Dharm kya hai?: समाज में आपको अलग अलग धर्मो के लोग दिखाई देते है| ऐसे में काफी सारे इंसानो के मन में यह सवाल आता है की आखिर धर्म क्या है? हालाँकि अधिकतर इंसान को धर्म का नाम तो पता होता है लेकिन धर्म के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है| ऐसे इंसान जिन्हे धर्म के बारे में जानकारी नहीं होती है वो अक्सर इंटरनेट पर धर्म क्या है? धर्म कितने प्रकार के होते है? और धर्म की विशेषताएं इत्यादि लिखकर सर्च करते है| अगर आपको धर्म के बारे में जानकारी नहीं है तो हमारे इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें| चलिए अब हम सबसे पहले आपको धर्म क्या है (dharm kya hai)? के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है
धर्म क्या है (Dharm kya hai)
आसान भाषा में समझे तो प्रत्येक इंसान को जीने का सही मार्ग धर्म (dharm kya hai) ही बताता है| जब कोई इंसान प्राकृतिक घटनाओ जैसे बाढ़ आना, बिजली चमकना और भूकंप आना इत्यादि को देखता है तो इंसान के मन में यह सवाल आता है की प्राकृतिक घटनाएं क्यों होती या कैसे घटित होती है? लगभग सभी धर्मो में इन प्राकृतिक घटनाओ के होने के पीछे एक आलौकिक शक्ति को बताया जाता है| ऐसी स्थिति में इंसान के मन में उस आलौकिक शक्ति से दर का माहौल भी बनता है और इंसान उस आलौकिक शक्ति को खुश रखने की कोशिश करता है| इंसान ने उस शक्ति को खुश करने के लिए पूजा और आराधना जैसे कार्यों को करना शुरू किया बस यहीं से धर्म की शुरुआत हुई| आप ऐसे भी समझ सकते है की किसी अलौकिक शक्ति पर विश्वास करना धर्म है, अलौकिक शक्ति को ना तो हम देख सकते है और ना ही स्पर्श कर सकते है लेकिन फिर उस शक्ति का अस्तित्व है| वो आलौकिक शक्ति धरती पर होने रहने वाले सभी जीव जंतु, पेड़ पौधे और मानव जीवन को नियंत्रित करती है।
धर्म की विशेषताएं कौन कौन सी हैं?
ऊपर आपने पढ़ा की धर्म क्या होता है (dharm kya hai)? अब हम आपको धर्म की विशेषताओं के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है| धर्म की विशेषताएं काफी होती है जिनमे से कुछ विशेषताओं के बारे में हम आपको नीचे जानकारी उपलब्ध करा रहे है
1 – शक्ति पर विश्वास
प्रत्येक धर्म की सबसे पहली विशेषता विश्वास होता है| प्रत्येक धर्म के लोगो को शक्ति पर विश्वास करना होता है और यह शक्ति मनुष्य के द्वारा निर्मित नहीं होती है और ना ही इस शक्ति पर इंसान का जोर चलता है| एक ऐसी शक्ति जो प्राकृतिक होती है और उसका निर्माण कब और कैसे हुआ इसके बारे में सटीक जानकारी मुश्किल होती है| आसान भाषा में समझे तो हिंदी धर्म के लोग भगवान पर विश्वास करते है, हिन्दू धर्म के प्रत्येक भगवान के पास अपनी आलौकिक शक्ति मौजूद होती थी| दुनिया में रहने वाला कोई भी इंसान भगवान का मुकाबला या उन जैसी पावर नहीं रखता है| हिन्दू धर्म के सभी लोगो को भगवान पर पूर्ण विश्वास होता है| ऐसे ही मुस्लिम धर्म के लोगो के लिए मोहम्मद साहब ही भगवान है और मुस्लिम धर्म के सभी लोगो का विश्वास मोहम्मद साहब पर होता है| इसी तरह से अलग अलग धर्मो के लोगो का अपने भगवान पर विश्वास होता है| विश्वास को आप धर्म की पहली सीढ़ी भी कह सकते है और अगर आपको धर्म पर विश्वास नहीं है तो धर्म का कोई मतलब नहीं है|
2 – दिव्य चरित्र होना
जिस शक्ति पर इंसान विश्वाश करता है उस शक्ति की प्रकृति अलौकिक होने के साथ साथ चरित्र दिव्य होता है| अगर उस शक्ति का चरित्र आम इंसान की तरह होगा तो उस शक्ति और आम इंसान में कोई फर्क नहीं होगा| दिव्य चरित्र होने की वजह से वो शक्ति मानव समाज से अलग होती है और सभी मानव जाती उस चरित्र के बारे में जानकारी प्राप्त करते है| धर्म को मानने वाले लोगो को अपना चरित्र उस शक्ति के चरित्र जैसा बनाने की सलाह दी जाती है|
