Dialysis Kya Hota Hai? डायलिसिस के प्रकार | डायलिसिस के फायदे और नुकसान

Dialysis Kya Hota Hai: डायलिसिस के बारे में आपने कभी ना कभी जरूर सुना होगा, लेकिन काफी सारे लोगो को डायलिसिस के बारे में जानकारी नहीं होती है ऐसे इंसान इंटरनेट पर डायलिसिस के बारे जानने के लिए डायलिसिस क्या होता है? डायलिसिस कितने प्रकार का होता है? इत्यादि लिखकर सर्च करते है| चलिए सबसे पहले हम आपको बताते है की आखिर डायलिसिस क्या है (dialysis kya hota hai)   

डायलिसिस क्या होता है? (dialysis kya hai)

यह तो हम सभी जानते है की इंसान के शरीर में दो किडनी होती है, ब्लड में मौजूद अपशिष्ट पदार्थो या गंदगी को ब्लड से बाहर निकालने का काम किडनी ही करती है या आप ऐसे भी समझ सकते है की ब्लड को साफ करने का काम किडनी ही करती है| ब्लड में से निकली गंदगी को किडनी पेशाब के माध्यम से शरीर से बाहर निकाल देती है, लेकिन किसी भी इंसान की दो किडनी काम करना बंद कर देती है तो डायलिसिस के माध्यम से ब्लड की सफाई की जाती है| कृत्रिम रूप से ब्लड को साफ करने का तरीका डायलिसिस कहलाता है, चलिए अब हम आपको डायलिसिस के प्रकारो के बारे में जानकारी नीचे उपलब्ध करा रहे है 

डायलिसिस के प्रकार

ऊपर आपने डायलिसिस क्या है? के बारे में जानकारी प्राप्त की अब हम आपको डायलिसिस के प्रकारो के बारे में बारे में बताते है, डायलिसिस दो प्रकार के होते है जिनके बारे में हम आपको नीचे जानकारी दे रहे है

1 – हीमो डायलिसिस

आमतौर पर हिमो डायलिसिस सबसे ज्यादा देखने को मिलता है, हिमो डायलिसिस में एक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है जिसे हेमोडायलाइजर फिल्टर या कृत्रिम किडनी कहा जाता है| कृत्रिम किडनी ब्लड से लगभग सभी तरह के अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को निकालने में मदद करती है, चलिए अब हम आपको बताते है की हीमो डायलिसिस कैसे किया जाता है?

1 – सबसे पहले आपको ऐसे अस्पताल या डायलिसिस सेंटर पर जाना होगा जो आपके घर के पास हो, फिर हीमो डायलिसिस करने वाले डॉक्टर, नर्स और डायालिसिस तकनीशियन की देखरेख में डायलिसिस की प्रक्रिया शुरू की जाती है| सबसे पहले आपको एक आरामदायक कुर्सी पर बैठा दिया जाता है या बेड पर लिटा दिया जाता है|

2 – हीमो डायलिसिस मशीन में एक पम्प होता है, जिसकी मदद से डायालिसिस करने वाले इंसान के शरीर में से 250 से लेकर 300 मिलीलीटर ब्लड प्रति मिनट कृत्रिम किडनी मेँ ब्लड शुद्ध करने के लिए भेजा जाता है। आप अच्छी तरह से जानते है शरीर से ब्लड बाहर निकलने पर खून का थक्का बहुत जल्द बन जाता, खून का थक्का बनने से रोकने के लिए हीपेरिन नामक दवा का इस्तेमाल किया जाता है।

3 – डायलिसिस कराने वाले इंसान और हिमो डायलिसिस मशीन के बीच में कृत्रिम किडनी होती है, जो ब्लड को साफ़ करने का काम करती है| हिमो डायलिसिस मशीन एक खास तरह का द्रव कृत्रिम किडनी मेँ पहुँचाता है, खास द्रव खून का शुद्धिकरण करने में मदद करता है|

4 – जब ब्लड शुद्ध हो आता है तो शुद्ध ब्लड को फिर से शरीर के अंदर पहुँचा दिया जाता है, फिर यही प्रक्रिया दोबारा की जाती है| आमतौर पर हिमो डायलिसिस की प्रक्रिया को पूरा करने में लगभग तीन से चार घंटे लगते है|

