Chipko Andolan Kya Hai?: चिपको आंदोलन का नाम आपने कभी ना कभी जरूर सुना होगा, अक्सर परीक्षा में भी चिपको आंदोलन के बारे में सवाल पूछे जाते है। काफी सारे इंसानो को चिपको आंदोलन के बारे में पता होता है लेकिन कुछ इंसान ऐसे भी होते है जिन्हे इस आंदोलन का नाम तो पता होता है लेकिन इस आंदोलन के बारे में जानकारी नहीं होती है। अगर आपको भी चिपको आंदोलन के बारे में जानकारी नहीं है तो हमारे इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। आज हम अपने इस लेख में चिपको आंदोलन के बारे महत्वपूर्ण जानकारी जैसे चिपको आंदोलन क्या है? चिपको आंदोलन कब और किसने चलाया था? चिपको आंदोलन में महिलाओं की भूमिका, चिपको आंदोलन की प्रमुख माँग और चिपको आंदोलन के फायदे इत्यादि के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है। चलिए सबसे पहले हम आपको चिपको आंदोलन क्या होता है (chipko andolan kya hai)? के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है
चिपको आंदोलन क्या है / Chipko Andolan Kya Hai?
यह तो हम सभी अच्छी तरह से जानते है की पर्यावरण के बिना धरती पर जीवन संभव नहीं है। मनुष्य से लेकर जीव जंतु तक सभी पूर्ण रूप से पर्यावरण पर आश्रित होते है। अगर पर्यावरण या जलवायु में किसी भी तरह की हानि या बदलाव होता है तो इसका सीधा असर आम इंसानो की जिंदगी पर पड़ता है। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए अलग अलग समय समय पर आंदोलन किए गए है। पेड़ों की रक्षा और संरक्षण करने के लिए चिपको आंदोलन (chipko andolan kya hai) किया गया था।
चिपको आंदोलन की शुरुआत कब और कैसे हुई?
ऊपर आपने जाना की चिपको आंदोलन क्या है (chipko andolan kya hai)? अब हम आपको चिपको आंदोलन की शुरुआत के बारे में जानकारी दे रहे है। उत्तराखण्ड राज्य के बारे में तो आप अच्छी तरह से जानते ही है। इस राज्य के तीन जिलों पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और चमोली की सीमा पडोसी देश चीन से लगभग मिली हुई है। खासकर चमोली जिले में रहने वाले लोगो के जीवन यापन करने का मुख्य साधन मवेशी पालन, जड़ी बूटी बनाना, गोंद निकलना, शहद बेचना और कृषि से सम्बंधित औजारों का निर्माण करना इत्यादि थे। चमोली और चमोली के आस पास के गांव में रहने वाले लोग ऐसे छोटे मोटे काम करके जीवन यापन कर रहे थे। वर्ष 1962 से पहले के समय पर नजर डाले तो उस समय पर चमोली जिले और आस पास के गांव के लोग तिब्बत और चीन में जाकर सामान बेचकर पैसा कमाते थे। भारत और चीन के बीच युद्ध होने के बाद चीन और तिब्बत ने अपने यहाँ की सीमाओं को भर्तियों के लिए बंद कर दिया। चमोली और उसके आस पास के गांव के लोगो का व्यापार खत्म होने की स्थिति सभी लोगो की इनकम बंद हो गई। सभी लोगो की जिन्दी पूर्ण रूप से वनों पर निर्भर हो गई थी, इसीलिए यहाँ रहने वाले सभी लोग वनो की मदद से अपना जीवन यापन कर रहे थे। भारत सरकार ने उसी समय पर भारत और चीन सीमा की सुरक्षा को मजबूत और बेहतर बनाने के लिए उन इलाको में कई सारी सड़को का निर्माण करवाना पड़ा। सड़के बनने के बाद सेना और सुरक्षा के नजरिए से आवाजाही भी आसान हो गई थी। लेकिन सड़क निर्माण के लिए पहले वनो की कटाई होती थी और वनो की कटाई का काम ठेकेदारों को दिया जाता था। ठेकेदारों को उन जंगलो में पाए जाने कीमती पेड़ो के बारे में जानकारी प्राप्त हुई उसके बाद ठेकेदारों और माफियाओं की नजर हिमालय में खड़ी कीमती वन संपदा पर रही।
