Gotra Kya Hota Hai? गोत्र कितने होते हैं और उनके नाम क्या हैं?

Gotra Kya Hota Hai?: अक्सर विवाह या पूजा के समय पर आपने गोत्र के बारे में जरूर सुना होगा, अधिकतर इंसान गोत्र के बारे में जानते है लेकिन कुछ इंसान सिर्फ गोत्र का नाम जानते है लेकिन उन्हें गोत्र के बारे में जानकारी नहीं होती है| हालाँकि हिन्दू धर्म के हर इंसान को गोत्र के बारे में जानकारी होनी चाहिए, जिन इंसानो को गोत्र के बारे में जानकारी नहीं होती है वो अक्सर इंटरनेट पर गोत्र क्या है (gotra kya hota hai) गोत्र कितने प्रकार के होते है? इत्यादि लिखकर सर्च करते है| अगर आपको भी गोत्र के बारे में जानकारी नहीं है तो हमारे इस लेख को अंत तक जरूर पड़ें क्योंकि आज हम अपने इस लेख में गोत्र से सम्बंधित जानकारी उपलब्ध करा रहे है|

हिन्दू धर्म के अंतर्गत आने वाली हर जाती के इंसानो के लिए गोत्र काफी महत्पूर्ण होता है लेकिन ब्राह्मण जाती के लोगो में गोत्र का महत्व बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। ब्राह्मणो में शादी से पहले लड़के और लड़की के गोत्र देखे जाते है इसके अलावा ब्राह्मण लड़की के गोत्र को लड़के की तीन पीढ़ियो से मिलाकर देखा जाता है, अगर लड़की का गोत्र लड़के की तीन पीढ़ियो से मिलता है तो उस लड़की से विवाह नहीं किया जाता है| हालाँकि वर्तमान में बहुत सारे ऐसे लोग भी है जो गोत्र को नहीं मानते है और बिना गोत्र मिलाए शादी कर देते है जिसकी वजह से उन्हें आगे चलकर कई सारी परेशानियो का सामना करना पढता है| चलिए अब हम सबसे पहले आपको गोत्र क्या होता है (gotra kya hai) के बारे में बताते है|

गोत्र क्या है? (Gotra kya hota hai): Gotra meaning in hindi

वर्तमान में आपको ऐसे बहुत सारे इंसान आसानी से मिल जाएंगे जिन्हे गोत्र के बारे में जानकारी नहीं होती है या उन्हें अपने गोत्र का पता ही नहीं होता है| गोत्र क्या है? (gotra kya hota hai) यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब सभी हिन्दू धर्म के अंतर्गत आने वाले इंसान को पता होना चाहिए| गोत्र को आप वंश भी कह सकते है और व्यावहारिक रूप में गोत्र का मतलब पहचान से होता है, चलिए हम आपको आसान भाषा में समझते है की आखिर गोत्र का क्या होता है? प्राचीन समय में एक ऋषि आचार्य के शिष्यों को गुरुभाई मानने के साथ साथ पारिवारिक संबंध भी स्थापित किए गए थे, जिस तरह भाई और बहन का विवाह नहीं किया जा सकता है, उसी तरह से गुरुभाइयों के बीच विवाह भी नहीं किया जा सकता है| किसी ऋषि कई सारे विवाह हुए हो और उन पत्नियों से ऋषि को कई सारी संतान प्राप्त हो, फिर जब संतान बड़ी हो जाती है तो वो संतान अलग अलग जगहों पर बस जाती है| उसके बाद संतान की संतान होती है फिर वो भी अलग जगह पर जाकर बस जाएं ऐसे में कौन आपका भाई या बहन है इसकी जानकारी करने के लिए गोत्र की उत्पत्ति की गई| गोत्र के माध्यम से आप आसानी से यह पता कर सकते है की आपके पूर्वज कौन थे, जैसे भारद्वाज गोत्र के पूर्वज ऋषि भारद्वाज और कश्यप गोत्र वाले इंसान कश्यप ऋषि की संतान है| जब आप विवाह के लिए लड़की देखने जाते है तो आपके उसके गोत्र से यह पता लगा सकते है की आपकी उस लड़की के साथ शादी हो सकती है या नहीं|