3 – पवित्रता की पहचान
अगर समाज में रहने वाला कोई भी इंसान अपवित्र होता होता है तो समाज ऐसे इंसान को उचित तरीके से नहीं देखती है और ऐसे इंसानो के पास कोई बैठना भी पसंद नहीं करता है| दूसरी तरफ जब किसी इंसान पवित्र होता है तो ऐसे इंसान के पास सभी लोग बैठना पसंद करते है| इसीलिए जिस शक्ति पर धर्म आधारित होता है वो शक्ति पवित्र होती है, धर्म में केवल उन्ही तत्वों को महत्वपूर्ण बताया गया है जो पवित्रता से सम्बंधित होते है। अपवित्रता को धर्म से दूर रखा गया है| धर्म (dharm kya hai) को मानने वाले सभी इंसानो को अपने मन और शरीर को पवित्र रखने की सलाह दी जाती है|
4 – सैद्धांतिक व्यवस्था
धर्म का सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक तत्व सैद्धांतिक व्यवस्था भी होता है| अलग अलग धर्म की अपनी अलग सैद्धांतिक व्यवस्था होती है। किसी भी धर्म को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करने के लिए सैद्धान्तिक व्यवस्था की सबसे ज्यादा जरुरत पड़ती है| धर्म को मानने वाले इंसान अगर सैद्धान्तिक व्यवस्था का पालन नहीं करते है तो वो कभी धर्म (dharm kya hai) का पालन नहीं कर सकते है| आसान भाषा में समझे तो प्रत्येक धर्म के अपने अलग सिद्धांत होते है और उस धर्म के मानने वाले सभी लोगो को उन सिद्धांतो का पालन करना जरुरी है|
5 – निश्चित प्रतिमान होना
अलग अलग धर्म के अलग अलग निश्चित प्रतिमान देखने को मिलते है| प्रतिमान उस धर्म की शक्ति रक्षा का प्रतिनिधित्व करता है| सरल भाषा में समझे तो जब कोई इंसान अपने धर्म के प्रतिमान को पढ़ता है तो वो अपने धर्म और शक्ति के बारे जानकारी प्राप्त करता है और उस प्रतिमान में वर्णित के आधार पर अपने व्यवहार का निर्धारण करने की कोशिश करता है| प्रत्येक धर्म के लोग अपने धर्म के प्रतिमान का पूर्ण मन से सम्मान करते है|
6 – तर्क और विवेक की कोई जगह नहीं
प्रत्येक धर्म के लोगो का अपने धर्म या शक्ति के प्रति अटूट विश्वास होता है और अधिकतर इंसान धर्म को मूल्य और भावनाओं के आधार पर समझने का प्रयास करते है| लेकिन कुछ लोग ऐसे होते है जो धर्म या शक्ति के लिए तर्क देते है जबकि धर्म का तर्क से कोई लेना देना नहीं होता है|
7 – धार्मिक चेतना का विकास
जब किसी भी धर्म के लोगो के अंदर धर्म का विकास या अपने धर्म के प्रति चेतना का विकास होता है तो आने वाली पीढ़ी अपने धर्म के प्रति जागरूक रहती है| प्रत्येक इंसान धार्मिक चेतना की वजह से अपने धर्म का आदर और सम्मान करता है| धार्मिक चेतना की वजह से संसार मे मौजूद धर्मो का जन्म और विकास हुआ है।
8 – कर्मकांड का महत्व
ऐसे कर्म जो धार्मिक क्रियाओं से जुड़े हुए होते है उन्हें कर्मकाण्ड कहा जाता है| प्रत्येक धर्म के अपने अलग कर्मकांड होते है| आप ऐसे भी समझ सकते है की प्रत्येक धर्म में पूजा करने करने का तरीका, प्रार्थना करने का तरीका अलग अलग होता है| इसके अलावा सभी धर्मो की मान्यताएं और पौराणिक गाथाओं के अनुसार कर्मकांड भी अलग अलग होते है|
9 – निषेध चीजें
लगभग सभी धर्मो में कुछ चीजों को निषेध बताया गया है, यह तो हम सभी अच्छी तरह से जानते है की किसी चीज को मानने वाले लोग दो तरह के होते है पहले होते है सकारात्मक सोच वाले और दूसरे होते नकारात्मक सोच वाले| अलग अलग धर्मो में अलग चीजों को निषेध बताया गया है लेकिन कुछ चीजें सभी धर्मो में निषेध होती है| धर्म में निषेध का अर्थ होता है की आपको उन कामो को करने से बचना चाहिए जिन्हे धर्म में निषेध बताया गया है| प्रत्येक धर्म में झूठ बोलने की मनाही होती है, किसी को धोखा नहीं देना चाहिए, किसी के साथ दुराचार नहीं करना चाहिए और किसी भी इंसान के साथ बेईमानी नहीं करनी चाहिए इत्यादि को निषेध माना गया है| लेकिन कुछ बाते अलग अलग धर्मो के अनुसार अलग अलग निषेध होती है, विवाह के लिए प्रत्येक धर्म की अपनी अपनी परिस्थिति होती है|
