Nato Kya Hai: रूस और यूक्रैन का युद्ध इस समय सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बना हुआ है। इस युद्ध के चर्चा में रहने का एक कारण नाटो ग्रुप भी है क्योंकि ऐसा माना जा रहा है नाटो की मदद के दम पर ही यूक्रैन अभी तक युद्ध में टिका हुआ है। ऐसे में काफी सारे इंसानो के मन में नाटो को लेकर बहुत सारे सवाल आते है जैसे नाटो कया है? नाटो संगठन में कितने देश शामिल है? अगर आपको नाटो के बारे में जानकारी नहीं है तो हमारा यह लेख आपके लिए लाभकारी साबित हो सकता है क्योंकि आज हम अपने इस लेख में नाटो के बारे में अधिक से अधिक जानकारी उपलब्ध करा रहे है। हालाँकि अभी तक यूक्रैन और रूस के युद्ध में नाटो ने शामिल होने की किसी भी रपकार की आधिकारिक घोषणा नहीं की है लेकिन नाटो ग्रुप के कुछ देश यूक्रैन की मदद जरूर करते हुए नजर आ रहे है। नाटो ग्रुप को आप दुनिया के सबसे शक्तिशाली संगठन भी कह सकते है इसीलिए यूक्रैन जैसे कई सारे देश नाटो संगठन में शामिल होने की कोशिश कर रहे है। फिलहाल नाटो में 30 देश शामिल है, इससे ही आप अंदाजा लगा सकते है की यह संगठन कितना शक्तिशाली हो जाता है। आज के समय में कोई भी देश जल्दी से नाटो ग्रुप से लड़ने की कोशिश नही करता है और ना हे नाटो ग्रुप में शामिल कसी भी देश पर हमला नहीं करता है क्योंकि अगर किसी भी देश ने ऐसा किया तो नाटो संगठन के सभी देश उस देश के खिलाफ मोर्चा खोल देंगे। चलिए अब हम आपको सबसे पहले नाटो कया है इसके बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है।
नाटो क्या है (nato kya hai)– What Is NATO In Hindi?
यह एक ऐसा सवाल है जो आज के समय में लाखो लोगो के मन में है, काफी सारे इंसान नेताओ के बारे में जानने के लिए परेशान रहते है। रूस और यूक्रैन युद्ध से पहले शायद बहुत कम इंसान ही नाटो एक बारे में जानते थे, लेकिन रूस और यूक्रैन युद्ध में जब से नाटो का नाम शामिल हुआ है ताहि से नाटो चर्चा में छाया हुआ है। युद्ध शुरू होने से पहले सारी दुनिया को लगता था की यह युद्ध एक या दो दिन से ज्यादा नहीं चलने वाला है लेकिन युद्ध को 8 महीने से ज्यादा हो गए और अभी युद्ध खत्म नहीं हुआ है।
युद्ध ना खत्म होने का प्रमुख कारण नाटो को माना जा रहा है क्योंकि नाटो यूक्रैन को आर्थिक और हथियारो की मदद पहुंचा रहा है। नाटो एक ग्रुप का नाम है, इस ग्रुप की शुरुआत महज सात देशो के साथ हुई थी और आज इस ग्रुप में लगभग 30 देश शामिल है। नाटो ग्रुप में शामिल सभी देशो ने एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हुए है, इस प्रस्ताव के अनुसार नाटो ग्रुप को एक परिवार के रूप में माना जाएगा। ऐसे में नाटो ग्रुप के किसी भी देशी पर किसी भी तरह का हमला होता है या किसी भी तरह की आर्थिक या अन्य परेशानी आती है तो नाटो ग्रुप के सभी देश उस समस्या को दूर करने के लिए मदद करेंगे। किसी भी देश ने अगर नाटो ग्रुप में शामिल किसी भी देश पर हमला किया तो यह हमला उस देश पर नहीं सम्पूर्ण नाटो पर हमला माना जाएगा और इसका जवाब सभी देश मिल कर देंगे।
हम आपको सरल भषा में नाटो के बारे में समझाते है मान लीजिए एक परिवार है जिसमे चार या पांच सदस्य है, अब उस परिवार पर पडोसी या कोई अन्य शख्स हमला कर देता है तो वो हमला उस परिवार पर माना जाता है और ऐसी स्थिति में परिवार के सभी सदस्य उस इंसान के खिलाफ मोर्चा खोल देते है। बस इसी तरह नाटो ग्रुप भी काम करता है, नाटो ग्रुप में एक से बढ़कर एक देश शामिल है, इसीलिए यूक्रैन भी जल्द नाटो ग्रुप की सदस्ता लेना चाहता है। अगर यूक्रैन को नाटो ग्रुप की सदस्ता मिल जाती है तो फिर यह युद्ध रूस और यूक्रैन का नहीं रह जाएगा बल्कि फिर यह युद्ध रूस और नाटो का हो जाएगा और ऐसे में नाटो ग्रुप के सभी सदस्य रूस के खिलाफ जंग लड़ेंगे।
नाटो की स्थापना कब हुई?