5 – हीमो डायलिसिस की प्रक्रिया में मरीज के शरीर का सारा खून लगभग 12 बार शुद्ध किया जाता है।

6 – कुछ लोगो को लगता है की हीमो डायलिसिस की प्रक्रिया मेँ हर बार नया खून चढ़ाया जाता है, यह बात पूर्ण रूप से गलत है हिमो डायलिसिस में खून चढाने की जरुरत नहीं पड़ती है| लेकिन अगर मरीज के शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होती है तो इस स्थिति में मरीज को खून चढाने की जरुरत होती है|

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7 – हीमो डायलिसिस की प्रक्रिया हफ्ते में तीन दिन की जाती है और प्रत्येक प्रक्रिया में लगभग चार घंटे का समय लगता है|

हीमो डायलिसिस के फायदे

आमतौर पर हिमो डायलिसिस की प्रक्रिया ज्यादा देखने को मिलती है, चलिए अब हम आपको हिमो डायलिसिस के फायदों के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है-

1 – हीमो डायलिसिस का अधिक इस्तेमाल होने के पीछे का कारण कम खर्च भी है, हिमो डायलिसिस आम आदमी की पहुँच में होता है|

2 – हीमो डायलिसिस विशेषज्ञ स्टॉफ और डॉक्टरों द्वारा किया जाता है इसीलिए हिमो डायलिसिस सुरक्षित प्रक्रिया है।

3 – हीमो डायलिसिस में कम समय लगता है और इसे रोज कराने की जरुरत नहीं पड़ती है|

4 – हीमो डायलिसिस बहुत ही आसानी से हो जाने वाली प्रक्रिया है और इसमें मरीज को ज्यादा दर्द या परेशानी नहीं होती है|

5 – हीमो डायलिसिस का लाभ यह है की इसमें संक्रमण होने की संभावना ना के बराबर होती है|

6 – हीमो डायलिसिस का फायदा यह भी है की आप डायलिसिस की प्रक्रिया कराते हुए अपने दोस्त या परिजन से बात कर सकते है या टीवी भी देख सकते है|

हीमो डायलिसिस के नुकसान

ऊपर आपने हीमो डायलिसिस के फायदों के बारे में जाना, लेकिन जिस तरह हीमो डायलिसिस के फायदे होते है उसी तरह से हीमो डायलिसिस के नुक्सान भी होते है, चलिए अब हम आपको हीमो डायलिसिस के नुक्सान के बारे में बता रहे है

1 – हीमो डायलिसिस की सुविधा हर एक शहर या गाँव में उपलब्ध ना होने की वजह से मरीज को दिक्कत का सामना करना पढता है, ऐसे मरीजों को डायलिसिस कराने के लिए काफी दूर जाना पड़ता है|

2 – हीमो डायलिसिस कराने के लिए आपको अस्पताल या डायलिसिस सेंटर जाना पड़ता है, ऐसे में अगर अस्पताल या सेंटर दूर है तो आपको जाने में समय लगेगा और आपको निश्चित समय पर पहुंचना जरुरी होता है

3 – हीमो डायलिसिस का एक नुक्सान यह भी है की आपको इस प्रक्रिया के लिए हर बार फिस्चुला नीडल लगवानी पड़ती है, जो पीड़ादायक होती है।

4 – हीमो डायलिसिस में हेपेटाईटिस के संक्रमण होने की संभावना बनी रहती है।

5 – हीमो डायलिसिस का नुक्सान यह भी है की इसमें मरीज को खाने पीने में परहेज रखना पड़ता है।

6 – हीमोडायालिसिस यूनिट को शुरू करना आसान नहीं है क्योंकि इसमें काफी ज्यादा खर्चा होता है|

