हरित क्रांति का नाम आपने कभी ना कभी जरूर सुना होगा, काफी इंसान हरित क्रांति के बारे में अच्छी तरह से जानते है लेकिन कुछ लोगो को हरित क्रांति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। भारत के विकास में हरित क्रांति का काफी अहम् योगदान रहा था। आजादी के बाद भारत में कृषि उत्पादन को बढ़ाने में हरित क्रांति काफी मददगार साबित हुई थी। जिन इंसानो को हरित क्रांति के बारे में जानकारी नहीं होती है वो अक्सर इंटरनेट पर हरित क्रांति क्या है? भारत हरित क्रांति के जनक कौन थे? हरित क्रांति के फायदे और हरित क्रांति के नुक्सान इत्यादि लिखकर सर्च करते है। अगर आपको हरित क्रांति के बारे में जानकारी नहीं है तो परेशान ना हो आज हम अपने इस लेख में हरित क्रांति के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है। चलिए सबसे पहले हम आपको हरित क्रांति क्या है (Harit Kranti Kya Hai)? के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है
हरित क्रांति क्या है (Harit Kranti Kya Hai)?
हरित क्रांति शुरू होने का मुख्य उद्देश्य लगभग सभी देशों को खाद्यान्न फसलों में आत्मनिर्भर बनाने का था। जब किसी भी देश में कृषि उत्पादन बढ़ता है तो उस देश का विकास काफी तेजी से होता है। हरित क्रांति का सबसे बड़ा फायदा विकासशील देशों पर दिखाई दिया था। भारत में आजादी के बाद कृषि उत्पादन ज्यादा नहीं होता था, जिसकी वजह से देश के सामने काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। देश में कुछ खाने पीने की चीजों का आयात तक करना पड़ता था। इस समस्या को दूर करने में हरित क्रांति ने अहम् रोल निभाया, हरित क्रान्ति के बाद देश में कृषि उत्पादन काफी तेजी से बढा। हरित क्रांति के बाद देश को खाने पीने की चीजों के लिए किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं होना पड़ता था।
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत कब हुई ?
काफी सारे लोगो के मन में यह सवाल रहता है की भारत में हरित क्रांति की शुरुआत कब हुई थी? तो हम आपको बता दें की भारत में हरित क्रांति की शुरुआत वर्ष 1966 में हुई थी। भारत में हरित क्रांति के जनक एम. एस. स्वामीनाथन को माना जाता है और बाबू जगजीवन राम ने देश में हरित क्रांति (Harit Kranti Kya Hai) का संचालन करने में अहम् योगदान दिया था या।
भारत में हरित क्रांति के जनक
ऊपर आपने पढ़ा की हरित क्रांति क्या है (Harit Kranti Kya Hai)? अब हम हरित क्रांति के जनक के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है। काफी सारे इंसानो के मन में यह सवाल रहता है की भारत में हरित क्रांति के जनक कौन थे? या भारत में हरित क्रांति की शुरुआत किसने की थी? भारत में हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन को माना जाता है। एमएस स्वामीनाथन का जन्म तमिलनाडु राज्य के कुंभकोणम में 7 अगस्त 1925 में हुआ था। स्वामीनाथन एक जेनेटिक्स वैज्ञानिक के रूप में काम करते थे, स्वामीनाथन ने कई आविष्कार किए थे जिनमे से एक आविष्कार बहुत ज्यादा लाभदायक हुआ था। स्वामीनाथन ने देखा की मेक्सिको में खेती काफी अच्छी हो रही है तो उन्होंने मेक्सिको के बीजों को भारत के पंजाब राज्य के बीजों के साथ मिलाकर एक नई किस्म के बीज का निर्माण किया। स्वामीनाथन के द्वारा निर्मित नए बीज के जरिए फसल का उत्पादन काफी ज्यादा बढ़ा। भारत में स्वामीनाथन ने कृषि क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया था, जिसकी वजह से उन्हें भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से भी नवाजा था। देश में हरित क्रांति लाने में स्वामीनाथन का बहुत बड़ा योगदान था।