धीरे धीरे हिमालय में खड़े पेड़ों की ठेकेदारी प्रथा काफी तेजी से बढ़ने लगी, जिसकी वजह से उस क्षेत्र में बहुत तेजी से वनो की कटाई होने के साथ-साथ सड़क निर्माण और जल विद्युत परियोजनाएं काफी तेजी से बढ़ने लगी। जिसकी वजह से इस क्षेत्र के वन धीरे धीरे समाप्त होने लगे। जब किसी भी क्षेत्र में पेड़ पौधे की कटाई हो जाती है तो उस क्षेत्र की जलवायु पर काफी ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उस समय पर हिमाचल वनो की कटाई काफी तेजी से हो रही थी जिसकी वजह से वर्ष 1970 में हिमाचल प्रदेश के इस क्षेत्र में विनाशकारी बाढ़ आई थी, बाद की वजह से लोगो का जीवन अस्त वयस्त होने के साथ साथ लोगों का जीवन भी संकट में आ गए थे। इस विनाशकारी बाढ़ आने का कारण प्राकृतिक नहीं था, दरसल इसके पीछे का कारण वनो की कटाई थी। ऐसा कहा जाता है की पेड़ पोधो को नष्ट करने की वजह से ही भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदा आती है। बाढ़ आने बाद लोगो को समझ में आया की पेड़ पौधे कितने जरुरी है और उनके ना रहने से कितनी परेशानी हो सकती है। धीरे धीरे लोगो को वन संरक्षण का महत्व समझ में आने लगा और लोगो ने पर्यावरण को बचाना शुरू किया। जैसे लोगो को वनो का महत्व समझ में आने लगा वैसे वैसे लोगो ने वनो को बचाना शुरू कर दिया। जब वर्ष 1970 में सरकारसे अनुमति मिलने के बाद हजारो की संख्या में पेड़ों की कटाई शुरू हुई तब वनो को कटने से बचाने के लिए हजारो लोग आगे आ गए। पेड़ो को कटने से बचाने के लिए सभी लोग पेड़ो से चिपक गए, सभी लोगो ने वनो की कटाई का खूब विरोध किया। लोगो के द्वारा किए गए इस आंदोलन को चिपको आंदोलन का नाम दिया गया।
चिपको आंदोलन में महिलाओं की भूमिका
जिन इंसानो को चिपको आंदोलन के बारे में जानकारी नहीं होती है वो सोचते है की चिपको आंदोलन पुरुषो के द्वारा किया गया कोई आंदोलन होगा। जबकि चिपको आंदोलन में अहम् भूमिका महिलाओ ने निभाई थी। कुछ जगहों पर या कुछ लोग चिपको आंदोलन को महिला आंदोलन के नाम से भी जानते है। चिपको आंदोलन पर नजर डालें तो इस आंदोलन में पुरुषो से ज्यादा महिलाऐं शामिल थी। इस आंदोलन का नेतृत्व चमोली की रहने वाली गौरा देवी ने किया था, उन्ही के नेतृत्व में महिलाओ ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया था। इसलिए कुछ लोग गौरा देवी को चिपको आंदोलन के जनक के रूप में देखते है। वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तराखंड के चमोली गांव में स्थित वनो को काटने का ठेका ठेकेदार को दे दिया था। तब ठेकेदार अपने साथ वनो को काटने के लिए मजदुर लेकर पहुँचा। जब इस बात का पता चमोली जिले और आस पास के गावो को पता चला तो उस समय अधिकतर घरो में पुरुष मौजूद नहीं थे। ऐसी स्थिति में गौरा देवी ने अपने साथ बड़ी संख्या में महिलाओं को एकत्रित किया और सभी वनो को बचाने लिए चल दिए। ठेकेदार के पास पहुँचने के बाद गौरा देवी ने ठेकेदार और उसके मजदूरों से कहा की हम वनो को किसी भी कीमत पर काटने नहीं देंगे। इन पेड़ पोधो की मदद से घर चलाने के लिए जरुरी सामान प्राप्त होने के साथ साथ रोजगार भी चलता है। शुरुआत में ठेकेदार ने गौरा देवी को समझाया लेकिन गौरा देवी अपनी बात पर अडिग रही और सभी महिलाऐं पेड़ो से जाकर चिपक गई। अंत में ठेकेदार अपने आदमियो को लेकर वहां से चला गया। बिना वनो को काटे ठेकेदारों का लौट जाना गौरा देवी की जीत का प्रमाण था। गौरा देवी और उनके साथ मौजूद सभी महिलाओ ने वनो को कटने से बचाया था। जिस समय महिलाऐं पेड़ो से लिपट गई थी उस समय पर सभी महिलाओ ने चिल्ला चिल्लाकर कहा की पेड़ काटने से पहले उन्हें उन महिलाओ को काटना होगा लेकिन जब तक प्राण है वो पेड़ो को कटने नहीं देगी। सभी महिलाओ का जोश और एकता देखते हुए पेड़ काटने वाले मजदूरों को पीछे हटना पड़ा था।
