष ज्यादा प्रभावशाली तरीके से रख सकते थे| समय समय पर भारत के महानायकों ने भी अपने अपने समाचार पत्र और पत्रिकाएं निकलवाई, जिसकी वजह से भी देश में एकता की भावना उत्पन्न होने लगी थी| ब्रिटिश शासन ने देश में ट्रैन की शुरुआत अपने फायदे के लिए किया था, लेकिन ट्रैन की शुरुआत भारतीयो में भी एकता की भावना लाने में कामयाब रहीं| दरसल अंग्रेजो ने भारत में ट्रैन इसीलिए चलवाई जिससे भारत में तैयार होने वाला कच्चा माल आसानी से बंदरगाहों तक और बाहर से आने वाला तैयार माल बंदरगाहों से भारत के अलग अलग क्षेत्रों तक आसानी से पहुँच सकें|
हालाँकि भारत में ट्रैन आने के बाद अंग्रेजो को सामान ले जाने में काफी आसानी हुई लेकिन दूसरी तरफ देश में रहने वाले लोगो को एक दूसरे से जोड़ने का काम भी किया, आपस में जुड़ने की वजह से लोगो में एकता भी आने लगी थी| भारत में अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग धर्मो के लोग रहते है, इसीलिए भारत में बहुत सारे विभिन्न सांस्कृतिक महोत्सव भी मनाए जाते थे| सांस्कृतिक महोत्सव में शामिल होने की वजह से लोगों का आपस में जुड़ाव होने के साथ साथ एकता की भावना भी उत्पन्न हो रही थी| जिसकी वजह से भी भारत में राष्ट्रवाद का उदय हुआ था।
निष्कर्ष –
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