Maulik Adhikar Kya Hai?: मौलिक अधिकार के बारे में आपने कभी ना कभी जरुर सुना होगा, लेकिन काफी कम लोगो को मौलिक अधिकारों के बारे में जानकारी होती है| देश में रहने वाले सभी नागरिको को मौलिक अधिकारों के बारे में जानकारी जरूर होनी चाहिए, अगर आपको मौलिक अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं है तो परेशान ना हो, आज हम अपने इस लेख में मौलिक अधिकारों से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी जैसे मौलिक अधिकार क्या है? मौलिक अधिक कितने प्रकार के होते है ? इत्यादि के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है इसीलिए हमारे इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें, चलिए सबसे पहले हम आपको मौलिक अधिकार क्या होते है?(maulik adhikar kya hai) के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है
मौलिक अधिकार क्या है / Maulik Adhikar Kya Hai?
भारत में रहने वाले सभी नागरिको को भारतीय संविधान कुछ ऐसे अधिकार प्रदान करता है, जिनकी मदद से नागरिको को सामान्य तरीके से जीवन जीने में मदद करते है| भारत के नागरिको के मौलिक अधिकारों के बारे भारतीय संविधान में लिखा गया है और मौलिक अधिकारों का हनन या किसी भी देशवासी को इन अधिकारों से वंचित रखना अपराध की श्रेणी में रखा गया है। यह तो आप सभी जानते ही होंगे की भारतीय संविधान दुनिया के सबसे बड़े संविधान के रूप में जाना जाता है, जिसमे मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। चलिए अब हम आपको भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है
भारतीय संविधान में कितने मौलिक अधिकार है ?
काफी सारे इंसानो के मन में यह सवाल रहता है की भारतीय संविधान में कितने मौलिक अधिकार होते है? दरसल भारतीय संविधान में कुल छह मौलिक अधिकार है जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे है
1 – समानता का अधिकार
भारतीय समाज में अलग अलग धारम और जाती के लोग रहते है जिसकी वजह से समाज में काफी सारी असमानताएं देखने को मिलती है, इन्ही असमानताओं को दूर करने के लिए संविधान में समानता के अधिकार का वर्णन किया गया है।
कानून की समानता – देश में रहने वाले सभी धर्म, नस्ल, लिंग और जाती के लिए कानून सामान है, किसी भी इंसान के लिए कानून अलग नहीं है| किसी भी अपराध के लिए एक ही सजा निर्धारित की गई है चाहे अपराधी कोई भी हो, आप ऐसे भी कह सकते है की कानून की नजर में देश के सभी नागरिक समान है।
सामाजिक समानता – समाज में रहने वाले किसी भी नागरिक के खिलाफ धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान इत्यादि के आधार पर उस नागरिकों के जीवन के किसी क्षेत्र में पक्षपात नहीं किया जा सकता है|
अवसर की समानता – राज्य में रहने वाले सभ नागरिको को सरकारी नौकरी में समान अवसर प्राप्त होता है अर्थात राज्य में सरकार पड़ पर भर्ती के लिए आवेदन किसी भी धर्म, लिंग, जाती और रंग इत्यादि के इंसान कर सकते है|
अस्पृश्यता या छुआछूत का अंत – प्राचीन समय अस्पृश्यता या छुआछूत की समस्या काफी ज्यादा देखने को मिलती थी, संविधान में अस्पृश्यता को खत्म कर दिया और अगर कोई भी इस नियम का पालन नहीं करता है तो ऐसे इंसान को कानून का अपराधी माना जाता है और उसे दंड मिलता है|
समानता का अधिकार – सार्वजनिक दुकान, होटल, नदी, तालाबों और कुओं इत्यादि सभी सार्वजनिक जगहों पर किसी भी धर्म, रंग, लिंग, नस्ल और जाती का इंसान प्रवेश कर सकता है, यह एक संवैधानिक अधिकार होता है।
2 – स्वतंत्रता का अधिकार
स्वतंत्रता यानी आजादी हर इंसान की चाहत और अधिकार होती है, एक सच्चे लोकतंत्र का आधारभूत स्तंभ स्वतंत्रता ही होती है। भारतीय संविधान के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक की आजादी के अधिकारों के बारे में हम आपको नीचे बता रहे है
विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता – देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार दिया गया है, इंसान भाषण या लेखन या अन्य प्रकार के माध्यम से अपने विचारो को व्यक्त कर सकता है|
समुदाय बनाने की स्वतंत्रता – भारत में रहने वाले हर एक इंसान को भारतीय संविधान में समुदाय बनाने की स्वतंत्रता दी गयी है अर्थात देश का कोई भी नागरिक अपने धार, शिक्षा, जाती, नस्ल और रंग इत्यादि के आधार पर आप समुदाय बना सकते है|