2 – पेरिटोनियल डायलिसिस 

पेरिटोनियल डायलिसिस की प्रक्रिया हिमो डायलिसिस से बिलकुल विपरीत होती है, पेरिटोनियल डायलिसिस में मरीज के शरीर के अंदर ही ब्लड को साफ़ किया जाता है| पेरिटोनियल डायलिसिस में मरीज के पेट में एक पेरिटोनियल डायलिसिस कैथेटर को लगाया जाता है फिर कैथेटर पेरिटोनियम के जरिए शरीर के अंदर मौजूद ब्लड को फिल्टर करता है| इस तरह के डायलिसिस में डायलीसेट नामक एक विशेष तरल पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है, यह तरल पदार्थ धीरे धीरे पेरिटोनियम के माध्यम से शरीर में मौजूद सभी तरह के अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को अवशोषित कर लेता है| फिर अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को पेट से बाहर निकाल देते है| पेरिटोनियल डायलिसिस की प्रक्रिया रोजाना लगभग 4 से 6 बार दोहराई जाती है और इसमें समय काफी लगता है|

पेरिटोनियल डायलिसिस के प्रकार

ऊपर आपने पेरिटोनियल डायलिसिस के बारे में जाना, अब हम आपको पेरिटोनियल डायलिसिस के बारे में जानकारी दे रहे है| पेरिटोनियल डायलिसिस तीन प्रकार का होता है, जिसके बारे में नीचे बता रहे है  

A – कंटीन्यूअस एम्बुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस (सीएपीडी)

कंटीन्यूअस एम्बुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस की प्रक्रिया मरीज के पेट में नाभि के नीचे एक छोटा कट या चीरा लगाया जाता है| इस प्रकार के डायलिसिस को करने से लगभग 10 से 15 दिन दिन पहले नाभि के नीचे कट या चीरे लगाकर उसमे कैथेटर को पेट के अंदर डाल दिया जाता है। इस तरह के डायलिसिस में इस्तेमाल की जाने वाली कैथेटर का निर्माण सिलिकॉन जैसे विशेष पदार्थ से बनी होती है। यह कैथेटर काफी नरम और लचीली बने होने की वजह से बिना पेट और आँतों के अंगों को नुकसान पहुँचाए आसानी और आराम से पेट में रहती है। फिर इस नली के माध्यम से दिन में तीन से चार बार लगभग दो लीटर डायालिसिस द्रव को पेट में डाल दिया जाता है, फिर निश्चित समय अंतराल के बाद डायलिसिस द्रव को बाहर निकाल लिया जाता है। आज के समय में कंटीन्यूअस एम्बुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस के लिए मशीन का इस्तेमाल भी किया जाने लगा है, इस प्रकार के डायलिसिस स्वचलित मशीन अपने आप सीएपीडी में इस्तेमाल किया जाने वाले द्रव को पेट में डालती और निकालती है।

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B – कंटीन्यूअस साइकलिंग पेरिटोनियल डायलिसिस (सीसीपीडी) 

कन्टीन्युअस साइक्लिक पेरीटोनियल डायालिसिस को आप पेरीटोनियल डायालिसिस की तरह ही मान सकते है, इस तरह का डायलिसिस करवाने के लिए मरीज को कहीं जाना नहीं पढता है यह पीड़ित के घर में ही किया जाता है। सीसीपीडी में एक स्वचलित साइक्लर मशीन का इस्तेमाल करा जाता है, इस प्रकार के डायलिसिस को होने में लगभग 8 से 10 घंटे का समय लगता है| इसमें इस्तेमाल किए जाने वाला द्रव जीवाणु रहित घोल होता है और इस घोल में खनिज और ग्लूकोज का मिश्रण होता है| लगातार एक से दो घंटे के चक्र में चार से पांच बार इस द्रव को डाला और निकाला जाता है, इस प्रकार के डायलिसिस में समय काफी लगता है इसीलिए इसे अधिकतर रात में मरीज के सोने के बाद किया जाता है और सुबह मशीने को निकाल दिया जाता है| सीसीपीडी रात में किया जाता है जिसकी वजह से मरीज की दिन में होने वाली नियमित गतिविधियों में किसी तरह का अवरोध नहीं होता है|

C – आंतरायिक पेरिटोनियल डायलिसिस (आईपीडी) 