ऊपर आपने नाटो के बारे में जाना, अब हम आपको नाटो की स्थापना कब हुई इसके बारे में जानकारी दे रहे है। नाटो ग्रुप की स्थापना अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने 4 अप्रैल 1949 में की थी।
नाटो का फुल फॉर्म हिंदी में (NATO Full Form)
नाटो का नाम तो सभी जानते ही है लेकिन अधिकतर इंसानो को नाटो की फुल फॉर्म के बारे में जानकारी नहीं होती है, चलिए अब हम आपको नाटो की फुल फॉर्म के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है। नीचे हम आपको नाटो की फुल फॉर्म हिंदी और इंग्लिश दोनों में उपलब्ध करा रहे है।
NATO Full Form in English – North Atlantic Treaty Organisation
NATO Full Form in Hindi – उत्तर अटलांटिक संधि संगठन
नाटो के कितने सदस्य हैं?
दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद अमेरिका और सोवियत संघ दोनों देश महा शक्ति के रूप में उभरते हुए नजर आए, ऐसे में यूरोप के देशो के ऊपर खतरा मंडराने लगा था, अपने ऊपर खतरे को बढ़ता देख फ्रांस, ब्रिटेन, नीदरलैंड और बेल्जियम जैसे कई देशों ने आपस में मिलकर एक प्रस्ताव पास किया, जिसके मुताबिक अगर उस प्रस्ताव में सम्मिलित देशो में से किसी भी देश पर कोई अन्य देश हमला करता है तो उस हमले का जवाब सभी देश मिल कर देंगे और हमले हुए देश को सभी देश मिल कर आर्थिक सहायता भी देंगे। उस दौर में अमेरिका और सोवियत संघ एक दूसरे से बेहतर साबित करने पर फोकस कर रहे थे, ऐसे में अमेरिका ने सबसे पहले अपने आपको दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश साबित किया फिर उसके बाद अमेरिका ने सोवियत संघ की घेराबंदी करनी शुरू कर दी थी। सोवियत संघ का विस्तारवाद रोकने के लिए अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 15 के तहत उत्तर अटलांटिक संधि के प्रस्ताव की पेशकश की थी, अमेरिका के इस प्रस्ताव को दुनिया के 12 अलग अलग देशों ने माना और अमेरिका के साथ उस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये। इस संधि में अमेरिका के साथ साथ ब्रिटेन, फ़्रांस, कनाडा, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, इटली, बेल्जियम, आइसलैंड और लक्जमबर्ग इत्यादि देश शामिल थे। फिर इसके बाद जब शीत युद्ध होने वाला था तो इस युद्ध के शुरू होने से पहले टर्की, स्पेन, पश्चिम जर्मनी और यूनान ने भी इस संधि पर हस्ताक्षर कर दिए और यह सभी देश भी उस ग्रुप में शामिल हो गए। शीत युद्ध खत्म करने के बाद इस संधि में हंगरी और पोलैंड जैसे देश भी इस संधि में शामिल हुए, इसके बाद वर्ष 2004 में 7 देशों ने नाटो ग्रुप की सदस्य्ता ली, इस तरह से आज के समय में नाटो ग्रुप में 30 देश शामिल है।
नाटो ग्रुप में शामिल देश संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम(1949), तुर्की(1952), स्पेन(1982), स्लोवेनिया (2004), स्लोवाकिया (2004), रोमानिया (2004), पुर्तगाल (1949 ), पोलैंड (1999), नॉर्वे (1949 ), उत्तर मैसेडोनिया (2022), नीदरलैंड्स (1949), मोंटेनेग्रो (2017), लक्ज़मबर्ग (1949), थुआनिया (2004), लातविया (2004), इटली (1949 ), आइसलैंड (1949 ), हंगरी (1999), ग्रीस (1952), जर्मनी (1955), फ्रांस (1949 ), एस्टोनिया (2004), डेनमार्क (1949), चेक गणराज्य (1999), क्रोएशिया (2009), कनाडा (1949 ), बुल्गारिया (2004), बेल्जियम (1949), अल्बानिया (2009) है। रूस और यूक्रैन युद्ध के बाद अब कई सारे नए देशो ने नाटो ग्रुप में शामिल होने की इच्छा जताई है, हालाँकि अभी नए किसी भी देश को नाटो ग्रुप में शामिल नहीं किया गया है।
नाटो ग्रुप को किसी देश ने छोड़ा है?
