302 Dhara Kya Hai?: जब कोई भी इंसान कोई जुर्म करता है तो उस जुर्म के अनुसार ही अपराधी को सजा मिलती है। भारत में अलग अलग जुर्म के लिए अलग अलग सजा दी जाती है। इन सभी जुर्म और सजा की जानकारी इंडियन पीनल कोड बुक में वर्णित की गई है। इंडियन पीनल कोड में अलग अलग धाराओं के बारे में बताया गया है। प्रत्येक धारा का अपना अलग जुर्म होता है। हालाँकि इंडियन पीनल कोड की सभी धाराओं में सबसे अहम् या खतरनाक धारा 302 मानी जाती है क्योंकि इस धारा में किसी इंसान की हत्या की सजा के बारे में बताया गया है। किसी भी इंसान को जीवन भगवान ने दिया है और किसी भी इंसान को उस जीवन को खत्म करने का अधिकार नहीं है। इसीलिए अगर कोई भी इंसान किसी दूसरे इंसान की हत्या करता है तो ऐसे में उस इंसान के ऊपर धारा 302 लगाई जाती है।
वैसे तो अधिकतर इंसानो को कुछ धाराओं के बारे में जानकारी होती है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है जिन्हे धाराओं के बारे में जानकारी नहीं होती है। कुछ मामलो में इंसान अपराधों का शिकार हो जाता है और उन्हें अपने हक तथा कानून के बारे में जानकारी नहीं होने की वजह से वो इंसाफ नहीं पाते है। काफी सारे इंसानो को धारा 302 के बारे में पता होता है लेकिन जिन इंसानो को इस धारा के बारे में जानकारी नहीं होती है। वो अक्सर इंटरनेट पर धारा 302 क्या है? धारा 302 क्या होती है? धारा 302 कब क्यों लगाई जाती है? और धारा 302 में क्या सजा हो सकती है? इत्यादि लिखकर सर्च करते है। अगर आपको धारा 302 के बारे में जानकारी नहीं है तो हमारा यह लेख आपके लिए लाभकारी साबित हो सकता है। आज हम अपने इस लेख में इस धारा से सम्बंधित महत्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करा रहे है। चलिए सबसे पहले हम आपको बताते है की धारा 302 कया होती है (302 dhara kya hai) ?
धारा 302 क्या है? (302 dhara kya hai)
भारत में अलग अलग दोषो के दोषियों को सजा देने के लिए भारतीय दंड संहिता नामक किताब को बनाया गया था। इस किताब में अपराध के हिसाब से दोषियों को कौन सी सजा दी जाएं इसके बारे में जानकारी दी गई है। अगर किसी इंसान ने किसी इंसान की ह्त्या की है तो ऐसे में अपराधी पर धारा 302 के तहत कार्यवाई की जाती है। अपराधी को ह्त्या करने के लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड या जुर्माना लगाकर सजा मिलती है। हालाँकि यह भी सच है की किसी भी इंसान की हत्या एक ऐसा अपराध होता है जो माफी के लायक नहीं है और अपराधी को उसके इस अपराध के लिए कड़ी से कड़ी सजा मिलनी भी चाहिए। क्योंकि किसी भी परिस्थिति में इंसान को किसी इंसान की जान लेने का अधिकार नहीं होता है।
इंडियन पीनल कोड या भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (302 dhara kya hai ) में मानव हत्या के लिए सजा के बारे में बताया गया है। इंसान हत्या को एक जघन्य अपराध के रूप में माना गया है इसीलिए धारा 302 में काफी कठिन सजा दी गई है। हालाँकि इंसान की हत्या अलग अलग तरीको से की जा सकती है। लेकिन कुछ मामलो में अपराधी किसी इंसान की हत्या जानबूझ कर नहीं करता है और ना ही अपराधी का मकसद हत्या करने का होता है लेकिन फिर भी उससे इंसान की ह्त्या हो जाती है। तो इस परिस्थिति में अपराधी के लिए सजा का निर्धारण करना काफी मुश्किल होता है। धारा 300 में हत्याओ के बारे में बताया गया है और धारा 302 में उन हत्याओं के लिए कौन सी सजा दी जाएं इसके बारे में बताया गया है। इसीलिए जब भी किसी भी इंसान पर धारा 302 लगाई जाती है तो सबसे पहले उसका जुर्म धारा 300 के हिसाब से देखा जाता है। धारा 300 के अनुसार अपवादित मामलों को छोड़कर आपराधिक गैर इरादतन मानव वध हत्या माना गया है।
सरल भाषा में समझे तो किसी भी इंसान के द्वारा किया गया कोई भी ऐसा कार्य जिसकी वजह से किसी इंसान की मृत्यु हो जाएं या वो कार्य किसी इंसान की हत्या करने के लिए किया गया है। तो इंसान के लिए अलग सजा बताई गई है। दूसरी तरफ अगर आप किसी भी इंसान की हत्या करने का प्लान बना रहे है तो अलग सजा का प्रावधान है। या आपने किसी इंसान को शारीरिक क्षति पहुँचाई है, जिसकी वजह से उस इंसान की मृत्यु हो सकती है तो उसके लिए अलग से सजा का प्रावधान है। इसीलिए किसी भी इंसान का सबसे पहले इरादा देखा जाता है उसके बाद ही उसकी सजा निर्धारित की जाती है। कुछ मामले ऐसे भी है जिनमे धारा 302 में छूट भी प्राप्त होती है जिसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे। उससे पहले हम आपको बताते है की धारा 302 (302 dhara kya hai ) में अपराधी को कितनी सजा हो सकती है।
धारा 302 में क्या सजा हो सकती है?