आंतरायिक पेरिटोनियल डायलिसिस को अस्पताल में ही पूर्ण किया जाता है क्योंकि इस प्रकार के डायलिसिस में काफी ज्यादा समय लगता है| आईपीडी में मरीज के पेट में नाभि के नीचे के भाग को खास प्रकार की दवा से सुन्न कर दिया जाता है और मरीज को बिना बेहोश करें उस सुन्न वाली जगह पर कट लगाकर उसमे से एक कई छेद वाली मोटी और लचीली खास तरह की नली को पेट में डाला जाता है| इस डायलिसिस में इस्तेमाल किए जाने वाला द्रव ब्लड में से कचरे को साफ़ करने में मदीदगार होता है, आंतरायिक पेरिटोनियल डायलिसिस में द्रव को मरीज के पेट में डाल दिया जाता है, वो खास तरह का द्रव मरीज के शरीर में मौजूद ब्लड में से अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को अपने अंदर सोख लेता है। फिर कुछ समय बाद उस द्रव को पेट से बाहर निकाल दिया जाता है, पेट बाहर निकले हुए द्रव के साथ अतिरिक्त तरल पदार्थ और अपशिष्ट पदार्थों भी बाहर निकल जाते है| दिन में इस प्रक्रिया को कई बार किया जाता है, आमतौर पर इस प्रकार के डायालिसिस की प्रक्रिया लगभग 36 घंटों तक होती रहती है, इस प्रक्रिया में लगभग 30 से 40 लिटर द्रव का इस्तेमाल किया जाता है| आंतरायिक पेरिटोनियल डायलिसिस में मरीज को हर तीन से पांच दिन के अंतराल में इस प्रक्रिया को करना पड़ता है और इस तरह के डायलिसिस में पीड़ित को सीधा सोना पड़ता है, मरीज को करवट लेकर सोने के लिए मना होता है|

डायलिसिस के लक्षण

आमतौर पर डायलिसिस के लक्षण को किडनी से सम्बंधित परेशानियो के लक्षणों में देखा जाता है| नीचे बताए जा रहे लक्षण कई आने बीमारियो के संकेत भी हो सकते है, इसीलिए हम आपको सलाह देंगे की नीचे बताए जा रहे लक्षण दिखाई देने पर चिकित्सक से परामर्श जरूर लें| डायलिसिस और किडनी के रोग के कुछ लक्षण एक सामान होते है, चलिए अब हम आपको डायलिसिस के लक्षणों के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है

1 – डायलिसिस के लक्षणों में शामिल है हाथो पैरो में सूजन आना।

2 – बिना किसी कारण के शरीर में बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होना|

3 – अचानक से बिना किसी वजह से भूख का कम होना।

4 – बार बार उल्टी होना भी डायलिसिस के लक्षणों में शामिल है।

5 – शरीर में खून की कमी या पेशाब में खून आना किडनी रोग के लक्षण होते है, ऐसे में चिकित्सक से परमर्श जरूर लें|

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डायलिसिस कराने से पहले की सावधानियां?

अगर आपका जल्द ही डायलिसिस होना है तो आपको कुछ बातो का खास ध्यान रखना चाहिए यदि आपका डायलिसिस होने वाला है तो डायलिसिस करने से पहले आपको इन बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता है।

1 – कुछ इंसान ऐसे होते है जिन्हे डॉक्टर डायलिसिस कराने की सलाह देते है लेकिन इंसान डॉक्टर की सलाह नहीं मानते है और डायलिसिस नहीं करवाते है जो काफी घातक साबित हो सकता है|

2 – डायलिसिस कराने से पहले मरीज को ब्लड प्रेशर का खास ख्याल रखना चाहिए, अगर मरीज का ब्लड प्रेशर हाई या लो है तो डॉक्टर से परामर्श लेकर ब्लड प्रेशर की दवा लें जिससे ब्लड प्रेशर नार्मल रहें|

3 – डायलिसिस के टाइम डॉक्टर के द्वारा दी गई दवाई को सही टाइम से लें|

4 – अगर आपका हाल फिलहाल में डायलिसिस होने वाला है तो आपको सर्दी और बुखार जैसी बीमारियो से अपने आपको बचाना चाहिए|

5 – डायलिसिस के समय पर मरीज को पानी सिमित मात्रा में डॉक्टर की सलाह से पीना चाहिए, अधिक मात्रा में पानी पीने से प्रॉब्लम हो सकती है।

6 – डायलिसिस कराने वाले इंसान को अपने वजन का खास ख्याल रखना चाहिए, मरीज का वजन बढ़ना नहीं चाहिए।

7 – मरीज को अधिक प्रोटीन युक्त खाना खाना चाहिए|

डायलिसिस क्यों किया जाता है?