जब से नाटो ग्रुप बना है तब से लेकर आज तक इस ग्रुप में अधिक से अधिक देश जुड़ने की कोशिश करते है। जो भी देश नाटो ग्रुप में जुड़ गया है उसने आज तक नाटो ग्रुप को नहीं छोड़ा है, नाटो ग्रुप में शामिल सभी देशो में सिर्फ फ़्रांस ही एक ऐसा देश है जिसने एक बार नाटो ग्रुप छोड़ दिया था लेकिन फिर कुछ समय बाद फ़्रांस ने दोबारा नाटो ग्रुप ज्वाइन कर लिया था।
नाटो का महासचिव
नाटो को दुनिया के सबसे बढे संगठन के रूप में जाना जाता है, नाटो संगठन के पहले महासचिव हेस्टिंग्स इस्माय थे। फिलहाल नाटो संगठन के महासचिव पद पर नॉर्वे देश के पूर्व प्रधान मंत्री Jens Stoltenberg बने हुए हैं। नार्वे देश के प्रधान मंत्री ने 1 अक्टूबर वर्ष 2014 में नाटो संगठन के महासचिव पद को संभाला था, वर्ष 2018 में इनका कार्यकाल समाप्त होना था, लेकिन उनके बेहतरीन काम को देखते हुए सभी देशो के सदस्यो ने उन्हें एक बार फिर नाटो का महासचिव बना दिया था। इसीलिए फिलहाल Jens Stoltenberg ही नाटो के महासचिव पद पर बने हुए है।
नाटो का मुख्यालय कहाँ पर स्थित है?
हर एक संगठन का एक मुख्यालय जरूर होता है, चाहे संगठन छोटा हो या बड़ा, नाटो संगठन का मुख्यालय या हेड क्वार्टर बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में स्थित है।
नाटो के गठन के उद्देश्य
नाटो संगठन का निर्माण करने के पीछे कई सारे उद्देश्य थे, चलिए अब हम आपको नाटो संगठन के बनने के पीछे की वजहों के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है।
1 – नाटो संगठन के मुख्य उद्देश्यों में से एक मुख्य उद्देश्य है पश्चिमी यूरोप के देशों को एक संगठन में शामिल करना।
2 – नाटो के द्वारा यूरोपीय राष्ट्रों के लिए सैन्य और आर्थिक विकास के लिए सुरक्षा प्रदान करना होता है।
3 – नाटो में शामिल सभी देश एक संगठन के रूप में काम करें, अगर कोई बाहरी देश नाटो के किसी भी देश पर हमला करता है तो वो हुम्ला नाटो ग्रुप के सभी देशो पर हमला माना जाएगा और सभी देश मिलकर उस देश के खिलाफ जंग करेंगे।
4 – नाटो का एक उद्देश्य यूरोप पर आक्रमण के समय एक अवरोधक के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना था।
5 – नाटो ग्रुप बनाने के पीछे का कारण युद्ध की स्थिति में लोगों को मानसिक रूप से तैयार करना और पश्चिमी यूरोप में सोवियत संघ के विस्तार को रोकना था।
6 – नाटो संगठन का उद्देश्य स्वतंत्र विश्व’का निर्माण करना था, ऐसे में नाटो संगठन के सदस्य देशो की रक्षा के लिए आर्थिक और सामाजिक रूप से सहायता प्रदान करना था।
नाटो की स्थापना कैसे हुई?
विश्व युद्ध के बारे में तो सभी अच्छी तरह से जानते है खासकर दूसरे विश्व युद्ध के बारे में। दूसरा विश्व युद्ध जब खत्म हो गया तो उस समय पूरे यूरोप की आर्थिक स्थिति में बहुत ज्यादा गिरावट देखने को मिली थी, जिसकी वजह से यूरोप में रहने वाले लोगो का जीवन अस्त व्यस्त हो गया था। यूरोप के नागरिकों का दैनिक जीवन निम्न स्तर पर आ गया था, सोवियत संघ इस मौके का लाभ उठाना चाहता था। उस समय पर सोवियत संघ पूरे विश्व के कारोबार पर अपना नियंत्रण करना चाहता था, अपनी इस चाहत को पूरा करने के लिए सोवियत संघ को सबसे पहले तुर्की पर कब्जा करना था और अगर सोवियत संघ तुर्की पर कब्ज़ा कर लेता तो, उसका कब्जा काला सागर पर भी हो जाता। अगर काले सागर पर सोवियत संघ का कब्जा हो जाता तो इसका भूमध्य सागर के द्वारा किये जाने वाले व्यापार पर भी दिखाई देने वाला था। इसीलिए सोवियत संघ जल्द से जल्द तुर्की और ग्रीस पर कब्ज़ा करना चाहता था, अमेरिका ने सोवियत संघ की विस्तारवादी सोच को अच्छी तरह से भांप लिया था। इसीलिए अमेरिका ने इन समस्याओं का निवारण करने के लिए एक संगठन का निर्माण करने का निर्णय लिया, जिससे आज हम नाटो के रूप में जानते है। जिस समय नाटो संगठन की स्थापना होने की बात चल रही थी उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट थे, लेकिन किसी कारणवश उसी समय अमेरिका के राष्ट्रपति का निधन हो गया, ऐसे में नाटो का संगठन नहीं बन पाया। रूजवेल्ट के निधन के बाद हैरी एस ट्रूमैन को अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था, राष्ट्रपति बनाने के बाद हैरी एस ट्रूमैन ने तुरंत नाटो संगठन बनाने के काम को आगे बढ़ाया और नाटो संगठन का स्थापित किया।