भारतीय दंड संहिता या इंडियन पीनल कोड की धारा 302 में हत्या के लिए सख्त सजा का प्रावधान बताया गया है। धारा 302 में अपराधी आजीवन कारावास और आर्थिक दंड दिए जाने के बारे में बताया गया है। धारा 302 एक बहुत ज्यादा संगीन, गैर जमानती और संज्ञेय अपराध की धारा (302 dhara kya hai) होती है, जिसमे किसी भी प्रकार का समझौता करने योग्य नहीं होता है। धारा 302 के अंतर्गत आने वाली हत्या में सबसे ख़ास बात इंसान की हत्या का इरादा और मकसद को देखा जाता है। न्यायलय में अपराधी के ऊपर किए गए मुक़दमे की सुनवाई करते समय सबसे ज्यादा इस बात पर ध्यान दिया जाता है की अपराधी के पास हत्या करने का इरादा और मकसद था या नहीं। अगर अपराधी के पास हत्या करने का इरादा या मकसद था तो अपराधी को सख्त सजा मिलती है। लेकिन अगर अपराधी के पास हत्या करने का इरादा और मकसद नहीं था उसने हत्या किन कारणों या परिस्थियों में की और क्यों की। इन सब चीजों को देखा जाता है। उसके बाद सजा का निर्धारण होता है। नीचे हम आपको तीनो सजाओ के बारे में जानकारी उपलब्ध करा रहे है
मौत की सजा
इस धारा के तहत अपराधी को मृत्युदंड भी दिया जा सकता है। अगर किसी अपराही ने कोई जघन्य अपराध किया है तो ऐसी स्थिति में जज अपराधी को मृत्युदंड की सजा दे सकते है। हालाँकि भारत में दुर्लभ मामलों में ही मृत्युदंड की सजा दी जाती है।
आजीवन कारावास
जब किसी भी अपराधी को आजीवन कारावास दिया जाता है तो उसमे बताया जाता है की अपराधी को एकांत, कठोर और सरल कारावास में से कौन सा कारावास दिया गया है। अगर किसी अपराधी को आजीवन कारावास की सजा मिलती है तो इसका अर्थ है इंसान अपने जीवनकाल तक जेल में कैद रहेगा। एकांत कारावास में अपराधी को अलग बैरक में अलग रखा जाता है। और कठोर कारावास में अपराधी के ऊपर काफी सारी पाबंदिया लगाई जाती है।
जुर्माना
हत्या का आरोप साबित होने पर अपराधी को अदालत द्वारा निर्देशित सजा के साथ साथ कुछ जुर्माना भी भरना होता है। काफी सारे इंसानो के मन में यह सवाल रहता है की धारा 302 में कितना जुर्माना लगता है? तो हम आपको बता दें की आरोपी पर कितना जुर्माना लगेगा इसका निर्णय न्यायालय पर होता है। जज मुकदमे की गंभीरता को देखते हुए जुर्माने की रकम तब करते है। जुर्माने की रकम का भुगतान आरोपी को करना होता है।
धारा 302 कब लगती है?
किसी भी अपराधी पर धारा 302 उस स्थिति में लगाई जाती है जब अपराधी ने किसी इंसान की हत्या की हो। धारा 302 लगने वाले अपराधी को मृत्यु दंड या आजीवन कारावास और जुर्माना देना होता है। जब किसी भी इंसान पर धारा 302 लगाई जाती है तो उस इंसान की जमानत नहीं होती है। हालाँकि कुछ विशेष परिस्थिति में जमानत मिल भी सकती है। धारा 302 लगने के बाद अपराधी के ऊपर न्यायालय में केस चलता है और अगर न्यायालय में यह साबित हो जाता है की अपराधी ने हत्या की है उस अपराधी का इरादा हत्या करने का ही था। अर्थात ऐसा कोई भी मामला जो धारा 302 की सभी शर्तों को पूर्ण (302 dhara kya hai) करता है उसमे सख्त सजा का प्रावधान है। और जो मामले धारा की शर्तो को पूरा नहीं करते है उन मामलो में धारा 302 की जगह पर दूसरी धाराओं का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे मामलो में गैर इरादतन हत्या और किसी की रक्षा में की गयी हत्या इत्यादि की धाराएं लग सकती है।
धारा 302 कब लागू हुई?