हरित क्रांति के घटक
भारत में हरित क्रांति के घटक निम्न प्रकार है
1 – उन्नत किस्म के बीजों का उपयोग
हरित क्रांति से पहले देश में फसलों का उत्पादन काफी कम होता था। फसलों का उत्पादन कम होने के पीछे का कारण उन्नत बीजो का मौजूद ना होना था। भारत में हरित क्रांति का सबसे महत्वपूर्ण घटक कृषि में उन्नत और बेहतरीन किस्म के बीजों का इस्तेमाल करना था। देश में सबसे पहले हरित क्रांति के फलस्वरूप मेक्सिको से सबसे अच्छे किस्म के बीज आरोही, सोनारा 63, व वसुंधरा 64 लाए गए थे। इन बीजो से देश में फसल का उत्पादन काफी बढ़ने लगा था। उसके बाद डॉ स्वामीनाथन ने मेक्सिको से आए बीजो को और देसी बीजो को मिलाकर एक ऐसी किस्म के बीज तैयार किए गए जो बहुत ज्यादा उत्पादन करने में सहायक होगी। स्वामीनाथन द्वारा तैयार बीजो की वजह से देश में कृषि उत्पादन बहुत तेजी से होने लगा था। धीरे धीरे बीजो की मदद से देश के अलग अलग क्षेत्रो में फसल का उत्पादन तेजी से बड़ा था।
2 – रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल
यह तो हम सभी अच्छी तरह से जानते है की किसी भी फसल की वृद्धि और विकास के लिए काफी सारे पोषक तत्वों की जरुरत होती है। अगर फसलों को वो सभी पोषक तत्व नहीं मिलते है तो फसलों का उत्पादन कम होता है। फसलों का विकास और उत्पादन बेहतर करने के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश इत्यादि पोषक तत्वों का होना बहुत ज्यादा जरुरी है। जांच के बाद पता चला की भारत की मिटटी में ऐसे सभी पोषक तत्वों की कमी देखने को मिली, इसीलिए भारत में फसलों का उत्पादन कम होता था। हरित क्रांति के आने से पहले देश के अधिकतर या लगभग सभी किसानो को पोषक तत्वों की कमी के बारे जानकारी नहीं थी। देश में लगभग सभी किसान गोबर और जैविक खादो का इस्तेमाल किया करते थे, जिसकी वजह से देश में फसलों का उत्पादन उतना अच्छा नहीं होता था। हरित क्रांति आने के बाद देश के किसानो को मिटटी में पोषक तत्वों की कमी के बारे में जानकारी और उस कमी को पूरा करने के लिए रासायनिक उर्वरकों के बारे में पता चला। धीरे धीरे किसानो ने रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करना शुरू किया, जिसके बाद फसलों के उत्पादन में बहुत तेजी से वृद्धि देखने को मिली। उसके बाद पुरे देश में काफी तेजी से रासायनिक उर्वको का इस्तेमाल बड़ा था।
3 – सिंचाई सुविधाओं में बढ़ोतरी
अगर किसी जगह पर पानी की सुविधा नहीं है तो उस जगह पर खेती होना लगभग नामुमकिन है। फसल के बेहतर उत्पादन के लिए उन्नत किस्म के बीज, बेहतरीन मिटटी के साथ साथ सबसे महत्पूर्ण है पानी की सुविधा। हरित क्रांति से पहले के समय पर नजर डालें तो देश के अधिकतर हिस्सों में खेती मानसून के भरोसे होती थी। अगर बारिश अच्छी हुई तो फसल का उत्पादन भी अच्छा हुआ और अगर बारिश कम हुई तो फसल का उत्पादन भी कम होता था। हरित क्रांति के बाद भारत में कृषि के लिए सिंचाई सुविधा का सबसे ज्यादा विकास देखने को मिला था। सिचाई की सुविधा उपलब्ध होने के बाद देश में फसलों का उत्पादन बढ़ने लगा था क्योंकि पानी की कमी खत्म हो गई थी। फसलों को उनकी जरुरत के अनुसार पानी उपलब्ध होने की वजह से उत्पादन भी बढ़ गया।