10 – धार्मिक प्रचार
प्रत्येक धर्म को मानने वाले अलग अलग प्रकार के लोग होते है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते है जिन्हे अपने धर्म के बारे में ज्यादा जानकारी होती है और वो अपने धर्म के लोगो को धर्म के बारे में जानकारी उपलब्ध कराते है| ऐसे लोगो को धार्मिक क्रियाएँ के साथ साथ कर्मकांड कराने का विशेष अधिकार होता है| ऐसे लोग उस धर्म के लोगो की नजरो में उच्च और पवित्र माने जाते है और उन लोगो की बात धर्म को मानने वाले सभी लोग मानते है| हालाँकि अलग अलग धर्मो में ऐसे लोगो को अलग अलग नाम जैसे पुजारी, महंत, मौलवी, पादरी और ओझा इत्यादि से पुकारा जाता है| इन्ही लोगो के द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने की सलाह दी जाती है और अगर कोई इंसान अपने धर्म के प्रति सम्मान नहीं करता है या धार्मिक आदेशों का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ कार्यवाही करने का काम भी ऐसे लोग ही करते है।
धर्म का महत्व क्या है?
ऊपर आपने धर्म क्या होता है (dharm kya hai) और धर्म की विशेषता के बारे में जानकारी प्राप्त की, अब हम आपको धर्म के महत्व के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है| प्रत्येक धर्म का अपना अलग महत्व होता है, हालाँकि काफी सारे इंसानो को धर्म के महत्व के बारे में जानकारी नहीं होती है| प्रत्येक इंसान को अपने धर्म के बारे में और धर्म के महत्व के बारे में जानकारी होनी चाहिए, चलिए अब हम आपको धर्म के महत्व के बारे में नीचे बता रहे है
1 – समाज को संगठित करने में मददगार
समाज में रहने वाले एक ही धर्म के अलग अलग लोगो को आपस में जोड़े रखने के लिए धर्म अहम् रोल निभाता है| यह तो हम सभी अच्छी तरह से जानते है की प्रत्येक धर्म के अलग अलग पर्व होते है, अपने धर्म के अंतर्गत आने वाले पर्व को खुशी और प्यार से मनाया जाता है| ऐसे में सामान धर्म के लोग मिल जाएं तो ख़ुशी चार गुनी बढ़ जाती है| सभी इंसानो की सोच एक दूसरे से अलग होती है लेकिन जब बात धर्म की होती है तो सभी लोगो के मत एक समान होते है| आसान भाषा में आप ऐसे समझ सकते है की अलग अलग विचार धरा होने के बाद धर्म सभी लोगो को एक साथ बांधे रखता है|
2 – आपसी प्यार में बढ़ावा
समान धर्म को मानने वाले इंसानो के बीच के रिश्ते को सुधारने के साथ साथ आपसी मेलजोल और प्यार को बढ़ाने में धर्म काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है| जब किसी भी धर्म में कोई धार्मिक प्रोग्राम होता है तो उस प्रोग्राम में धर्म के सभी लोग बाद चढ़ कर हिस्सा लेते है, इसके अलावा उस प्रोग्राम में सभी लोग मिलकर झांकी बनाते है और अन्य प्रोग्रामो का आयोजन करते है| एक दूसरे की मदद करते हुए अपने प्रोग्राम को सफल बनाते है जिसकी वजह से आपसी प्रेम भी बड़ता है और अलग अलग विचारधारा होने के बाद भी सभी लोग एक दूसरे के सुख दुख में साथ देते है।
3 – सामाजिक व्यवस्था को बनाने में मददगार
समाज में अलग अलग धर्म को मानने वाले इंसान रहते है| अलग अलग धर्म के लोग अपने अपने धर्म को मानते है और अपने अपने धर्म के भगवान से डरते है| धर्म में बताई गई निषेध चीजों को करने से बचते है जिसकी वजह से सभी इंसान सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखते है| सरल भाषा में समझे किसी धर्म को मानने वाला कोई इंसान दूसरे धर्म के लोगो के साथ धोखा नहीं देता और दुराचार नहीं करता है क्योंकि उसके धर्म में यह चीजें निषेध बताई गई है| इसीलिए हम कह सकते है की धर्म सामाजिक व्यवस्था को बनाने में अहम् भूमिका निभाता है|