प्राचीन समय से विभिन्न प्रकार के अपराध देखने को मिल रहे है। प्राचीन समय में होने वाले वाले अपराधों की सजा बहुत ज्यादा कठोर होती थी या पक्षपात पूर्ण रवैया देखने को मिलता था। जिस अपराधी के साथ पक्षपात किया जाता था उसे दोषमुक्त कर दिया जाता था। भारत में राजा महाराजा के समय पर बड़ा अपराध साबित होने पर अपराधी को मृत्युदंड या बहुत ज्यादा खौफनाक सजा दी जाती थी जिसकी वजह से प्रजा और अपराधियो के मन में भय का माहौल रहता था। लेकिन बहुत सारे मामलो में पक्षपात होने की वजह से न्याय व्यवस्था सुचारु रूप से नहीं चल रही थी। उस समय पर पक्षपात रवैया राजा के दोस्त, रिश्तेदार और परिवारवालों के लिए देखने को मिलता था हालाँकि आज के समय में ऐसा नहीं है। वर्तमान में किसी भी अपराधी को सजा देने के लिए देश में कानून व्यवस्था लागू है। जिसकी वजह से किसी भी अपराधी के साथ पक्षपात नहीं होता है।
भारत में राजाओ के शासन के बाद ब्रिटिश शासन काल आया था। ब्रिटिश शसन के नियम और कानून बहुत ज्यादा सख्त और बेहतर थे। वर्ष 1862 में ब्रिटिश शासन ने देश में अपराधियो को सजा देने के लिए भारतीय दंड संहिता या इंडियन पीनल कोड को लागू कर दिया था। हालाँकि इंडियन पीनल कोड लागू होने बाद समय समय पर समाज की जरुरत के अनुसार कई संशोधन भी किए गए। इंडियन पीनल कोड में सबसे ज्यादा और महत्वपूर्ण परिवर्तन देश आजाद होने के बाद किए गए थे। इंडियन पीनल कोड की खूबियो को देखते हुए पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी इसे आपराधिक शासन के उद्देश्यों के लिए लागू किया था। वैसे तो इंडियन पीनल कोड की सभी धाराएं महत्वपूर्ण है लेकिन धारा 302 कई मायनों में बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण (302 dhara kya hai) होती है। जब कोई भी इंसान किसी भी आने इंसान की हटा कर देता है तो आरोपियों पर इसी धारा के तहत मुकदमा चलता है। अगर आरोप साबित हो जाता है तो अपराधियो को सजा भी इसी धारा के तहत सजा दी जाती है। जब किसी भी इंसान पर इस धारा के तहत मुकदमा चलता है तो सबसे पहले अपराधी का अपराध देखा जाता है। सबसे पहले अपराधी का इरादा और मकसद देखा जाता है। अगर अपराधी का इरादा और मकसद हत्या करने का होता है तो अपराधी को आजीवन कारावास या मृत्युदंड के साथ साथ कुछ राशि का जुर्माना लगाया जाता है। कुछ मामलो में मुकदमा इस धारा पर चलता है लेकिन अपराधी के अपराध को देख कर उसे सजा अन्य धाराओं के तहत मिलती है। ऐसा इसीलिए होता है की अगर अपराधी का इरादा और मकसद हत्या का नहीं होता है तो अपराधी का अपराध देखकर उसे अन्य धाराओं के आधार पर सजा का प्रावधान है। ऐसे मुकदमो में अपराधी को धारा 304 या 307 इत्यादि के तहत सजा दी जाती है। हालाँकि अपराधी को कौन सी धारा के तहत सजा मिलेगी इस बात का निर्णय जज ही लेते है।
धारा 302 के आरोप लगने के बाद जमानत
अगर किसी भी इंसान पर धारा 302 के तहत आरोप लगता है तो ऐसे इंसान को जमानत मिलना बहुत ज्यादा मुश्किल है। लेकिन आरोपी की जमानत मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करती है। अगर आरोपी के खिलाफ सबूत ज्यादा मजबूत नहीं है तो जमानत मिलना आसान है और अगर आरोपी के खिलाफ सबूत मजबूत है तो जमानत मिलना आसान नहीं है। अगर आप किसी ऐसे इंसान की जमानत कराना चाहते है तो आपको न्यायालय में जमानत की याचिका दाखिल करनी होगी। फिर न्यायालय ही निर्णय लेगी की जमानत दी जाए या नहीं।
किन मामलो में धारा 302 नहीं लगती है