काफी सारे लोगो के मन में यह सवाल आता है की आखिर डायलिसिस की जरुरत क्यों पड़ती है? या डायलिसिस क्यों किया जाता है? यह तो हम सभी अच्छी तरह से जानते है की ब्लड में कई तरह के अपशिष्ट पदार्थ होते है, ब्लड में मौजूद अपशिष्ट पदार्थो को बाहर निकालने का काम किडनी करती है| किडनी हमारे शरीर में मौजूद ब्लड को साफ करके गंदगी को पेशाब के रस्ते शरीर से बाहर निकाल देती है, लेकिन जब किडनी काम करना बंद करदेती है तो इस स्थिति में ब्लड को साफ करने के लिए डायलिसिस की प्रक्रिया की जाती है| डायलिसिस में आर्टिफिशियल कृत्रिम तरीके से ब्लड की गंदगी को बाहर निकाल दिया जाता है|

डायलिसिस के फायदे

जब किसी भी इंसान की किडनी काम करना बंद कर देती है तो ब्लड में गंदगी बढ़ती चली जाती है, गंदगी को बाहर नहीं निकालने पर काफी घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते है| ऐसी स्थिति में डायलिसिस किया जाता है, डायलिसिस में ब्लड में एकत्रित गंदगी को ब्लड से बाहर निकाल दिया जाता है| किडनी फेल हो जाने पर भी इंसान को जीवित रखने में डायलिसिस का अहम् योगदान होता है|

डायलिसिस के नुकसान

ऊपर आपने डायलिसिस के फायदों के बारे में जाना, अब हम आपको डायलिसिस के नुक्सान के बारे में बताने जा रहे है

1 – किडनी फेल होने पर डायलिसिस इंसान को जीवित रखने में मददगार होता है लेकिन यह स्थाई समाधान नहीं होता है|

2 – डायलिसिस कराने में काफी खर्चा आता है और यह खर्च लगातार करना पड़ता है, जो आम इंसानो के लिए संभव नहीं होता है|

3 – लगातार डायलिसिस होने से शरीर को इसकी आदत पड़ सकती है|

डायलिसिस कितनी बार करानी पड़ती है?

अक्सर लोगो के मन में यह बात भी आती है की डायलिसिस कितनी बार करानी पड़ती है? डायलिसिस कब और कितनी बार होना है इसकी जानकारी मरीज की स्थिति को देखते हुए डॉक्टर बताता है| आमतौर पर हफ्ते में तीन बार डायलिसिस कराने की सलाह दी जाती है लेकिन हम आपको सलाह देंगे की कभी भी अपनी मर्जी से डायलिसिस बिलकुल ना करवाएं|

डायलिसिस कराने के बाद मरीज की देखभाल कैसे करें?

डायलिसिस कराने के बाद मरीज को कुछ सावधानियाँ रखने की जरुरत होती है, डायलिसिस कराने के बाद डॉक्टर के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें, चलिए अब हम आपको बताते है की डायलिसिस पेशेंट को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए 

1 – पानी का सेवन कम और सिमित मात्रा में ही करें

2 – ऐसा भोजन करें जिसमे प्रोटीन की मात्रा अधिक हो|

3 – डायलिसिस के मरीज को ब्लड प्रेशर को नार्मल रखना चाहिए|

4 – जिस इंसान का डायलिसिस हुआ है उसे कभी भी अपनी मर्जी से किसी भी दवा का सेवन नहीं करना चाहिए|

निष्कर्ष –

ऊपर आपने डायलिसिस के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जैसे डायलिसिस क्या होता है? (dialysis kya hota hai) और डायलिसिस के प्रकार इत्यादि प्राप्त की, अगर आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी अच्छी लगी हो तो हमारे इस पेज को अधिक से अधिक शेयर करें|

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