देश में घूमने की स्वतंत्रता – भारत के प्रत्येक नागरिक देश के किसी भी हिस्से में बिना किसी रोक टोक के घूमने या रहने की पूरी आजादी है|
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार – भारत में रहने वाले इंसान की पर्सनल या निजी सम्पति या निजता में कोई अन्य इंसान दखल नहीं दे सकता है और अगर कोई इंसान ऐसा करता है तो उसके लिए दंड का प्रावधान है|
निर्दोष साबित करने का अधिकार – देश में रहने वाले किसी भी नागरिक को अगर किसी गलत अपराध या गलती से पकड़ा गया है तो उस इंसान को आपराधिक मामलों में अपने आपको निर्दोष साबित करने का अधिकार दिया गया है।
जीवन और शरीर की रक्षा करने की स्वतंत्रता – देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को अपने प्राण या शरीर की रक्षा करने का अधिकार दिया गया है|
शिक्षा का अधिकार – भारतीय संविधान देश में रहने वाले सभी नागरिको को शिक्षा पाने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है|
3 – शोषण के विरूद्ध अधिकार
भारतीय संविधान में शोषण के खिलाफ भी कई अधिकार दिए गए है, जिनके बारे में हम आपको नीचे जानकारी दे रहे है
मनुष्यों की खरीद और बिक्री निषेध – आप सभी ने कभी ना कभी सुना होगा की प्राचीन समय में इंसानो को खरीदा और बेचा जाता था, लेकिन भारतीय संविधान में पुरुष, स्त्रियों और बच्चों की खरीद और बिक्री पर पूर्ण रूप से रोक है और अगर कोई इंसान करता हुआ पकड़ा जाता है तो उसके खिलाफ दण्डनीय कार्यवाही की जाती है|
बाल श्रम निषेध – भारतीय संविधान में 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चो को कारखानों या किसी भी जगह पर नौकरी या काम करने के लिए नहीं रखा जा सकता है, अगर कोई इंसान बच्चो को काम पर रखता है तो उसके खिलाफ सजा का प्रावधान है|
4 – धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ यह है की देश में रहने वाले किसी धर्म में आस्था रखने में या आस्था ना रखने के बारे में केंद्र या राज्य सरकार हस्तक्षेप नहीं करेगी, भारत में रहने वाले अलग अलग धर्मो को मानने वाले नागरिको धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान में दिया गया है, जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे है
धार्मिक स्वतंत्रता – भारतीय संविधान में भारत में रहने वाले प्रत्येक इंसान को अपने धर्म का आचरण और प्रचार करने की आजादी है, देश में रहने वाले इंसान को धर्म को मानने, उपासना करने और धर्म का प्रचार करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी गई है|
धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध की स्वतंत्रता – यह तो आप अच्छी तरह से जानते होंगे की भारत में विभिन्न धर्म और जाती के लोग रहते है, ऐसे में देश में रहने वाले सभी धर्मो के अनुयायियों को धार्मिक संस्थाओं की स्थापना, संचालन, धार्मिक मामलों का प्रबंध, धार्मिक संस्थाओं द्वारा चल और अचल संपत्ति अर्जित करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
व्यक्तिगत या शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा देने की स्वतंत्रता – भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी केंद्रीय और राजकीय शिक्षण संस्था में किसी भी तरह के धर्म की शिक्षा देने की स्वतंत्रता नहीं है|
5 – संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
भारतीय संविधान में देश में रहने वाले नागरिकों को संस्कृति और शिक्षा अधिकार दिए गए है, जिनके बारे में हम आपको जानकारी उपलब्ध करा रहे है
अल्पसंख्याकों के हितों का संरक्षण – भारतीय संविधान के अनुसार अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूर्ण अधिकार मिलता है।
अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करने का अधिकार – भारत में कई सारे अल्पसंख्यक वर्ग जैसे मुसलमान, सिख, पारसी, जैन, ईसाई और बौद्ध इत्यादि| भारतीय संविधान में सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपने धर्म के अनुसार शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और उनके प्रशासन का अधिकार दिया गया है। संविधान द्वारा दिया यह अधिकार अल्पसंख्यक वर्गों को उनके धर्म, संस्कृति और भाषा के संरक्षण का अधिकार दिया है|
6 – संवैधानिक उपचारों का अधिकार