4 – पौधों को रोगों एवं कीटों से बचाव
फसलों के उत्पादन को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है शत्रु कीट और फसलों में लगने वाले रोग। अगर आपकी फसल काफी अच्छी हो रही है और उस फसल पर शत्रु कीट हमला कर दें तो फसल नष्ट हो जाती है इसके अलावा अगर फसल में कोई रोग लग जाएं तो भी फसल नष्ट हो जाती है। देश में हरित क्रांति आने से पहले इन परेशानियो का कोई उपाय मौजूद नहीं था। हरित क्रांति के बाद किसानो को कीटों और रोगों से बचाव के लिए अलग अलग तरह की रासायनिक कीटनाशक दवा और फसलों को रोग से बचाने की डावाओ के बारे जानकारी प्राप्त हुई। जिसके बाद लोगो ने इन डावाओ का इस्तेमाल करके अपनी फसलों को सुरक्षित रखना शुरू कर दिया और फसलों के उत्पादन में वृद्धि देखने को मिली।
5 – अलग अलग तरह की फसलों की जानकारी
हरित क्रांति से पहले की कृषि पर नजर डालें तो देश के अधिकतर भागो में एक या दो फसलों का उत्पादन ही किया जाता था। इसके पीछे का कारण यह था की लोगो को अलग अलग फसलों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी इसके अलावा लोगो के पास आने फैसलो के बीजो की भी कमी थी। हरित क्रांति के बाद लोगो को अलग अलग फसलों के बारे में जानकारी मिली, हरित क्रांति में लोगो को अलग अलग फसलें उगाने के फायदों के बारे में बताया गया। एक साल में किसान अपनी जमीन कितनी तरह की फसल लगा सकते है और किस फसल से उन्हें ज्यादा मुनाफा मिलेगा इत्यादि जानकारी दी गई। हरित क्रांति के बाद किसानो के जागरूकता आने लगी और धीरे धीरे लोगो ने अलग अलग फसलों की खेती शुरू की, आज के समय में भारत में 70% से ज्यादा क्षेत्रों में बहु फसली खेती होती है।
6 – आधुनिक कृषि यंत्रो का इस्तेमाल बढ़ा
प्राचीन समय की खेती पर नजर डालें तो भारत में किसानो के पास कृषि से सम्बंधित यंत्रो की भरी कमी नजर आती थी। भारत में किसान बैलों से जुताई करते, धान की कुटाई खुद करते थे ऐसे सभी काम करने में बहुत ज्यादा समय और मेहनत लगती थी। हरित क्रांति के दौरान देश के किसानो को कृषि मे इस्तेमाल होने वाले विभिन्न प्रकार के कृषि उपकरणो के बारे में जानकारी दी गई। हरित क्रांति में कृषि में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों का इस्तेमाल करने पर काफी ज्यादा जोर दिया गया। कृषि में नए नए उपकरणों का इस्तेमाल करने से फसलों का उत्पादन बढ़ने के साथ साथ फसलों में लगने वाली लागत में काफी कमी देखने को मिली। भारतीय सरकार ने कृषि में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए अलग अलग प्रकार की सब्सिडी भी दी गई, जिससे किसान इन उपकरणों का को आसानी से खरीद कर इस्तेमाल कर सकें।
7 – मिट्टी की जांच की सुविधा