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विज्ञान की नजर से भी गोत्र का अपना अलग महत्व होता है, ऐसा माना जाता है की अगर किसी भी लड़के और लड़की का विवाह बिना गोत्र देखे कर दी जाती है और उन दोनों का गोत्र एक होता है तो उन्हे संतान प्राप्ति में भी परेशानी का सामना करना पढ़ सकता है| इसके अलावा सामान गोत्र के लड़के और लड़की की सोच में भी काफी ज्यादा असमानता दिखाई देती है और उनमे अनुवांशिक दोष भी देखने को मिलते है| चलिए अब हम आपको गोत्र के प्रकारो के बारे में बताते है 

गोत्र कितने प्रकार के होते हैं?

ऊपर आपने गोत्र के बारे में जानकारी प्राप्त की, लेकिन क्या आप जानते है की गोत्र कितने प्रकार के होते है, अधिकतर इंसानो को गोत्र के प्रकारो के बारे में जानकारी नहीं होती है| चलिए सबसे पहले हम आपको गोत्र के जन्म के बारे में बताते है, प्राचीन समय में सात ऋषियों महर्षि अत्रि, महर्षि भारद्वाज, महर्षि भृगु, महर्षि गौतम, महर्षि कश्यप, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र के द्वारा सात गोत्र की उत्पत्ति की गई जिनके नाम कश्यप, गौतम, वत्स्य, कुत्स, कौशिक, मंडव्य, वशिष्ठ थे, जैन धर्म में भी इन्ही सात गोत्र के बारे में बताया गया है| शुरुआत में सात गोत्र हुआ करते थे उसके बाद एक और गोत्र को इन गोत्रो में शामिल किया गया जिसके बाद गोत्र की संख्या आठ हो गई थी| उसके बाद जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे अलग अलग ऋषियों तथा साधुओं के गोत्र जुड़ते चले गए वर्तमान में गोत्रो की संख्या 115 से ऊपर हो गई है| गोत्र बढ़ने के कारण भी बहुत सारे है जैसे मूल ऋषियों के जो वंशज थे उनमे से कुछ वंशजो ने भी अपने नए वंश और गोत्र की शुरुआत की जिससे गोत्र की संख्या बढ़ गई इसके अलावा काफी सारे लोगो ने किसी ऋषि से प्रेरित होकर उसके नाम पर अपना गोत्र रख लिया, इसी तरह से अलग तरह से गोत्रो की संख्या बढ़ती रही|

अपना गोत्र कैसे निकाले? अपना गोत्र कैसे पता करें ?

वर्तमान में ऐसे बहुत सारे इंसान मिल जाएंगे जिन्हे अपने गोत्र के बारे में जानकारी नहीं होती है, हालाँकि प्राचीन समय में ऐसा नहीं था प्राचीन समय में गोत्र को काफी ज्यादा महत्व दिया जाता था| अगर आपको अपने गोत्र के बारे में जानकारी नहीं है और आपके मन में सवाल आ रहा है अपने गोत्र के बारे में जानकारी कैसे निकालें या अपने गोत्र के बारे में कैसे पता करें? तो हम आपकी इस परेशानी का समाधान करने की कोशिश करते है| दरसल किसी भी इंसान का गोत्र उसके पूर्वजों से जुड़ा हुआ होता है, पूर्वजो के आधार पर ही आपका गोत्र निर्धारित होता है| इसीलिए अगर आपको अपना गोत्र मालूम नहीं है तो आप अपनी वंशावली से अपना गोत्र पता कर सकते है या सबसे आसान तरीका यह है की आपके घर में जो बुजुर्ग अर्थात दादा जी या परदादा जी या फिर अपने पिता से अपने गोत्र के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है| संयोग से घर में कोई बड़ा नहीं है तो आप अपने चाचा या ताऊ से गोत्र के बारे में पता कर सकते है क्योंकि आपके चाचा और ताऊ का गोत्र भी वहीँ होगा जो आपका है|