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के संरक्षण को लागू कराने के लिए न्यायालय जाने का अधिकार दिया गया है, संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान की आत्मा कहा जाता है| सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने पर 5 तरह की रिट बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध लेख, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा जारी कर सकता है|
मौलिक अधिकार की विशेषता
मौलिक अधिकारों की काफी सारी विशेषता देखने को मिलती है, नागरिक कानून के अंतर्गत इंसान को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है, संगठन बनाने का अधिकार है और आंदोलन करने का समान अधिकार है इत्यादि। ऐसा इंसान जो कानून के अनुसार काम करता है तो ऐसे किसी भी इंसान को जीवन जीने से या स्वतंत्रता या संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है| कानून अल्पसंख्यकों को उनकी भाषा और संस्कृति और लिपि को संरक्षित और सुरक्षित रखने की अनुमति प्रदान करता है। मौलिक अधिकार ही असलियत में इंसानो को सुरक्षित रखने के साथ साथ अल्पसंख्यक समुदायो में भेदभाव और पक्षपात से सुरक्षित रखने की अनुमति देता है| इंसानो को संरक्षण देने के लिए संविधान में तीन अनुच्छेद बनाए गए है, जिसमे पहला अनुच्छेद 17 है जिसके अंतर्गत देश में छूआछूत को खत्म किया गया है, दूसरा अनुच्छेद 15 (2) है, जिसके अंतर्गत देश में रहने वाले किसी भी इंसान को उसकी जाति, नस्ल, धर्म और जन्म स्थान के आधार पर सार्वजनिक चीजें जैसे दुकान, स्थान, रेस्टोरेंट, सड़क और कुँए इत्यादि का इस्तेमाल करने से रोक सके, सरल भाषा में समझे तो किसी भी सार्वजानिक दुकान, सड़क और रेस्टोरेंट इत्यादि का इस्तेमाल किसी भी धर्म या जाती का इंसान कर सकता है| तीसरा अनुच्छेद 23 है जिसके अंतर्गत देश में बाल शोषण और बंधुआ मजदूरी पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध लगा हुआ है| भारतीय संविधान में बताए गए मौलिक अधिकार की विशेषता बहुत सारी है जिनमे से कुछ विशेषताओं के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है –
1 – मौलिक अधिकार की विशेषता में शामिल है नागरिकों को स्वतन्त्रता का अधिकार, देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को स्वंत्रता पूर्वक जीने का अधिकार है और कोई भी कानून नागरिक के इस अधिकार को छीन नहीं सकता है| नागरिक के स्वतन्त्रता का अधिकार को छह भागो में बांटा गया है और सभी में विभिन्न स्वतन्त्रताओं और उनके अपवादों के बारे में जानकारी दी गई है|
2 – संविधान में नागरिको के अधिकारों के बारे में बताया गया है और देश में रहने वाले सभी नागरिको को संविधान में बताए गए अधिकारों से अलग कोई अधिकार प्राप्त नहीं है| भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से बताया गया है की देश में रहने वालेसभी नागरिको को केवल संविधान में लिखे हुए अधिकार ही प्राप्त है, इसके अलावा किसी भी अधिकार को मान्यता नहीं है। अगर आप किसी भी ऐसे अधिकार का इस्तेमाल करते है जो संविधान में नहीं लिखा है तो आपको इसके नुक्सान भी झेलने पड़ सकते है|
3 – मौलिक अधिकार की सबसे बड़ी विशेषता है सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रपात होना, यह तो आप सभी अच्छी तरह से जानते है की भारत में अलग अलग धर्म, रंग, जाती इत्यादि लोग रहते है| भारत में मिलने वाले मौलिक अधिकार सभी को सामान रूप से प्राप्त होते है, ऐसा नहीं है की अलग अलग धर्म, नस्ल और जाती के लोगो को अलग अलग अधिकार मिलते है, भारतीय संविधान के अनुसार देश में रहने वाले सभी नागरिक एक सामान और उन सभी को सामान अधिकार मिलते है|
4 – भारतीय संविधान में सरकार को राज्य की सुरक्षा के लिए, सार्वजनिक व्यवस्था और लोक-कल्याण के लिए जरुरत पढ़ने पर प्रतिबन्ध लगाने का अधिकार दिया है, जिसके अनुसार राज्य सरकार समय की नजाकत को देखते हुए उचित प्रतिबन्ध लगा सकती है| किसी भी कारणवश अगर राज्य सरकार राज्य की सीमा पर किसी भी तरह का प्रतिबन्ध लगाती है तो उस प्रतिबन्ध को सभी नागरिको को मानना पड़ेगा चाहे वो किसी भी जाति, लिंग, रंग और धर्म इत्यादि का हो| किसी भी खास धर्म या जाती के इंसानो को किसी भी प्रकार की विशेष सुविधा प्राप्त नहीं होती है|