हरित क्रांति से पहले किसानो को मिट्टी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। हरित क्रांति के दौरान मिट्टी में कौन से पोषक तत्व की कमी है इसके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए देश के अलग अलग हिस्सों में मृदा परीक्षण केंद्र की स्थापना की गई। इन केन्द्रो पर देश के अलग अलग हिस्से से लाई गई मिट्टी की जाँच की जाती थी। जाँच में यह पता चलता था की मिट्टी में कौन कौन से पोषक तत्वों की कमी है फिर मिट्टी केवल वो ही पोषक तत्व डाले जाते थे जिनकी कमी होती थी। इससे पूरे भारत में फसलों का उत्पादन बढ़ने लगा था।
हरित क्रांति के फायदे
ऊपर आपने जाना की हरित क्रांति क्या है (Harit Kranti Kya Hai)? अब हम आपको हरित क्रान्ति के फायदे के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है। हरित क्रांति आने के बाद देश में काफी बदलाव देखने को मिलें। चलिए अब हम आपको हरित क्रांति के फायदों या हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है
1 – देश में रोजगार बढ़ा
हरित क्रांति आने से पहले देश में रोजगार सिमित थे क्योंकि देश में अलग अलग तरह की फसल की जगह एक या दो तरह की फसल का उत्पादन होता था। जिसकी वजह से श्रमिकों की मांग ज्यादा नहीं थी लेकिन हरित क्रांति के दौरान किसानो को बहु फसलों के बारे में जानकारी मिली। इसीलिए हरित क्रांति के दौरान अलग अलग फसलों के उत्पादन के लिए श्रमिकों की मांग बढ़ने लगी जिसकी वजह से देश में रोजगार बढ़ने लगा। इसके आलावा खेतो में उर्वको का इस्तेमाल करने के लिए भी श्रमिकों की जरुरत पड़ती थी।
2 – देश से निर्यात में वृद्धि
भारत प्राचीन समय से कृषि प्रधान देश था लेकिन हरित क्रांति से पहले देश में कृषि से उत्पादन ज्यादा ना होने की वजह से निर्यात काफी कम होता था। हरित क्रांति आने के बाद देश खाद्यान में आत्मनिर्भर हो गया था। जिसकी वजह से भारत सरकार के पास काफी मात्रा में अनाज और अन्य खाद्य पदार्थो का पर्याप्त भंडार मौजूद रहने लगा था। इसके साथ साथ भारत खाद्यान पदार्थो का निर्यात करने लगा था। भारत से अनाज का निर्यात शुरू होने के बाद देश से निर्यात काफी बड़ी मात्रा में होने लगा था जिसकी वजह से देश में विदेशी पूंजी भी बढ़ने लगी थी।
3 – कृषि उत्पादन में लाभ
हरित क्रांति आने के बाद देश में फसलों का उत्पादन काफी तेजी से बढ़ने लगा था। जब किसानो की फसलों का उत्पादन बड़ा तो किसानो की आय में भी काफी वृद्धि देखने को मिली। अधिकतर किसान अपनी बढ़ी हुई आय को पुनः खेती या अन्य जगह पर निवेश करने लगे थे। जिसकी वजह से किसानो की आय तेजी से बढ़ने लगी थी।
4 – फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी
हरित क्रांति से पहले देश में उत्पादन काफी सिमित था लेकिन हरित क्रांति के बाद उर्वको का इस्तेमाल करने से देश में उत्पादन तेजी से बड़ा था। जिसके फलस्वरूप भारत दुनिया के बड़े कृषि उत्पादक देश के रूप में नजर आने लगा था। हरित क्रांति के बाद देश में गेहूं और चावल की अधिक फसल पैदा करने वाली किस्मों की वजह से उत्पादन में काफी ज्यादा वृद्धि देखने को मिली।
5 – औद्योगिक विकास में मदद
हरित क्रांति के दौरान देश में खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले नए नए उपकरणों की मांग काफी तेजी से बढ़ी। भारत में खेती करने के लिए ट्रेक्टर, कंबाइन, मोटर पम्प, थ्रेशर इत्यादि मशीनों के साथ साथ खरपतवार नाशी कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों की मांग भी काफी तेजी से बढ़ने लगी। नए नए उपकरण आने के बाद देश में औद्योगिक विकास भी काफी तेजी से देखने को मिला।