लेकिन कुछ लोग अपने रिश्तेरदारो या बुजुर्गो से पूछने की बजाए इंटरनेट पर गोत्र पता करना का तरीका सर्च करते है| वर्तमान में कुछ वेबसाइट ऐसी है जो गोत्र के बारे में जानकारी उपलब्ध कराती है तो हम आपको बता दें कोई भी वेबसाइट आपके गोत्र की जानकारी सही और सटीक नहीं दे सकती है| गोत्र के बारे में सही और सटीक जानकारी केवल आपके परिवार का कोई सदस्य या सगा या बुजुर्ग ही दे सकता है, इसीलिए इंटरनेट पर कभी भी अपने गोत्र के बारे में जानने के लिए सर्च ना करें| एक बात निश्चित है की आपका गोत्र आठ ऋषियों में से किसी एक के नाम पर ही होगा| अगर आप गांव में रहते है या आपके घरवाले गांव में रहते है तो आप आसानी से अपने गोत्र की जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते है क्योंकि अधिकतर मामलो में देखा गया है की गाँव में अधिकांश घर एक ही गोत्र के होते है, इसीलिए आप गांव में अपने घर के आस पास रहने वाले लोगो से अपने गोत्र के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है| अधिकतर घरो में देखा गया है की उनके पूर्वज गांव में रहते थे लेकिन आप या आपके घरवाले पिछले 40 या 50 वर्षो से शहर में रह रहे है, ऐसी स्थिति में आपको उस गांव में जाना होगा जिसमे आपके पूर्वज रहते थे, फिर उस गांव में जाकर आप आसानी से लोगों से अपने पूर्वजो के गोत्र के विषय में जानकारी कर सकते है, आपके पूर्वज का गोत्र ही आपका गोत्र होगा| लेकिन अगर आपको किसी भी तरह से अपने गोत्र के बारे में जानकारी नहीं मिल पा रही है तो आप अपने गोत्र को कैसे जाने इसके बारे में हम नीचे बता रहे है

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गोत्र भूल गए हैं तो क्या करें?

अगर आप अपना गोत्र भूल गए हैं या आपको अपने गोत्र के बारे में जानकारी नहीं हो पा रही है तो ऐसी स्थिति में इंसान को कश्यप गोत्र को अपना गोत्र मान लेना चाहिए| इसके पीछे का कारण यह सभी गोत्रो में से कश्यप गोत्र को सबसे बड़ा गोत्र माना जाता है, एक बात तो निश्चित है की आप सात मुख्य गोत्रों में से किसी एक गोत्र के तो होंगे ही| भारत की बहुसंख्यक आबादी का गोत्र कश्यप ही है ऐसे में अगर आप भी अपना गोत्र कश्यप मान लेते है तो आप भी उस बड़ी आबादी का हिस्सा होंगे जिनका गोत्र कश्यप है| भारत की लगभग सभी हिंदू जातियो में कुछ न कुछ जाती के लोग कश्यप गोत्र के जरूर देखने को मिलेंगे| चलिए अब हम जानते है की सभी गोत्रो में से सबसे बड़ा गोत्र कौन सा है और क्यों

सबसे बड़ा गोत्र कौन सा है?