यह तो हम सभी जानते है की सभी धर्मो में पाप और पुण्य के बारे में बताया जाता है और पाप करने से इंसान को सजा मिलती है| पाप की वजह से मिलने वाली सजा से बचने के लिए हर एक इंसान अपने व्यवहार और आचरण में समय समय पर सुधार लाता है। प्रत्येक इंसान को लगता है की अगर वो किसी भी तरह का पाप करता है तो उसके भगवान उसे सजा दे सकते है| क्योंकि धर्म की शक्ति या भगवान प्रत्येक इंसान के आचरण और कर्म पर नजर रखते है, अगर को इंसान गलत काम या धर्म विरोधी काम करता है तो उसे सजा मिल सकती है| इस वजह से अधिकतर इंसान को भगवान का डर रहता है|
4 – समाज के कल्याण में मददगार
समाज में अलग अलग धर्म के लोग रहने के बाद भी लगभग सभी धर्मो के लोग एक दूसरे की मदद करने के साथ साथ समाज का कल्याण करने की कोशिश करते रहते है| दरसल सभी धर्मो में मानव का कल्याण करने के साथ साथ जीव जंतु के प्रति दया का भाव रखने के लिए प्रेरित किया जाता है| इसी वजह से अलग अलग धर्म के होने बाद भी सभी इंसान समाज के कल्याण से सम्बंधित कामो में बढ़चढ़ कर हिंसा लेते है|
धर्म के कितने प्रकार के होते हैं?
ऊपर आपने धर्म क्या है (dharm kya hai )? और धर्म की विशेषताओं के बारे में पढ़ा| काफी सारे इंसानो के मन में यह सवाल होता है की धर्म कितने प्रकार के होते है? या धर्म कितनी तरह के होते है? तो हम आपको बता दें भारत में मुख्य रूप से चार धर्म हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म, सिख धर्म और ईसाई धर्म देखने को मिलते है| लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की दुनिया में केवल चार धर्म ही होते है| इन चार धर्मो के अलावा बौद्ध धर्म, यहूदी धर्म, पारसी धर्म और जैन धर्म इत्यादि तरह के धर्म मौजूद है|
सामाजिक नियंत्रण में धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका
धर्म को प्रत्येक इंसान के जीवन का सबसे अहम और अनिवार्य तत्व माना जाता है, धर्म इंसान के जीवन के अनेक पक्षों और आयामों को प्रभावित करने के साथ साथ व्यवहारों को नियंत्रित करने में मददगार साबित होता है| सामाजिक नियंत्रण में धर्म महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- प्रत्येक धर्म के इंसान के मन में यह दर रहता है की अगर वो किसी भी इंसान के साथ मान्य और उचित व्यवहार नहीं करता है तो ऐसे में उनका ईश्वर उस इंसान से नाराज होकर उसे दंडित करेगा, इसीलिए धर्म समाज में रहने वाले सभी लोगो के व्यवहार को नियंत्रण करने मददगार होता है| धर्म की वजह से इंसान अपने धर्म एक साथ साथ दूसरे धर्म के लोगो के प्रति अपना व्यवहार बेहतर रखने की कोशिश करता है|
- प्रत्येक धर्म में पाप और पुण्य के बारे में बताया जाता है और पाप करने पर ईश्वर सजा देता है| सभी धर्मो के लोगो के मन में यह डर रहता है की अगर कोई समाज में रहने वाले किसी भी इंसान के साथ दुराचार या गलत करता है तो उसके धर्म का भगवान उसे सजा देगा| इसीलिए सभी लोग अच्छा आचरण करने की कोशिश करता है| धर्म ही इंसान के अंदर पुण्य की भावना को जागृत करने में अहम रोल निभाता है|
- धर्म इंसान को दुसरो की मदद करने के लिए प्रेरित करता है, जिसकी वजह से इंसान समाज में रहने वाले दूसरे धर्म के लोगो की मदद करने की कोशिश करता है|
निष्कर्ष –
हम आशा करते है की आपको हमारे लेख धर्म क्या होता है (dharm kya hai)? धर्म की विशेषता क्या है? में दी गई जानकारी पसंद आई होगी| अगर आपको हमारे लेख में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करके ऐसे लोगो के पास तक पहुंचाने में मदद करें जिन्हे धर्म के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है|