नाटो के प्रमुख अंग की संरचना
नाटो ग्रुप में मुख्य रूप से चार भाग होते है, नाटो का हर एक डिपार्टमेंट ने अपने काम बाँट रखें है, चलिए अब हम आपको चारो अंगो के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है।
परिषद – नाटो संगठन का प्रमुख या सबसे उच्च स्तरीय अंग परिषद् होता है, परिषद् का निर्माण संगठन में मौजूद सभी देशो के प्रतिनिधि से मिलकर होता है और आमतौर पर साल में एक बार परिषद् की बैठक होती है लेकिन अगर कोई इमरजेंसी होती है तो बैठक अधिक बार भी हो सकती है। परिषद् ही निर्णय लेता है की किस देश को नाटो संगठन में शामिल करना है और किसे नहीं।
उप परिषद – नाटो संगठन का दूसरा प्रमुख अंग है उप परिषद्, यह परिषद् से छोटा होता है, नाटो के इस संगठन का मुख्य काम नाटो से सम्बंधित सामान्य हितों वाले विषयों पर चर्चा करना होता है। परिषद द्वारा नियुक्त कूटनीतिक प्रतिनिधियों के संगठन को उप परिषद्से के नाम से जाना जाता है।
प्रतिरक्षा समिति – नाटो संगठन का तीसरा अंग है प्रतीरक्षा संगठन, इस अंग में नाटो संगठन के सभी देशो के प्रतिरक्षा मंत्री शामिल होते है। नाटो में शामिल देशो के मंत्री नाटो और गैर नाटो देशों में सैन्य सम्बन्धी विषयों पर विचार विमर्श करके निर्णय लेते है, किस तरह से नाटो को और ज्यादा शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
सैनिक समिति – नाटो का चौथा और मुख्य संगठन सेना समिति होता है, इस संगठन में नाटो संगठन में शामिल सभी देशो के सेना प्रमुख या सेनाध्यक्ष शामिल होते है। इस समिति का मुख्य कार्य विश्व की शांति पर विचार विमर्श करना होता है।
ट्रूमैन सिद्धांत (Truman Doctrine in Hindi)
अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने ही नाटो संगठन का निर्माण किया है, नाटो में ऐसे देशो को शामिल किया गया है जिन्हे साम्यवाद से खतरा होने के साथ साथ लोकतंत्र को बचाना चाहते थे। नाटो ग्रुप को बनाने का मुख्य उद्देश्य उन सभी देशों की सुरक्षा का ख्याल रखा जाएगा जो नाटो ग्रुप में शामिल हैं। अमेरिका जानता था की शीत युद्ध में सोवियत संघ लगातार विस्तार कर रहा है ऐसे में सोवियत संघ को रोकना बहुत ज्यादा जरुरी था जिसके लिए एक प्रस्ताव रखा गया जिसे ट्रूमैन सिद्धांत के नाम से जाना गया। ट्रूमैन प्रस्ताव का प्रमुख उद्देश्य सोवियत संघ का विस्तार रोकने के साथ साथ सभी यूरोपीय देशों की मदद करना था। इस प्रस्ताव के अंतर्गत उन सभी देशों की सहायता की जाएगी जो नाटो में शामिल है। नाटो संगठन में शामिल सभी देशो का एकमत यह है की अगर कोई भी नाटो संगठन से बहार का देश किसी भी ऐसे देश पर हमला करता है जो नाटो ग्रुप का सदस्य है तो ऐसी स्थिति में यह हुम्ला उस देश पर नहीं नाटो पर माना जाएगा। और सभी देश मिलकर उस देश एक खिलाफ जंग में साथ देंगे, तुर्की और ग्रीस को मार्शल स्कीम के तहत ही लगभग 300 मिलियन डॉलर्स की सहायता मिली थी, अमेरिका और सोवियत संघ के बीच में युद्ध काफी लम्बे समय तक चला था।
निष्कर्ष –
ऊपर हमने आपको नाटो कया है( nato kya hai) के बारे जानकारी उपलब्ध कराई है, आज के समय में काफी सारे लोग नाटो के बारे में जानने के लिए परेशान रहते है। अगर आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई है तो हमारे इस पेज को अधिक से अधिक शेयर करें।