मुख्य गोत्रो में सबसे बड़ा गोत्र कश्यप गोत्र को ही माना गया है, कश्यप गोत्र को सबसे बड़ा मानने के पीछे की वजह यह है की कश्यप गोत्र में ब्राह्मण और क्षत्रिय भी शामिल हैं। इसके अलावा कश्यप गोत्र को सबसे बड़ा गोत्र मानने के पीछे का कारण यह भी है कि कश्यप ऋषि के बहुत सारे विवाह हुए थे। कश्यप के बहुत सारे विवाह होने की वजह से कश्यप ऋषि के वंशज अन्य ऋषियों के मुकाबले बहुत ज्यादा थे| यहीं कारण है की जिन ब्राह्मणो को अपने गोत्र के बारे में जानकारी नहीं होती है वो अपना गोत्र कश्यप गोत्र को ही मान लेते है| अगर आप कश्यप गोत्र पर नजर डालें तो उसमे में ब्राह्मण और क्षत्रिय के अलावा कई सारी अनुसूचित जाति की भी कई जातियां दिखाई देगी, वर्तमान में काशीप गोत्र में 50 से अधिक जातियां शामिल है| कश्यप गोत्र में मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तराखण्ड, जम्मू और कश्मीर, चंडीगढ़, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान के लोगों में देखने को मिलता है, आप ऐसे भी समझ सकते है की भारत के उत्तरी हिस्से में कश्यप गोत्र के लोग अधिक संख्या मेदेखने को मिलते है| 

सभी गोत्रों का जन्म एक साथ हुआ है या नहीं?

काफी सारे लोगो के मन में यह सवाल भी रहता है की सभी गोत्रो का जन्म एक साथ हुआ है बाल अलग अलग| तो हम आपको बता दें की सभी गोत्रो का जन्म अलग अलग हुआ है, शुरुआत में चार गोत्र अंग्रिश, कश्यप, भृगु तथा वशिष्ठ थे जिनके बारे में आपको महाभारत में भी पढ़ने को मिलता है, फिर बाद में चार गोत्र और शामिल किए गए जिनका नाम अत्रि, जमदग्नि, विश्वामित्र और अगस्तय। प्राचीन समय में जाती व्यवस्था काफी कठोर होने की वजह से गोत्रों की प्रमुखता बहुत ज्यादा बढ़ने के साथ साथ लोगो को यह विश्वास भी हो गया था कि यह सभी ऋषि ब्राह्मण थे। 

हिन्दू धर्म में गोत्र और विवाह संबंध

आमतौर पर गोत्र का महत्व हिन्दू धर्म में ही देखने को मिलता है, हिन्दू धर्म में गोत्र का महत्व पूजा से लेकर विवाह तक देखने को मिलता है| खासतौर पर हिन्दू धर्म में विवाह गोत्र देख कर की जाती है, अगर लड़के और लड़की का गोत्र समान या एक होता है तो उन दोनों विवाह नहीं किया जाता है| प्राचीन समय से एक गोत्र के लड़के लड़की के विवाह को मनाही है क्योंकि एक गोत्र के लड़के लड़की का विवाह करने से बहुत सारे दोष लगते है| विवाहित जोड़े पर किसी भी प्रकार दोष ना आगे इसीलिए हिन्दू धर्म में अलग अलग गोत्र के लड़के और लड़की का विवाह किया जाता है| शुरुआत में दोषो को देखते हुए ब्राह्मणो ने अलग अलग गोत्रो में लड़के और लड़की की शादी करनी शुरू की उसके बाद धीरे धीरे क्षत्रिय, वैश्यों और अन्य जातियों ने भी इस प्रथा को अपनाया। जिन लोगो को अपने गोत्र के बारे में जानकारी नहीं थी उन सभी लोगो ने अपने आस पास मौजूद ब्राह्मणों तथा गुरुओं के गोत्रों को ही अपना गोत्र मान लिया था, फिर उसी गोत्र के हिसाब से वो विवाह करते थे|

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हिन्दू धर्म में विवाह के लिए लड़के और लड़की के गोत्र कैसे मिलाये जाते है?