चिपको आंदोलन में महिलाओ को सफलता आसानी से नहीं मिली थी, इस आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाली महिलाऐं गौरा देवी और कई प्रमुख महिलाओ को जेल भी जाना पड़ा था। दरसल इन महिलाओ ने नरेन्द्र नगर में होने वाली वनों की नीलामी का पुरज़ोर विरोध किया था, विरोध करने की वजह से पुलिस ने इन महिलाओं को दोषी मानते हुए गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था। गिरफ्तारी के बाद आने महिलाओ ने इस गिरफ्तारी का विरोध भी किया था। जिसकी वजह से इन महिलाओ को छोड़ दिया गया था। इसके बाद वर्ष 1978 में मालगाड़ी क्षेत्र में हजारो पेड़ो की कटाई का काम शुरू हुआ, उस कटाई को रोकने के लिए हजारो की तादाद में महिलाऐं पहुँच गई। हजारो महिलाऐं पहुँचने के बाद उस जगह के पेड़ो की कटाई भी नहीं हो पाई। पेड़ कटने की सभी कोशिशों को नाकाम करते हुए महिलाओ ने जगह जगह पर पेड़ कटने से बचाएं। महिलाओ का आंदोलन शांतिपूर्वक होने की वजह से इसमें हिंसा देखने को नहीं मिली थी। कुल मिलाकर आप यह कह सकते है की चिपको आंदोलन को सफल बनाने में महिलाओ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
चिपको आंदोलन और खेजड़ली आंदोलन में समानता
चिपको आंदोलन (chipko andolan kya hai) के बारे में ऊपर पढ़ चुके है, लेकिन चिपको आंदोलन की तरह एक आंदोलन पहले भी हो चूका है उस आंदोलन को खेजड़ली आंदोलन के नाम से जाना जाता है। खेजड़ली आंदोलन के बारे में हम आपको बताने जा रहे है दरसल यह बात वर्ष 1730 की है। उस समय पर जोधपुर के राजा अभयसिंह थे, राजा अभय सिंह को अपने लिए एक नया महल बनवाना था। राजा को अपना महल बनवाने के लिए सबसे पहले चूने की जरुरत पड़ी,चूने के लिए चूने की भट्टी जलानी पड़ती है। जिसके लिए लकड़ी की जरुरत पड़ी तब राजा के मंत्री गिरधारी दास भण्डारी ने लकड़ियों की व्यवस्था करने के लिए राजा के नए महल से कुछ किलोमीटर की दूरी पर मौजूद खेजड़ली गांव से लकड़ी लेने का निर्णय लिया। उसके बाद मंत्री ने राजा को उस गांव के बारे में जानकारी दी की उस गांव में खेजड़ी के पेड़ बहुत अधिक मात्रा में मौजूद है। राजा ने मंत्री की बात सुनकर खेजड़ली गांव से लकड़ी लाने का आदेश दे दिया। उस समय पर खेजड़ली गांव में बिश्नोई समाज के लोग ज्यादा रहते थे। बिश्नोई समाज के लोगो का पर्यवारण से लगाव बहुत ज्यादा था,जब राजा अभय सिंह के मंत्री लकड़ी लेने के लिए खेजड़ली गांव पहुँचे तो खेजड़ली गांव में रहने वाली अमृता देवी ने लकड़ी काटने का पुरजोर विरोध किया। अमृता देवी ने मंत्री से कहा की खेजड़ी के पेड़ को वो अपना परिवार मानती है और हर साल रक्षा बंधन के पर्व पर वो इन पेड़ो को राखी भी बाँधती है। इसलिए वो इन पेड़ो को कुछ नहीं होने देंगी, विरोध को देखते हुए उस समय मंत्री और सैनिक उस समय वहां से चले गए। विश्नोई समाज से ताल्लुक रखने वाली अमृता देवी की उम्र 41 वर्ष थी, अमृता देवी अपने पति रामु और तीन पुत्रियों के साथ खेजड़ली गांव में रहती थी। इस आंदोलन में अमृता देवी के परिवार के साथ साथ गांव के कुछ लोग और महिलाएं भी थी। कुछ समय बाद राजा का मंत्री गिरधारी सिंह और सैनिक दल फिर से गांव में लकड़ी लेने आए, अमृता देवी ने फिर से उनका पुरजोर विरोध शुरू कर दिया। गिरधारी सिंह ने अमृता देवी को रिश्वत और लालच दिया लेकिन अमृता देवी अपनी बात पर अडिग रही। अमृता देवी और उसका पूरा परिवार पेड़ो से चिपक गया इस बात से मंत्री गिरधारी सिंह क्रोध से भर गए। फिर गिरधारी सिंह और सैनिको ने अमृता देवी और उनके परिवार का सिर धड़ से अलग कर दिया। ऐसा माना जाता है की अमृता देवी के साथ उस समय पर लगभग 84 गांव के लोगों ने दिया था। सभी लोग खेजड़ी के पेड़ों से चिपके हुए खड़े थे ऐसे में मंत्री गिरधारी दास भण्डारी ने 300 से ज्यादा लोगों के सिर धड़ से अलग कर दिये थे। मारे गए लोगो में पुरुष और महिलाऐं दोनों ही मौजूद थे। 21 सितम्बर 1730 को हुए इस आंदोलन को पहले पर्यावरण आन्दोलन के रूप माना गया है।