यह तो आप ऊपर पढ़ ही चुके है की धारा 302 लगाने के लिए आरोपी का इरादा और मकसद देखा जाता है। लेकिन अगर कोई मामला धारा 302 की शर्तो को पूर्ण (302 dhara kya hai) नहीं करता है तो उस मामले में अन्य धाराओं को लगाया जाता है। आरोपी का इरादा और मकसद इंसान की हत्या करने का नहीं होता है तो ऐसे में आरोपी को इंडियन पीनल कोड की धारा 304 का इस्तेमाल किया जाता है। इंडियन पीनल कोड की धारा 304 में आरोपी को मृत्यु दंड की जगह आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक के कारावास के साथ साथ जुर्माने की सजा दी जा सकती है।
धारा 302 और धारा 304 के कुछ अपवाद
यह तो हम सभी जानते है की किसी भी इंसान से जब अन्य इंसान की मृत्यु या हत्या हो जाती है तो ऐसे इंसान पर धारा 302 या 304 के तहत सजा सुनाई जाती है। लेकिन कुछ मामले ऐसे भी होते है जिनमे हत्या तो होती है लेकिन आरोपी को सजा इन धारा के तहत नहीं मिलती है। इन मामलो को आप अपवाद भी कह सकते है जिनमे से कुछ मामलो के बारे में हम आपको नीचे बता रहे है
1 – किसी इंसान के द्वारा उकसाने पर की गई हत्या को धारा 302 में नहीं रखा गया है। क्योंकि उस इंसान का इरादा हत्या करने का नहीं था लेकिन किसी इंसान के उकसाने पर उसने ऐसा कर दिया इस तरह की हत्या को गैर इरादतन हत्या माना जाता है।
2 – कोई इंसान आपको मार रहा है तो ऐसी स्थिति में अपनी निजी रक्षा करने के लिए की गई हत्या को गैर-इरादतन हत्या माना गया है। ऐसी स्थिति में आरोपी को हत्या का दोषी नहीं माना जाता है।
3 – जब पुलिस किसी इंसान को गिरफ्तार करती है और वो इंसान पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है। ऐसे में कोई पुलिस अधिकारी उस इंसान को गोली मार देता है तो इस स्थिति में पुलिस अधिकारी को हत्या का दोषी नहीं माना जाता है।
4 – किन्ही दो इंसानो में अचानक से लड़ाई हो जाती है और किसी एक इंसान की हत्या हो जाती है तो ऐसी हत्या को गैर-इरादतन हत्या कहा जाता है।
नाबालिग को धारा 302 में सजा
किसी भी देश का भविष्य बच्चे होते है लेकिन कुछ मामलो में बच्चो के द्वारा भी हत्या हो सकती है। इसीलिए भारत में अगर किसी भी नाबालिग से हत्या हो जाती है तो ऐसे में उस नाबलिग को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा नहीं दी जाती है। इंडियन पीनल कोड के अनुसार ऐसे इंसान जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम है, उन्हें किसी जघन्य अपराध के लिए मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता है। अधिकतर मामलो में नाबालिग को बाल सुधार गृह में भेज दिया जाता है।
धारा 302 में वकील करना जरुरी क्यों है
आमतौर पर किसी भी मुकदमे के लिए वकील करना जरुरी होता है। यह तो हम सभी अच्छी तरह से जानते ही है की किसी भी इंसान की हत्या (302 dhara kya hai) बहुत ही संगीन अपराध है। ऐसे अपराध में आईपीसी धारा 302 के तहत कठोर सजा का प्रावधान है। इस तरह के केस में कानूनी दांवपेच की बहुत अच्छी समझ वाले इंसान की जरुरत पड़ती है और क़ानूनी दांवपेंच वकील से बेहतर कोई नहीं जानता है। इसीलिए इस तरह से केस में अच्छे वकील का होना जरुरी है। ऐसे मामले जिनमे किसी इंसान की हत्या गैर इरादतन या गलती से हुई है। ऐसे मामलो में इंसान को आरोप से बचाने का काम अच्छा वकील ही कर सकता है।
निष्कर्ष –
ऊपर हमने आपको धारा 302 (302 dhara kya hai) के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई है। हम उम्मीद करते है की आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई होगी। हमारे इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करके ऐसे लोगो के पास तक पहुँचाने में मदद करें जिन्हे धारा 302 के बारे में जानकारी नहीं होती है।