काफी सारे इंसान यह सोचते है की हिन्दू धर्म में विवाह के लिए सिर्फ लड़के और लड़की के गोत्र देखे जाते है हालाँकि यह सच नहीं है दरसल हिन्दू धर्म में लड़के और लड़की के गोत्र देखने के साथ साथ लड़की के गोत्र को लड़के की माँ और दादी के गोत्र से भी मिलाया जाता है। ऐसा करने के पीछे का कारण यह है की अगर लड़के की तीन पीढ़ियो में से किसी के भी गोत्र अगर लड़की के गोत्र से मिल जाए तो उस लड़की से विवाह नहीं करना चाहिए, लड़की के गोत्र लड़के की तीन पीढ़ियो में से किसी के साथ मिलने नहीं चाहिए तभी उन दोनों का विवाह संभव है| मान लीजिए किसी लड़के और लड़की का गोत्र आपस में नहीं मिलता है लेकिन लड़की का गोत्र लड़के की माँ या दादी से मिलता है तो शादी नहीं की जाती है क्योंकि ऐसा माना जाता है की अगर आपके गोत्र एक है तो आपके मूल पिता एक है अर्थात आप उस गोत्र के संतान की संतान है इस हिसाब से आपमें बहुत सारे अनुवांशिक दोष भी पाए जायेंगे| इसके अलावा लड़के और लड़की की विचारधारा भी समानता देखने को मिलती है ऐसे लड़के और लड़की की पसंद और उनके व्यवहार में काफी असमानता देखने को मिल सकती है|

एक कुल में अलग अलग गोत्र कैसे होते है

एक कुल में अलग अलग होते है, हालाँकि काफी सारे लोगो का मानना है की एक कुल के लोगो का गोत्र एक होता है, जबकि एक कुल में अलग अलग गोत्र होता है| किसी भी कुल की आठवीं पीढ़ी का गोत्र बदल जाता है, सुनकर अजीब लग रहा होगा लेकिन इस बात का जिक्र मनुस्मृति में भी किया गया है, मनुस्मृति की माने तो किसी भी कुल में सात पीढ़ी के बाद सगापन खत्म हो जाता है| इसका अर्थ यह है की सभी कुल का गोत्र सात पीढ़ी के बाद बदल जाता फिर कुल की आठवीं पीढ़ी के प्रथम पुरुष के नाम से नए गोत्र की शुरुआत होती है| लेकिन अधिकतर इंसानो को गोत्र गणना के बारे में नहीं जानते है इसलिए अधिकतर इंसान पुराने समय से चले आ रहे गोत्र को अपना गोत्र बताते है या कुछ लोग प्राचीन ऋषियों के नाम पर ही अपने गोत्र रख लेते है जिसकी वजह से विवाह में समस्या उत्पन्न हो जाती है|

गोद लिए हुए बच्चे का कौन सा गोत्र होता है?

बहुत सारे दंपत्ति ऐसे होते है जिनके कोई संतान नहीं होती है, ऐसे में निसंतान दंपत्ति पुत्र को गोद ले लेते है| गोद लिए हुए पुत्र या पुत्री का गोत्र क्या होगा यह ऐसा सवाल है जो काफी लोगो के मन में होता है तो हम आपको बता दें की हिन्दू धर्म और मान्यताओं के अनुसार पिता का गोत्र ही बच्चे का गोत्र होता है, इसीलिए गोद लिए हुए पुत्र का गोत्र वहीँ होगा जो उसके पिता का होता है|

निष्कर्ष –

हम उम्मीद करते है की आपको हमारे लेख गोत्र क्या होता है? (gotra kya hota hai) में दी गई जानकारी पसंद आई होगी,वर्तमान में ऐसे काफी सारे इंसान मौजूद है जिन्हे गोत्र के बारे जानकारी नहीं होती है| हमारे इस पेज को अधिक से अधिक शेयर करें जिससे यह लेख ऐसे इंसानो के पास तक पहुँच जाएं जिन्हे गोत्र के बारे जानकारी नहीं है|

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