चिपको आंदोलन की प्रमुख माँग
ऊपर आपने पढ़ा की चिपको आंदोलन क्या है (chipko andolan kya hai)? चिपको आंदोलन में अमृता देवी की मृत्यु के बाद विरोध काफी तेजी से शुरू हो गया था। फिर आंदोलन में कई सारी मांगे रखी गई थी जिनके बारे में हम आपको नीचे जानकारी दे रहे है।
1 – चिपको आंदोलन करने वाले लोगो ने माँग की वनो और जंगलों में रहने वाले लोगो का शोषण बंद किया जाए।
2 – ठेकेदारी प्रथा को समाप्त किया जाएं।
3 – जो भी इंसान वनो में मजदूरी का काम कर रहे है ऐसे सभी मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी राशि तय होनी चाहिए।
4 – छोटे उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति रियायती कीमत पर मिले।
5 – हिमालय में मौजूद सभी वनो की कटाई बंद हो।
6 – चिपको आंदोलन की एक माँग यह भी थी की ऐसे पेड़ो को लगाया जाएं जो मृदा और जल संरक्षण करने में मददगार होते है।
इसके अलावा भी कुछ मांगे चिपको आंदोलन के दौरान रखी गई थी। चिपको आंदोलन काफी दिनों तक चला था। शुरुआत में चिपको आंदोलन सिमित था लेकिन धीरे धीरे यह आंदोलन बढ़ता गयाl आंदोलन को बढ़ता देख वर्ष 1974 में सरकार ने चिपको आंदोलन की मांगों पर विचार करने के एक उच्चस्तरीय समिति गठित की। उसके बाद जब समिति ने जांच पड़ताल शुरू की और जांच में पाया की गांव वालो के द्वारा रखी गई माँग सही है। फिर समिति ने अपनी रिपोर्ट में उस क्षेत्र में व्यावसायिक वन कटाई पर रोक लगाने की सिफारिश की। उसके बाद सरकार ने समिति की बात मानते हुए उस क्षेत्र में 10 साल तक वन कटाई पर रोक लगाने के साथ साथ वनरोपण का काम तेजी से करने का आदेश जारी कर दिया। सरकार के द्वारा दिए गए आदेश को चिपको आंदोलन की जीत के रूप में देखा गया।
चिपको आंदोलन के फायदे
चिपको आंदोलन के बारे में आप ऊपर पढ़ चुके है, अब हम आपको चिपको आंदोलन के फायदे बता रहे है। चिपको आंदोलन मुख्य रूप से पर्यावरण को सुरक्षित रखने के साथ साथ लोगो में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाना भी था। देखा जाए तो चिपको आंदोलन को कई सारे मामलो में सफलता प्राप्त हुई थी। चिपको आंदोलन की वजह से वनो को संरक्षित करने का दबाव सरकार पर पड़ा था। चलिए अब हम आपको चिपको आंदोलन की कुछ उपलब्धियो के बारे में जानकारी दे रहे है
1 – चिपको आंदोलन के बाद सरकार ने समुद्र तल से एक हजार मीटर से ज्यादा ऊँचाई वाले सभी क्षेत्रों में 15 सालों तक वनो की कटाई पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया था। इस आदेश की वजह से वन संरक्षण और वन विकास में मदद मिली थी।
2 – चिपको आन्दोलन में किसी भी तरह की हिंसा नहीं की गई थी, चिपको आंदोलन शांति की राह पर चलकर किया गया था।
3 – इस आंदोलन की वजह लोगो में वनो की अहमियत के बारे में जानकारी मिली थी।
4 – चिपको आंदोलन की वजह से लोगो में पेड़ पौधो को बचाने के प्रति जागरूकता शुरू हुई।
5 – चिपको आंदोलन के बाद राजनीति के प्रमुख मुद्दों में पर्यावरण को भी शामिल किया गया था।
6 – कुछ लोगो का मानना है की चिपको आंदोलन की वजह से पर्यावरण मंत्रालय’ का गठन और 1980 का वन संरक्षण अधिनियम का निर्माण हुआ था।
निष्कर्ष –
हम आशा करते है की आपको हमारे लेख चिपको आंदोलन क्या है (chipko andolan kya hai)? और चिपको आंदोलन की शुरुआत कब और कैसे हुई? में दी गई जानकारी पसंद आई होगी। अगर आपको हमारे लेख में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करके ऐसे लोगो के पास तक पहुंचाने में मदद करें जिन्हे चिपको आंदोलन के बारे में जानकारी नहीं है।