5 – भारतीय संविधान में देश में रहने वाले नागरिको और विदेश में रहने वाले नागरिको के मौलिक अधिकारों के बारे में अलग अलग वर्णन किया गया है| भारत में रहने वाले सभी नागरिको को कुछ मौलिक अधिकार जैसे देश के किसी भी हिस्से में घूमने फिरने या रहने की आजादी, अपने विचार प्रकट करने की आजादी इत्यादि दिए गए है| लेकिन विदेशियों को यह अधिकार प्राप्त नहीं होते है विदेशियों को देश में रहने वाले नागरिको से अलग कुछ अधिकार प्राप्त है|
6 – जरुरत पड़ने पर देश के नागरिको को मिलने वाले अधिकारों को निरस्त किया जा सकता है, भारतीय संविधान में संकटकाल की स्थिति में अधिकारों को निलम्बित करने का प्रावधान दिया गया है| अगर कभी भी देश पर किसी भी बाहरी देश आक्रमण कर दें या किसी किसी अन्य कारण से देश में संकट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो इस स्थिति में राष्ट्रपति सम्पूर्ण देश में या देश के किसी भी एक या ज्यादा हिस्सों में संकटकालीन घोषणा करने के अलावा जरुरत पड़ने पर नागरिक के अधिकारों जैसे स्वतन्त्रता का अधिकार और संवैधानिक अधिकार इत्यादि को निलम्बित किया जा सकता है।
7 – भारत में मौलिक अधिकार न्यायसंगत होने की वजह से किसी प्रकार का भेदभाव होने की सम्भावना नहीं है, भारतीय संविधान में देश में रहने वाले नागरिको के मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए विशेष व्यवस्था करी गई हैं। आसान भाषा मे समझे तो अगर देश में रहने वाले किसी भी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन या हनन हो रहा है तो इस स्थिति में वो नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की शरण में जा सकता है, जिसके बाद हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट नागरिक के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के आर्डर कर सकता है| अगर किसी भी इंसान या सरकार या संस्था के द्वारा किसी भी इंसान के मौलिक अधिकारों का हनन किया जाता है तो ऐसी स्थिति में दोषी इंसान या संस्था के खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है|
8 – भारतीय संविधान में संसद को यह अधिकार भी दिया है की संसद स्थिति के अनुसार अधिकारों को कम या ज्यादा कर सकती है, जरुरत के हिसाब से संसद नागरिको के मौलिक अधिकारो में आसानी से संशोधन कर सकती है। लेकिन संसद अगर कोई भी ऐसा संशोधन करती है जिससे मौलिक अधिकारों को किसी भी प्रकार की हानि पहुँचती है तो सर्वोच्च न्यायालय उस संशोधन को रद्द कर सकता है, इसके अलावा संसद को साधारण कानूनों द्वारा मौलिक अधिकारों में किसी प्रकार का संशोधन करने की अनुमती नहीं होती है|
9 – भारत में अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकार का प्रावधान भी है, यह तो हम सभी अच्छी तरह से जानते है की देश में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनों तरह के लोग मौजूद है| ऐसे में अल्पसंख्यकों के हितों का विशेष ध्यान रखते हुए दो अधिकार धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार और सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार दिए गए हैं। इन अधिकारों की वजह से देश में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगो को अपने धर्म के प्रति पूर्ण स्वंत्रता प्राप्त होती है और दूसरे अधिकार से ऐसे लोग अपने धर्म के सांस्कृतिक प्रोग्राम का आयोजन स्वंत्रतापूर्वक कर सकते है, इन दोनो अधिकारों को लिखने का मुख्य उद्देश्य एक आदर्श लोकतन्त्र में अल्पसंख्यकों को पनपने का अवसर दिया जाना है।
10 – भारत की शस्त्रधारी सेनाओं के अधिकारो को भी सीमित किया जा सकता है, सेनाओं में अनुशासन को बनाए रखने के लिए संसद जरुरत के अनुसार मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है।
11 – अगर किसी भी इंसान के मूलिक अधिकार छीन लिए गए है, ऐसी स्थिति में आप भारतीय संविधान की धारा 226 की मदद से छीने गए अधिकार को लागू करवा सकते है| मौलिक अधिकार लागू करवाने के लिए आपको उच्च न्यायालय की शरण में जाना होगा|
निष्कर्ष –
ऊपर आपने मौलिक अधिकार क्या है? (maulik adhikar kya hai) के बारे में जानकारी प्राप्त की, अगर आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई हो तो हमारे इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करें|