हरित क्रांति के नुक्सान
ऊपर आपने हरित क्रांति क्या है (Harit Kranti Kya Hai) और हरित क्रांति के फायदों के बारे में पढ़ा। अगर किसी चीज के सकारात्मक पक्ष होता है तो उसका नकारात्मक पक्ष भी जरूर होता है। चलिए अब हम आपको हरित क्रांति के नुक्सान या हरित क्रान्ति के नकारात्मक पक्ष के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है।
1 – मिटटी की उर्वरक क्षमता को नुक्सान
हरित क्रांति के दौरान फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए उर्वको का स्तेमाल काफी तेजी से बढ़ने लगा था। अधिकतर किसान नए नए प्रकार के बीजो की जरुरत के अनुसार उर्वको का इस्तेमाल काफी ज्यादा करने लगे थे, जिसकी वजह से फसल का उत्पादन तो बड़ा लेकिन मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होने लगी थी। इसके अलावा उर्वको के इस्तेमाल करने की वजह से मिट्टी के PH स्तर में वृद्धि देखने को मिली।
2 – बेरोजगारी का स्तर बढा
हरित क्रांति के दौरान कृषि के लिए नए नए उपकरण की मांग बढ़ी, कृषि के नए नए उपकरण आने के बाद देश में बेरोजगारी बढ़ने लगी। क्योंकि हरित क्रांति से पहले सभी काम मजदूरों के द्वारा किया जाता था लेकिन मशीने आने के बाद अधिकतर काम मशीन से होने लगा जिसके फलस्वरूप खेतो में काम करने वाले वर्ग में बेरोजगारी बढ़ी। हरित क्रांति का सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव ऐसे गरीब इंसान और मजदूर वर्ग पर देखने को मिला जिनके पास अपनी भूमि नहीं थी।
3 – भूजल स्तर में गिरावट
हरित क्रांति के दौरान ऐसी फसलों पर ज्यादा जोर दिया गया जिनमे जल की जरुरत काफी ज्यादा पड़ती थी। हरित क्रांति के दौरान पानी की पूर्ति करने के लिए नई नई मशीन लगाई गई। सिचाई पम्प से भूजल को निकालकर खेती में इस्तेमाल किया जाने लगा जिसकी वजह से भूजल का स्तर नीचे पहुँचने लगा। हरित क्रांति से पहले देश में कृषि मानसून पर निर्भर होती थी।
4 – सिमित फसलों का उत्पादन बढा
हरित क्रांति के दौरान अधिकतर किसान ऐसी फसल की खेती करनी शुरू की जिनका उत्पादन काफी ज्यादा था। अधिकतर किसान गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का इत्यादि की खेती ज्यादा करने लगे थे। जिसके फलस्वरूप अन्य फसलों जैसे – मोटे अनाज, दलहन, तिलहन, कपास, जुट और चाय इत्यादि की खेती पर जोर नहीं दिया जाता था।
5 – रासायनिकों के इस्तेमाल से नुकसान
यह तो आप समझ ही गए है की हरित क्रांति में फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्नत किस्म के बीजो के साथ साथ अलग अलग तरह के रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता था। जिनकी वजह से मिट्टी को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचने लगा था इसके अलावा उत्पादित फसलें भी रोगयुक्त होने लगी थी।
निष्कर्ष –
ऊपर आपने हरित क्रांति क्या है (Harit Kranti Kya Hai)? और हरित क्रांति के फायदे और नुक्सान के बारे पढ़ा। अगर आपको हमारे लेख में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करके ऐसे लोगो के पास तक पहुंचाने में मदद करें जिन्हे हरित क्रांति के बारे जानकारी नहीं है।